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Jain Sahitya Pdf / जैन साहित्य पीडीएफ
जैन साहित्य और इतिहास पीडीऍफ़ डाउनलोड

सिर्फ पढ़ने के लिए
हे पार्वती! जगत में श्री राम जी के समान हित करने वाला गुरु, पिता, माता, बंधु और स्वामी कोई नहीं है। देवता, मनुष्य और मुनि सबकी ही यही रीति है कि स्वार्थ के लिए ही सब प्रीति करते है।
जो सुग्रीव दिन-रात बालिके भय से व्याकुल रहता था। जिसके शरीर में बहुत से घाव हो गए थे और जिसकी छाती हमेशा चिंता में रहती थी। उसी सुग्रीव को उन्होंने वानरों का राजा बना दिया। श्री राम जी का स्वभाव अत्यंत ही कृपालु है।
जो जानते हुए भी ऐसे प्रभु को त्याग देते है तो वह क्यों नहीं विपत्ति के जाल में फंसेंगे? फिर श्री राम जी ने सुग्रीव को बुला लिया और बहुत प्रकार से उन्हें राजनीती की शिक्षा दिया।
फिर प्रभु ने कहा – हे वनरपति सुग्रीव! सुनो, मैं चौदह वर्ष तक गांव में नहीं जाऊंगा। अतः मैं यहां पास में पर्वत पर ही रहूंगा। तुम अंगद सहित राज्य करो। मेरे कार्य का सदा हृदय में ध्यान रखना। तदनन्तर सुग्रीव जी घर लौट आये। तब श्री राम जी प्रवर्षण पर्वत पर जाकर रहने लगे।
12- दोहा का अर्थ-
देवताओ ने पहले से ही उस पर्वत की एक गुफा को सुंदर बना रखा था। उन्होंने सोच रखा था कि कृपानिधि श्री राम जी यहां आकर कुछ दिन निवास करेंगे।
चौपाई का अर्थ-
सुंदर वन फूलो से भरा हुआ अत्यंत सुशोभित है। मधु के लोभ से भौरे गुंजार कर रहे है। जब से प्रभु वहां आये तभी से वहां वन में सुंदर कंद, मूल, फल तथा पत्तो की बहुत मात्रा हो गयी।
मनोहर और अनुपम पर्वत को देखकर देवताओ के सम्राट श्री राम जी छोटे भाई सहित वहां रहते है। देवता, सिद्ध और मुनि, भौरे, पक्षियों और पशुओ का शरीर धारण करके प्रभु की सेवा करने लगे।
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