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तीनो तापो का नष्ट होना – श्री कृष्ण कहते है जो इस प्रकार से कृष्ण भावनामृत में तुष्ट व्यक्ति के लिए संसार के तीनो ताप नष्ट हो जाते है और ऐसी तुष्ट चेतना होने पर उसकी बुद्धि शीघ्र ही स्थिर हो जाती है।
66- स्थिर मन के बिना – शांति की संभावना नहीं – श्री कृष्ण कहते है – जो कृष्ण भावनामृत में स्थिर हुए बिना शांति की कोई भी संभावना नगण्य रहती है। मनुष्य कृष्ण भावनाभावित होना ही पड़ेगा जिससे वह परम शांति प्राप्त हो सके। अतः पांचवे अध्याय में (5. 29) इसकी पुष्टि की गई है कि जब मनुष्य यह समझ लेता है कि कृष्ण ही यज्ञ तथा तपस्या के एकमात्र उत्तम फलो के भोक्ता है और समस्त ब्रह्माण्ड के स्वामी है तथा वही समस्त जीवो के असली मित्र है तभी उसे वास्तविक शांति मिल सकती है।
मन की चंचलता का एकमात्र कारण अंतिम लक्ष्य का अभाव है अतः मनुष्य (जीव) को अपने परम लक्ष्य (श्रीकृष्ण) पर ही ध्यान देने से उसका कल्याण संभव है। यदि कोई कृष्ण भावनाभावित नहीं है तो उसके जीवन का कोई अंतिम लक्ष्य नहीं हो सकता है। अतएव गौर करने वाला तथ्य यह है कि जो कृष्ण से संबंधित न होकर एकमात्र अपने कार्य सिद्ध में लगा रहता है वह निश्चय ही दुखी और सदा ही अशांत रहता है। भले ही वह जीवन में आध्यात्मिकता और शांति की उन्नति का कितना भी दिखावा क्यों न करे। कृष्ण भावनामृत स्वयं ही प्रकट होने वाली शांतिमयी अवस्था है जिसकी प्राप्ति कृष्ण के संबंध से ही संभव है।