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How To Talk To Anyone Pdf Download
पुस्तक का नाम | How To Talk To Anyone Pdf Hindi |
पुस्तक के लेखक | Leil Lowndes |
फॉर्मेट | |
भाषा | हिंदी |
साइज | 2.1 Mb |
पृष्ठ | 194 |
श्रेणी | आत्म सुधार |
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सिर्फ पढ़ने के लिये
अन्यथा मनुष्य रूप में प्रकट होने पर विषय में तुम अनजान ही बनी रहती। अब तुम दोनों दम्पति पुत्री भाव से अथवा दिव्य भाव से मेरा निरंतर चिंतन करते हुए मुझमे स्नेह रखो। इससे मेरी उत्तम गति प्राप्त होगी। मैं पृथ्वी पर अद्भुत लीला करके देवताओ का कार्य सिद्ध करुँगी।
ऐसा कहकर जगन्माता शिवा शांत हो गयी और उसी क्षण माता के देखते-देखते प्रसन्नता पूर्वक नवजात पुत्री के रूप में परिवर्तित हो गयी। ब्रह्मा जी कहते है – नारद! मेना के सामने महातेजस्विनी कन्या होकर लौकिक गति का आश्रय ले वह रोने लगी।
उसका मनोहर रुदन सुनकर घर की सभी स्त्रियां हर्ष से खिल उठी और बड़े वेग से प्रसन्नता पूर्वक वहां आ पहुंची। नील कमल दल के समान श्याम कांति वाली उस परम तेजस्विनी और मनोरम कन्या को देखकर गिरिराज हिमालय अतिशय आनंद में निमग्न हो गए।
तदनन्तर सुंदर मुहूर्त में मुनियो के साथ हिमवान ने अपनी पुत्री के काली आदि सुखदायक नाम रखे। देवी शिवा गिरिराज के भवन में दिनोदिन बढ़ने लगी। ठीक उसी तरह जैसे वर्षा के समय गंगा जी की जलराशि और शरद ऋतु के शुक्ल पक्ष में चांदनी बढ़ती है।
सुशीलता आदि गुणों से संयुक्त तथा बंधु जनो की प्यारी उस कन्या को कुटुंब के लोग अपने कुल के अनुरूप पार्वती नाम से पुकारने लगे। माता ने कालिका को उ मा कहकर तप करने से रोका था। मुने! इसलिए वह सुंदर मुख वाली गिरिराजनंदिनी आगे चलकर लोक में उमा के नाम से विख्यात हो गयी।
नारद! तदनन्तर जब विद्या के उपदेश का समय आया तब शिवा देवी ने अपने चित्त को एकाग्र करके बड़ी प्रसन्नता के साथ श्रेष्ठ गुरु से विद्या पढ़ने लगी। पूर्व जन्म की सारी विद्याये उन्हें उसी तरह प्राप्त हो गयी जैसे शरतकाल में हंसो की पांत अपने आप स्वर्गंगा के तट पर पहुँच जाती है और रात्रि में अपना प्रकाश स्वतः महौषधियो को प्राप्त हो जाता है।
मुने! इस प्रकार मैंने शिवा की किसी एक लीला का ही वर्णन किया है। अब अन्य लीला का वर्णन करूँगा सुनो। एक समय की बात है तुम भगवान शिव की प्रेरणा से प्रसन्नता पूर्वक हिमाचल के घर गए। मुने! शिवतत्व के ज्ञाता और उनकी लीला के जानकारों में श्रेष्ठ हो।
नारद! गिरिराज हिमालय ने तुम्हे घर पर आया देख प्रणाम करके तुम्हारी पूजा की और अपनी पुत्री को बुलाकर उससे तुम्हारे चरणों में प्रणाम करवाया। मुनीश्वर! फिर स्वयं ही तुम्हे नमस्कार करके हिमाचल ने अपने सौभाग्य की सराहना की और अत्यंत मस्तक झुका हाथ जोड़कर तुमसे कहा।
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