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हे राम! आपके चरित्र को देखकर तो मुर्ख लोग मोह ग्रसित हो जाते है और ज्ञानी जन सुखी हो जाते है। आप जो कुछ भी करते है वह सब उचित और सत्य है क्योंकि जैसा स्वांग करना है उसी प्रकार नाचना भी चाहिए। इस समय आप मनुष्य रूप में है अतः मनुष्योचित व्यवहार करना ही ठीक है।
127- दोहा का अर्थ-
आपने मुझसे पूछा कि मैं कहा रहूं? किन्तु मैं आपसे पूछते हुए सकुचाता हूँ कि जहां आप न हो, वह स्थान बता दीजिए। तब मैं आपके रहने योग्य स्थान दिखाऊंगा।
चौपाई का अर्थ-
1- मुनि के प्रेम से सने हुए वचन सुनकर श्री राम “रहस्य खुल जाने के डर से” सकुचाकर मन में मुसकराये। वाल्मीकि जी हंसकर अमृत से डूबी हुई वाणी से कहा।
2- हे राम जी! सुनिए अब मैं वह स्थान बताता हूँ, जहां आप सीता जी और लक्ष्मण जी के साथ निवास करे। जिनके कान समुद्र की भांति आपकी सुंदर कथा रूपी अनेक नदियों से।
3- निरंतर भरते रहते है लेकिन कभी परे (तृप्त) नहीं होते है। उनके हृदय आपके लिए सुंदर घर है और जिन्होंने अपने नेत्रों को चातक बना रखा है जो आपके दर्शन रूपी मेघ के लिए सदा ही लालायित रहते है।
4- तथा जो भारी नदियां, समुद्रो और झीलों का निरादर करते हुए आपके सौंदर्य रूपी मेघ की एक बून्द से ही सुखी हो जाते है अर्थात आपके दिव्य सच्चिदानंदमय स्वरुप के किसी एक अंग की जरा सी झांकी के सामने स्थूल, सूक्ष्म और कारण तीनो जगत के अर्थात पृथ्वी, स्वर्ग और ब्रह्मलोक के सौंदर्य का भी तिरस्कार करते है, हे रघुनाथ जी! उन लोगो के हृदय रूपी सुखदायी भवन में आप भाई लक्ष्मण और सीता जी सहित निवास करिये।
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