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पुस्तक का नाम | जिनवाणी संग्रह |
पुस्तक की भाषा | हिंदी |
पुस्तक के लेखक | अज्ञात |
फॉर्मेट | |
कुल पृष्ठ | 814 |
श्रेणी | धार्मिक |
साइज | 30 MB |

सिर्फ पढ़ने के लिए
भला कहिए, मैं ही कौन सा बड़ा कुलीन हूँ? चंचल, वानर हूँ सब प्रकार से नीच हूँ। प्रातःकाल जो हम लोग का नाम ले ले तो उस दिन उसे भोजन न मिले।
7- दोहा का अर्थ-
हे सखा! सुनिए, मैं ऐसा अधम हूँ, पर श्री राम जी ने तो मुझ पर भी कृपा की है। भगवान के गुणों का स्मरण करके हनुमान जी के नेत्र में जल भर आया।
चौपाई का अर्थ-
जो जानते हुए भी ऐसे स्वामी को भुलाकर विषयो के पीछे भटकता फिरता है तो वह दुखी क्यों नहीं होगा? इस प्रकार श्री राम जी गुण समूह को कहते हुए उन्होंने अनिर्वाच्य शांति प्राप्त किया।
फिर विभीषण जी ने श्री जानकी जी जिस प्रकार वहां रहती थी वह सब कथा कही। तब हनुमान जी ने कहा – हे भाई! सुनो, मैं जानकी माता को देखना चाहता हूँ।
विभीषण जी ने माता के दर्शन की सब युक्तियाँ और उपाय कहकर सुना दिया, तब हनुमान जी विदा लेकर चले। फिर वहां मसक के जैसा छोटा सा रूप बनाकर वहां गए जहां अशोक वन के जिस भाग में सीता जी रहती थी।
सीता जी को देखकर हनुमान जी ने उन्हें मन में ही प्रणाम किया। उन्हें बैठे-बैठे ही रात्रि के चार पहर बीत गए। सीता जी का शरीर दुबला हो गया है, सिर पर जटाओ की एक वेणी है और अपने हृदय में रघुनाथ जी के गुणों का स्मरण करती है।
8- दोहा का अर्थ-
श्री जानकी जी अपने नेत्रों को अपने पैरो में लगाए हुए नीचे की ओर देख रही है और उनका मन श्री राम जी के चरण कमल में लीन है। जानकी जी की दीन देखकर पवनसुत हनुमान जी बहुत ही दुखी हुए।
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