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Kabir Ke Dohe in Hindi Pdf / कबीर के दोहे इन हिंदी पीडीएफ
गुरु गोविन्द दोउ खड़े, काके लागौ पाय। बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो मिलाय।।
अर्थ-
कबीर दास जी इस दोहे में गुरु जी की महिमा का वर्णन करते हुए गुरु को भगवान से भी बड़ा बताया है और अपने दोहे के माध्यम से बनाते हुए कहते है। गुरु सदैव ही भगवान से बड़ा होता है क्योंकि उसके माध्यम से ही हम भगवान को जान सकते, जैसे किसी को आम के फल का नाम बता दिया जाय, लेकिन वह आम के फल को तब तक पहचानने में असमर्थ रहेगा, जब तक उसे कोई नहीं बताएगा कि यह आम का फल है। किसी भी वस्तु या मनुष्य या कि भगवान को भी जब कोई बताएगा तो ही उसे पहचाना जा सकता है। अतः पहचान कराने वाला ही गुरु है। इसलिए हमे पहले गुरु के ही पांव पकड़ने चाहिए जिसके माध्यम से ही गोविन्द मिले है।
2- यह तन विष की बिलेरी, गुरु अमृत की खान। शीश दिए जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।।
अर्थ-
कबीर दास जी गुरु की महिमा पर प्रकाश डालते हुए कहते है कि – यह शरीर तमाम तरह के अवगुण रूपी जहर से भरा हुआ है। काम, क्रोध, मद, लोभ यह सब जहर तो बहुत ही भयानक है। अगर इस जहर को खत्म करने वाला गुरु अगर अपना शीश देने पर भी मिले तो उसे सस्ता ही समझना चाहिए।
3- सब धरती काजग करू, लेखन सब वनराय।सात समुद्र की मसि करू, गुरु गुण लिखा न जाये।।
अर्थ-
कबीर दास जी की वाणी में गुरु की महिमा बहुत ही बड़ी है। वह कहते है कि- गुरु की महिमा का वर्णन करने के लिए अगर मुझे पूरी पृथ्वी का कोरा कगज बनाना पड़े और उस पर गुरु की महिमा का वर्णन लिखने के लिए दुनिया के सभी वन के वृक्षों की कलम बनाना पड़े और सात समुद्र के पानी की स्याही बनाना पड़े तो भी गुरु के अपार महान गुणों को लिखना कदापि संभव नहीं है।
4- ऐसी वाणी बोलिये, मन का आपा खोय। औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय।।
अर्थ-
कबीर दास ने अपने जीवन काल में मनुष्य के प्रत्येक कार्य पर प्रकाश डाला है। वह कहते है- प्रत्येक मनुष्य को सदैव ही मीठी भाषा या कि मृदु वचन का प्रयोग करना चाहिए, और घमंड को त्यागकर ही बात करनी चाहिए। जो दूसरो को सुनने में भी अच्छी लगे और मृदु वचन बोलने से दूसरो को बहुत सुख प्राप्त होता है और साथ ही खुद को भी बहुत आनंद के साथ मन को शीतलता मिलती है।
5- बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर। पंथी को छाया नहीं, फल लागे अतिदूर।।
अर्थ-
कबीर दास जी ने अपने दोहे के माध्यम से बहुत ही अच्छा उदाहरण देकर समझाया है और कहते है – कि बड़ा होने से कुछ नहीं होता जब तक स्वभाव में बड़ाई का भाव न झलकता हो, जैसे कि खजूर का पेड़ तो बहुत ही बड़ा होता है उसके फल भी बहुत ऊंचाई पर लगे होते है। लेकिन इससे किसी को भी फायदा नहीं होता है, न तो उससे किसी पथिक को छाया मिलती है न तो उसका फल ही किसी को प्राप्त होता है। अतः मनुष्य को अपने जीवन में सदैव अच्छे विचार के साथ ही भलाई में लगा रहना चाहिए।
6- निंदक नियरे राखिये, आंगन कुटी छवाय। बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुहाय।।
अर्थ-
कबीर दास जी अपने दोहे से मनुष्य को हर प्रकार से समझाने का प्रयास किया है। वह कहते है कि – निंदा करने वाले को हमेशा ही अपने पास में रखते हुए उसे अपने घर के आंगन में बैठाकर उसका स्वागत करना चाहिए, चूँकि निंदा करने वाला दूसरो की निंदा ही करता है और वह आपकी भी निंदा करेगा ही और उसके निंदा से आपको अपनी गलतियां सुधारने का अच्छा मौका मिलता है। इस तरह वह निंदक बिना पानी और साबुन के बिना भी आपके स्वभाव को निर्मल बनाते हुए गलती सुधारने में मदद करता है
7- बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय। जो मन देखा आपना, मुझसे बुरा न कोय।।
अर्थ-
कबीर दास जी के दोहा का अर्थ अगर मनुष्य अपने जीवन में थोड़ा भी पालन करे तो उसका जीवन सुखी हो जायेगा। कबीर दास जी कहते है – कि हमे दूसरो की बुराई देखने से पहले अपनी बुराई को सुधारने का ही प्रयास करना चाहिए क्योंकि दूसरे की बुराई देखने वाले का ध्यान अपने व्यवहार पर नहीं रहता है क्योंकि अगर मनुष्य अपने अंदर झांककर देखे तो उससे बुरा इंसान कोई भी नहीं है जो दूसरो की बुराई देखने में ही व्यस्त रहता है।
8- दुःख में सिमरन सब करै, सुख में करे न कोय। जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय।।
अर्थ-
कबीर दास का कहना है कि – मनुष्य को अपने जीवन में सुमिरन रूपी अच्छे कार्य को करते रहना चाहिए, अगर सुमिरन रूपी अच्छे कार्य करता रहेगा तो दुःख रूपी बुरे कार्य नहीं होने पाएंगे, इसी तरह जो भी अपने सुख के दिनों में ईश्वर का सुमिरन करता रहता है तो उसके पास कभी दुःख आता नहीं है। दुःख में तो सब कोई भगवान को याद करता है लेकिन सुख भरे दिन में भी भगवान को याद करने से दुःख नहीं आता है।
9- माटी कहे कुम्हार से, तू क्यों रोंदे मोहे। एक दिन ऐसा आएगा मैं रौंदूंगी तोहे।।
अर्थ-
कबीर जी कहते है कि मनुष्य को कभी अपने पद प्रतिष्ठा का गर्व नहीं करना चाहिए और अपनी प्रतिष्ठा के बल पर किसी को परेशान नहीं करना चाहिए क्योंकि समय आने पर वही आदमी बदला अवश्य ही लेता है। जैसे एक कुम्हार मिट्टी का बर्तन बनाने के लिए जब मिट्टी को रौंदता है तो वह मिट्टी कहती है, ए कुम्हार तू मुझे आज रौंद रहा है लेकिन याद रखना एक दिन ऐसा जरूर आएगा कि मैं तुझे रौंदूंगी अर्थात तू इसी मिट्टी में विलुप्त हो जायेगा।
10- पानी केरा बुद बुदा, अस मानस की जात। देखत ही छुप जायेगा ज्यों सारा परभात।।
अर्थ-
कबीर दास जी की वाणी बड़ी रहस्य और अर्थ लिए होती है। उनका कहना है कि – इंसान को अपनी इच्छाएं सिमित करना चाहिए क्योंकि असीमित इच्छा ही दुःख की मूल जननी है और ऐसी ही असीमित इच्छाएं जो पानी के बुलबुले के समान बनती और दूसरे ही पल ही बिगड़ जाती है। लेकिन जिस दिन तथा जिस पल किसी सच्चे सद्गुरु के दर्शन होने पर ही यह सारा मोह माया रूपी अंधकार दूर होकर छिप जायेगा।
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