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श्री कबीर साहिब Pdf / Kabir Sahib PDF In Hindi

नमस्कार मित्रों, इस पोस्ट में हम आपको Kabir Sahib PDF In Hindi देने जा रहे हैं, आप नीचे की लिंक से Kabir Sahib PDF In Hindi download कर सकते हैं और आप यहां से Ikahattar Kahaniyan Hindi PDF कर सकते हैं।

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Kabir Sahib PDF In Hindi Free Download

 

 

तुमसों कहों जो नाम विचारी ।ज्योति नहीं बह पुरुष न नारी॥ तीन लोक ते भिन्न पसारा । जग मग जोत जहां उजियारा॥ सदा बंसत होत तिहि ठाऊं। संशय रहित अमरएर गाऊ॥ तहँवा जाय अटल सो होई। घरमराय आवत फिरि रो३ ॥

 

 

 

बरनो छोक सुनों सत भाऊ |जाहि लोक तें हम चलि आऊ॥ जग मग जोती बहुत सुहावन। दीप अनेक गिनें की पावन ॥ जगमग ज्योति सदा उजियारा। करी अनेक गिनेंको पारा॥ सुन हंसा तोहे कहब विचारी । छोक द्वीप जिमि करी सम्हांरी॥ हंते अदेह दतिया नाई काऊ। सुरित सनेही जान कुछ भाऊ॥

 

 

 

नहिं तहाँ पांच तत्त्व प्रगाशा । गुन तीनों नहिं नहीं अकाशा॥ नहिं तहँ ज्योंति निरंजनराया ।नहिं तहँ दशों जनम निर्माया॥ नाहि तहँ ब्रह्मां विष्णु महेशा | आदि भवानी गवारि गनेशा ॥ . नहिं तहँ जीव सीव कर मूला। नाहिं अनंग जिहिते सब फूला।। नहिं तहँ ऋषी सहख अठासी। पट दरशन न सिद्ध चौरासी॥

 

 

 

सात वार पन्द्रह तिथि नाहीं ।आदि अंत नहिं काल की छाहीं॥ तिनहि भयो पुन गुप्त निवासा । स्वासा सार तें पुहुँमि प्रकाशा ॥ सोई पहुप विना .नर नाछा। ज्योति अनेक होत झल हाला ॥. पुहुप॑ मनोहर सेतई भाऊ। पुहुप द्वीप सबही निर्मांड॥ . अजे सरोवर कीन्हों सारा।अष्ट कमल ते आें वारा॥

 

 

 

पीडश सुत तबही निमावा। कछू प्रगट कछ गुप्त प्रभावा॥ पुहुप द्वीप किमि करब बखाना । आदि ब्रह्म तहँवा अस्थाना ॥ सथह संख पंखुरी राजे। नो सौ संख द्वीप तहाँ छाजे ॥ तेरह संख सुरंग अपारा। तिहि नहिं जान काल बरियारा। धमंदास पूछो जो मोही। सो में भेद कहों सब तोही ॥

 

 

 

 

कमल असंख भेद कहूँ जाना । तहँवा पुरुष रहे निर्वाना॥ मोही सतगुरु दियो बताई। सो सब भेद कहों तुम पाई॥ सप्त पंखुरी कमल निवासा। तहँवा कीन्ह आप रहि वासा ॥ साखी-शीश द्रस अति निर्मल, काया न दीसत कोय ॥ पदम संपुट लग रहे , बानी विगसन होय ॥

 

 

 

जो तुम पूछो अगम सन्देशा। सो सब तोहि कहों उपदेशा ॥.. आदि पुरुष अस कीन्हों साजा। पांच बुन्द हुलास उपराजा॥ – बुन्दाहि बुन्द अंड प्रकाशा। घमम घीर जेहि अंड निवासा ॥ – अग्छ जोत सुरंग उाजयारा। तहँवा अंड रहे मनियारा॥ . चर्म घीर जबही उतपाना। आदि ब्रह्म तबही सकुचाना ॥!. एकहि मूक संबे उपजाई | मेत्यो तेज अंड कुन्याई ॥ साखी-तेज रहो जिहि अंड मो; तेहि नाहि दीन्हों ओोर ॥.. तेहि तें उपज्यो धर्म अब, वंश अगिन के जोर॥

 

 

 

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पुस्तक का नाम  Kabir Sahib PDF In Hindi
पुस्तक के लेखक  स्वामी युगलानन्द 
भाषा  हिंदी 
साइज  5.8 Mb 
पृष्ठ  112 
श्रेणी  काव्य 
फॉर्मेट  Pdf 

 

 

 

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