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Kanyakubj Brahmin Vanshavali Pdf



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सिर्फ पढ़ने के लिये
कैकेयी की एक मंद बुद्धि दासी थी। उसका नाम मंथरा था। उसे अपयश की पिटारी बनाकर सरस्वती जी ने उसकी बुद्धि को फेर दिया और चली गई।
चौपाई का अर्थ-
1- मंथरा ने देखा कि सारा नगर ही सजाया हुआ है। सुंदर मंगलमय बधावे बज रहे है। उसने लोगो से पूछा, कैसा उत्सव है? उनसे श्री राम जी के तिलक की बात सुनते ही उसका हृदय जल उठा।
2- वह दुर्बुद्धि और नीच जाती वाली दासी अपने मन में विचार करने लगी कि चाहे जैसे भी हो यह कार्य रातो रात बिगड़ जाना चाहिए, जैसे शहद का छत्ता देखकर कुटिल भीलनी घात लगाकर उसे उखाड़ने का प्रयास करती है।
3- वह उदास होकर भरत जी की माता कैकेयी के पास गई। रानी कैकेयी ने हँसते हुए पूछा तू उदास क्यूँ है? मंथरा केवल लंबी-लंबी सांसे लेकर त्रिया चरित्र करके आंसू बहा रही है और कोई उत्तर नहीं देती है।
4- तब रानी हँसते हुए बोली – तू बहुत ही बड़बोली है अर्थात गाल बजाने वाली है। ऐसा लगता है कि लक्ष्मण ने तुझे कुछ सीख (दंड) दिया है। तब भी वह पापिन दासी कुछ नहीं बोलती है और लंबी-लंबी सांसे छोड़ने लगी। मानो काली नागिन फुफकार छोड़ रही हो।
13- दोहा का अर्थ-
तब रानी ने डरते हुए कहा – अरी! कहती क्यों नहीं? श्री राम जी, राजा, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न सब कुशल से तो है? यह सुनकर कुबड़ी मंथरा के हृदय में बड़ी पीड़ा हुई।
चौपाई का अर्थ-
1- वह कुबड़ी मंथरा कहने लगी – हे माई! हमे कोई क्यों सीख देगा और मैं किसके बल से गाल करुँगी अर्थात बढ़कर बोलूंगी। श्री राम जी को छोड़कर और आज किसकी कुशल है, जिन्हे राजा युवराज पद दे रहे है।
2- आज तो कौशल्या के लिए विधाता बहुत ही अनुकूल (दाहिने) हुए है। यह देखकर उनके हृदय में बहुत गर्व हो रहा है। तुम स्वयं जाकर सब शोभा क्यों नहीं देख लेती, जिसे देखकर मेरे मन में छोभ हुआ है।
3- तुम्हारा पुत्र परदेश मे है, तुम्हे कुछ सोच नहीं है। तुम अपने स्वामी को अपने वश में जानती हो, तुम्हे तो वश सेज पर नींद लेना अच्छा लगता है, अर्थात तुम्हे पलंग पर पड़े रहकर नींद लेना अच्छा लगता है। राजा की कपट भरी चतुराई तुम नहीं देखती हो।
4- मंथरा के प्रिय वचन को सुनकर किन्तु उसे मन की मैली जानकर रानी उसे झुककर डांटने लगी और बोली – तू घर फोड़ने वाली घर फोड़ी है – बस तू अब चुप रह। जो फिर कभी ऐसी बात कहा तो तेरी जीभ पकड़कर खिचवा लूंगी।
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