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Indian Grocery items list pdf in Hindi Download
पुस्तक का नाम | Indian Grocery items list pdf in Hindi |
साइज | 0.78 Mb |
पृष्ठ | 6 |
फॉर्मेट | |
श्रेणी | जनरल |
भाषा | हिंदी |
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सिर्फ पढ़ने के लिये
वहां उन जगद्गुरु श्रीहरि ने शिव भक्त शिरोमणि ब्रह्मर्षि दधीचि को प्रणाम करके क्षुव के कार्य की सिद्धि के लिए उद्यत हो उनसे यह बात कही – भगवान शिव की आराधना में तत्पर रहने वाले अविनाशी महर्षि दधीचि! मैं तुमसे एक वर मांगता हूँ उसे तुम मुझे दे दो।
क्षुव के कार्य की सिद्धि चाहने वाले देवाधिदेव श्रीहरि के इस प्रकार याचना करने पर शैवशिरोमणि दधीचि ने शीघ्र ही भगवान विष्णु से इस प्रकार कहा – ब्रह्मन! आप क्या चाहते है यह मुझे ज्ञात हो गया। आप क्षुव का काम बनाने के लिए साक्षात् भगवान श्रीहरि ही ब्राह्मण का रूप धारण करके यहां आये है। इसमें संदेह नहीं कि आप पूरे मायावी है।
किन्तु देवेश! जनार्दन! मुझे भगवान रूद्र की कृपा से भूत, भविष्य और वर्तमान तीनो कालो का ज्ञान सदा ही बना रहता है। सुव्रत! मैं आपको जानता हूँ। आप पापहारी श्रीहरि विष्णु है। यह ब्राह्मण का वेश छोड़िये। दुष्ट बुद्धि वाले राजा क्षुव ने आपकी आराधना की है।
भगवन! हरे! आपकी भक्तवत्सलता को भी मैं जानता हूँ। यह छल छोड़िये। अपने रूप को ग्रहण कीजिए और भगवान शंकर के स्मरण में मन लगाइये। मैं भगवान शंकर की आराधना में लगा रहता हूँ। ऐसी दशा में भी यदि मुझसे किसी को भय हो तो आप उसे यत्न पूर्वक सत्य की शपथ के साथ कहिए।
मेरा मन शिव के स्मरणो में ही लगा रहता है। मैं कभी झूठ नहीं बोलता। इस संसार में किसी देवता या दैत्य से भी मुझे भय नहीं होता। श्री विष्णु बोले – उत्तम व्रत का पालन करने वाले दधीचि! तुम्हारा भय सर्वथा नष्ट ही है क्योंकि तुम शिव की आराधना में तत्पर रहते हो। इसलिए सर्वज्ञ हो।
परन्तु मेरे कहने से तुम एक बार अपने प्रतिद्वंदी राजा क्षुव से जाकर कह दो कि राजेंद्र! मैं तुमसे डरता हूँ। भगवान विष्णु का यह वचन सुनकर भी शैवशिरोमणि महामुनि दधीचि निर्भय ही रहे और हंसकर बोले – मैं देवाधिदेव पिनाकपाणि भगवान शंभु के प्रसाद से कही कभी किसी से और किंचिन्मात्र भी नहीं डरता। सदा ही निर्भय रहता हूँ।
इस पर श्रीहरि ने मुनि को दबाने की चेष्टा की। देवताओ ने भी उनका साथ दिया किन्तु सबके सभी अस्त्र कुंठित हो गए। तदनन्तर भगवान श्री विष्णु ने अगणित गणो की सृष्टि की। परन्तु महर्षि ने उनको भी भस्म कर दिया। तब भगवान ने अपनी अनंत विष्णु मूर्ति प्रकट की।
यह सब च्यवनकुमार ने वहां जगदीश्वर भगवान विष्णु से कहा – महाबाहो! माया को त्याग दीजिए। विचार करने से यह प्रतिभा समात्र प्रतीत होती है। माधव! मैंने सहस्रो दुर्विजेय वस्तुओ को जान लिया है। आप मुझमे अपने सहित सम्पूर्ण जगत को देखिए। मैं आपको दिव्य दृष्टि देता हूँ।
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