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Important Days Pdf Download in Hindi

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मृत्यु के समय भक्तिपूर्वक भगवान का स्मरण – श्री कृष्ण कहते है – हे अर्जुन सुनो ! जो मृत्यु (व्यक्ति) के समय अपने प्राण को भौहो के मध्य स्थिर कर लेता है और योग शक्ति के द्वारा अविचलित मन से पूर्ण भक्ति के साथ परमेश्वर के स्मरण में अपने को लगाता है। वह निश्चित रूप से भगवान को प्राप्त होता है।
उपरोक्त शब्दों का तात्पर्य – यहां स्पष्ट किया गया है कि मृत्यु के समय मन को भगवान की भक्ति में स्थिर करना चाहिए, जो लोग योगाभ्यास करते है उनके लिए संस्तुति की गई है कि वह अपने प्राण को भौहो के बीच (आज्ञा चक्र) में ले आए।
योग के अभाव में चाहे वह षट्चक्र योग या भक्ति योग मनुष्य कभी भी मृत्यु के समय इस दिव्य (अवस्था) भाव को प्राप्त नहीं होता है। यहां पर षट्चक्रयोग के अभ्यास का प्रस्ताव है जिसमें छः चक्रो का ध्यान लगाया जाता है।
कोई भी मृत्यु के समय परमेश्वर का सहसा स्मरण नहीं कर पाता है। उसे किसी न किसी योग का विशेषतया भक्ति योग का अभ्यास होना चाहिए।
चूंकि मृत्यु के समय मनुष्य का मन अत्यधिक विचलित रहता है। अतः अपने जीवन में मनुष्य को योग के माध्यम से आध्यात्म का अभ्यास करना चाहिए।
परन्तु निरंतर कृष्ण भावनामृत में लीन रहने के कारण शुद्ध भक्त भगवत्कृपा से मृत्यु के समय योगाभ्यास के बिना भी स्मरण कर सकता है। इसकी व्याख्या चौदहवे श्लोक में की गई है।
11- भगवान द्वारा मुक्ति-लाभ की विधि वर्णन – श्री कृष्ण अर्जुन से कहते है – जो वेदो के ज्ञाता है, जो ओंकार का उच्चारण करते है और जो सन्यास आश्रम के बड़े-बड़े मुनि है वह ब्रह्म में प्रवेश करते है। ऐसी सिद्धि की इच्छा करने वाले ब्रह्मचर्य व्रत का अभ्यास करते है। अब मैं तुम्हे वह विधि बताऊंगा जिससे कोई भी व्यक्ति मुक्ति लाभ कर सकता है।
उपरोक्त शब्दों का तात्पर्य – श्री कृष्ण अर्जुन के लिए षट्चक्रयोग की विधि का अनुमोदन कर चुके है जिसमे प्राण को भौहो के मध्य स्थिर करना होता है।
यह मानकर कि हो सकता है कि अर्जुन को षट्चक्र योग अभ्यास न आता हो। कृष्ण आगे के श्लोक में इसकी विधि बताते है। ज्ञान की वैदिक पद्धति में छात्रों को आरंभ से गुरु के पास रहने ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए ओंकार का उच्चारण तथा परम निर्विशेष ब्रह्म की शिक्षा दी जाती है।
इस प्रकार वह ब्रह्म के दो स्वरूपों से परिचित होते है। यह प्रथा छात्रों के आध्यात्मिक जीवन के विकास के लिए आवश्यक है। किन्तु इस समय ऐसा ब्रह्मचर्य जीवन (अविवाहित जीवन) बिता पाना कदापि संभव नहीं है।
भगवान कहते है कि ब्रह्म यद्यपि अद्वितीय है किन्तु उसके अनेक स्वरुप होते है। विशेषतया निर्विशेषवादियो के लिए अक्षर या ओंकार ब्रह्म है। कृष्ण यहां पर निर्विशेष ब्रह्म के बिषय में बता रहे है जिसमे सन्यासी प्रवेश करते है।
ब्रह्मचर्य के बिना आध्यात्मिक उन्नति कर पाना अत्यंत ही कठिन है। विश्व का सामाजिक ढांचा इतना बदल चुका है कि छात्र जीवन के प्रारम्भ से ब्रह्मचर्य जीवन बिताना संभव नहीं है।
यद्यपि विश्व में ज्ञान की विभिन्न शाखाओ के लिए अनेक संस्थाए है किन्तु ऐसी मान्यता प्राप्त एक भी संस्था नहीं है जहां पर ब्रह्मचर्य के सिद्धांत के अनुरूप शिक्षा प्रदान की जाती हो।
अतः इस कलियुग के लिए शास्त्रों के आदेश के अनुसार भगवान चैतन्य ने घोषणा की है कि भगवान कृष्ण के पवित्र नाम हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे, राम राम हरे हरे। के जप के अतिरिक्त परमेश्वर के साक्षात्कार का कोई अन्य उपाय वही है।
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