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Ikahattar Kahaniyan Hindi PDF Free Download
स्वयं पर-आश्रित होने पर भी अपने पर आश्रितों का अदृश्य वोन्न!’ कर्त्तव्य- हीनता या पलायन का अपराधबोध! वह कहीं भीतर-ही-भीतर छटपटा रहा था। पर इस सबके बावजूद एक प्रकार का गहरा जुनून छाया हुआ थ। उसमें । जीवन में कुछ कर गुजरने की तमन्ना! इस घटाटाप अंधियारे में कहीं कुछ अदृश्य उजास की किरणें थीं।
सवेरे का एक भ्रम कहीं खींचे ले जा रहा था उसे। सवेरा न हो, कंवन रात ही रात हो, यह केसे हो सकता है! दिन-भर का हारा-थका, रात को अपने किसी रिश्तेदार के एक कमरे के ‘घर’ म॑ लौटता तो गहरा अंधियारा उसकी राह देख रहा होता। रिश्तेदार मिल मे मजदूर था।
अकेला था, अक्सर रात की पाली में वाहर रहता था। इसलिए इस चारपाई-भर लम्बे कमरे में सांस ले पाना सम्भव हो पाता था। दिल्ली के एक छोर मे बसी अनधिकृत गंदी वस्ती-वाग कड़े खां। वित्तेभर की ठौर! देवबल अधउखड़ा-सा टूटे फट्टे का एक झूलता हुआ दरवाजा।
जिसमें धूप, हवा, धूल, धुआं ही नहीं, वर्षा की बोछारों का पानी भी आराम से आर-पार हो जाता। जिस दिन रिश्तेदार की रात की ड्यूटी न होती, रिश्तेदार चारपाई पर सोता ओर वह चारपाई के पाए क॑ पास थोड़ी-सी जगह में पांव सिकोड़े अपने विस्तर पर पड़ा रात गुजार देता।
ऐसे में कभी वारिश हो जाती तो सुबह उठने पर लगता जेसे अभा-अभी किसी तालाब से उठकर आ रहा हो।
इतना सब होने पर भी उसे यह एकान्त, यह उमस-भरा अंधियारा कमरा बहुत अच्छा लगता। क्योकि गत को पढ़ने-लिखने का कुछ अवसर मिल जाता था यहां।
रूखा-सूखा कुछ चबाकर, हेंडपम्प का ढेर सारा ठंडा पानी पीता। चारपाई के नीचे रखे छोटे-से, रीते गोल ड्रम को खड़ा करता, उसके ऊपर अपना टिन का चौकोर पुराना बक्सा जमाकर, मेज का आकार दे देता। बैठने के लिए कुर्सी तो थी नहीं। इसलिए चारपाई की बांस की पाटी पर बैठ जाता और तमाम कागज-पत्तर फेलाकर लिखने लगता।
एक-एक कहानी कई-कई बार लिखता। जब तक सन््तोष न हो, लिखता रहता। एक-एक शब्द साफ, मोती-सा होना चाहिए, उसकी तब की धारणा आज तक ज्यों-की-त्यों बनी है। कितनी रातें इसी तरह जाग-जागकर वह बिता देता था!
पर उसका इस तरह जागना, जाग-जागकर लिखना।
उसके मकान मालिक को रास न आ पा रहा था। उसका धंधा दूध बेचने का था। बाहर-भीतर मैंसें, ही भैंसें। उसका कहना था कि इस तरह रात-भर बिजली जले रहने के कारण, उसकी भैंसें आराम की नींद सो नहीं पाती हैं, इसलिए दूध कम दे रही हैं।
भैंसों का इस तरह सो न पाना, जागते रहना और दूध कम देना, उसके मन में एक प्रकार की ग्लानि का भाव पैदा कर रहा था। उस पर मकान मालिक का यह कहना कि कमरा उसने एक छड़े के रहने के लिए दिया है, फिर दो के रहने का क्या औचित्य?
Ikahattar Kahaniyan Hindi PDF
पुस्तक का नाम | Ikahattar Kahaniyan Hindi PDF |
पुस्तक के लेखक | हिमांशु जोशी |
भाषा | हिंदी |
साइज | 24.3 Mb |
पृष्ठ | 426 |
श्रेणी | कहानियां |
फॉर्मेट |
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