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यदि इस प्रकार तुम्हारी रुचि वहां अवश्य जाने के लिए हो गयी है तो मेरी आज्ञा से तुम शीघ्र अपने पिता के यज्ञ में जाओ। यह नंदी वृषभ सुसज्जित है। तुम एक महारानी के अनुरूप राजोपचार साथ ले सादर इस पर सवार हो बहुसंख्यक प्रमथगणो के साथ यात्रा करो।
रूद्र के इस प्रकार आदेश देने पर सुंदर आभूषणों से अलंकृत सती देवी सब साधनो से युक्त हो पिता के घर की ओर चली। परमात्मा शिव ने उन्हें सुंदर वस्त्र, आभूषण तथा परम उज्वल छत्र आदि महाराजोचित उपचार दिए। भगवान शंकर की आज्ञा से साथ हजार रुद्रगण बड़ी प्रसन्नता और महान उत्साह के साथ कौतुहल पूर्वक सती के साथ गए।
उस समय वहां यज्ञ के लिए यात्रा करते समय सब ओर महान उत्सव होने लगा। महादेव जी के गणो ने शिव प्रिया सती के लिए बड़ा भारी उत्सव रचाया। वे सभी गण कौतुहल पूर्ण कार्य करने तथा सती और शिव के यश को गाने लगे। शिव के प्रिय और महान वीर प्रमथगण प्रसन्नता पूर्वक उछलते कूदते चल रहे थे।
जगदंबा का यात्रा काल में सब प्रकार से बड़ी भारी शोभा हो रही थी। उस समय जो सुखद जय-जयकार आदि का शब्द प्रकट हुआ उससे तीनो लोक गूंज उठे। ब्रह्मा जी कहते है – नारद! दक्षकन्या सती उस स्थान पर गयी जहां वह महान प्रकाश से युक्त यज्ञ हो रहा था।
वहां देवता असुर और मुनींद्र आदि के द्वारा कौतुहल पूर्ण कार्य हो रहे थे। सती ने वहां अपने पिता के भवन को नाना प्रकार की आश्चर्यजनक वस्तुओ से सम्पन्न, उत्तम प्रभा से परिपूर्ण, मनोहर तथा देवताओ और ऋषियों के समुदाय से भरा हुआ देखा।
देवी सती भवन के द्वार पर जाकर खड़ी हो गयी और अपने वाहन नंदी से उतरकर अकेली ही शीघ्रता पूर्वक यज्ञशाला के अंदर चली गयी। सती को आयी देख उनकी यशस्विनी माता वीरिणी ने और बहिनो ने उनका यथोचित आदर सत्कार किया।
परन्तु दक्ष ने उन्हें देखकर भी कुछ अददर नहीं किया तथा उन्ही के भय से शिव की माया से मोहित हुए दूसरे लोग भी उनके प्रति आदर का भाव न दिखा सके। मुने! सब लोगो के द्वारा तिरस्कार प्राप्त होने से सती देवी को बड़ा विस्मय हुआ तो भी उन्होंने अपने माता-पिता के चरणों में मस्तक झुकाया।
उस यज्ञ में सती ने विष्णु आदि देवताओ के भाग देखे परन्तु शंभु का भाग उन्हें कही नहीं दिखाई दिया। तब सती ने दुस्सह क्रोध प्रकट किया। वे अपमानित होने पर भी रोष से भरकर सब लोगो की ओर क्रूर दृष्टि से देखती और दक्ष को जलाती हुई सी बोली।
प्रजापते! आपने परम मंगलकारी भगवान शिव को इस यज्ञ में क्यों नन्ही बुलाया? जिनके द्वारा यह सम्पूर्ण चराचर जगत पवित्र होता है जो स्वयं ही यज्ञ, यज्ञ वेत्ताओं में श्रेष्ठ, यज्ञ के अंग, यज्ञ की दक्षिणा और यज्ञकर्ता यजमान है उन भगवान शिव के बिना यज्ञ की सिद्धि कैसे हो सकती है?
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