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गोपालपुर रियासत में भानू नामक राजा का शासन था। वह बहुत विनोदी स्वभाव का राजा था तथा अपनी प्रजा की सुविधा का बहुत ध्यान रखता था। भानू राजा के राज्य में जोखन नामक एक नाई रहता था। वह राजा भानू का राजशाही नाई था।

 

 

 

जोखन नाई प्रतिदिन राजा के शरीर की मालिश किया करता था तथा राज्य की सारी गतिविधियों की जानकारी राजा को बताता रहता था। जिससे राजा भानू को राज्य व्यवस्था को सुचारु रखने में सहायता मिलती थी। राजा भानू के सिर में दो सींग उगे हुए थे।

 

 

 

वह अपने सिर को कभी खुला नहीं रखता था सदैव ही मुकुट धारण किये रहता था। एक दिन जोखन राजा भानू का उनके उनके विशेष कक्ष में शरीर की मालिश कर रहा था जोखन नाई राजा भानू से बोला – महाराज क्या मैं आज आपके सिर में तेल डालकर कंघी कर दूँ?

 

 

 

राजा भानू ने जोखन नाई से कहा – यदि तुम्हारी इच्छा है तो हमारे सिर में तेल डालकर कंघी कर दो। राजा भानू प्रायः जोखन को अपने सिर में कंघी करने से मना कर देता था लेकिन आज उसे भी अपने सिर में सींग की बात विसर गयी थी। राजा भानू की आज्ञा मिलते ही जोखन नाई ने जैसे ही राजा भानू के सिर से मुकुट उतारा वैसे ही हड़बड़ा कर पीछे हट गया और गिरते-गिरते किसी तरह बचा।

 

 

 

राजा भानू ने जोखन नाई से पूछा – क्या हुआ जोखन जोखन तुम इतनी हड़बड़ाहट में क्यों हो? जोखन नाई बोला – महाराज! आप पहले मुझे अभय दान दीजिए कि मुझे कोई दंड नहीं देंगे। राजा भानू ने कहा – मैं तुम्हे कोई दंड नहीं दूंगा। अब हमे बताओ क्या बात है?

 

 

 

राज भानू को ज्ञात हो चुका था कि जोखन नाई के ऊपर उसका भेद खुल चुका है फिर भी वह जोखन नाई के मुख से सुनना चाहता था। जोखन नाई डरते हुए बोला – महाराज! आपके सिर में दो सींग उगे हुए है। राजा भानू ने गंभीर मुद्रा में कहा – यह राज अपने तक ही सिमित रखना।

 

 

 

अगर दूसरे के मुख से यह बात हमारे कान तक पहुँच गयी तब समझ लेना कि तुम्हारी खैर नहीं। जोखन नाई डरते हुए बोला – यह राज मैं किसी से नहीं कहूंगा महाराज! जोखन घर आ गया। लेकिन उसकी रातो की नींद और दिन का चैन उड़ गया था।

 

 

 

हमेशा हंसमुख और मिलनसार रहने वाला जोखन नाई अब गुमसुम और एकांत प्रिय हो गया था उसे डर था कि उसके हंसमुख स्वभाव के कारण यह सींग वाला राज कही खुल गया तो उसे राजा की तरफ से अवश्य ही दंड मिलेगा। वह अंदर ही अंदर घुटता जा रहा था।

 

 

 

उसे ऐसी वेदना थी जिसे वह किसी कह भी नहीं सकता था और सह भी नहीं सकता था। इसी चिंता में वह घूमते हुए जंगल की तरफ निकल गया। जंगल की ताज़ी हवा से उसे बहुत संतोष प्राप्त हुआ। वह घूमते हुए जंगल में एक चंदन के पेड़ के नीचे जा पहुंचा और खुद से ही बात करने लगा।

 

 

 

जोखन बोलता जा रहा था कि आज मैं कौन सी मुसीबत में पड़ गया ऐसा राजा मैंने अपनी जिंदगी मे पहली बार देखा है जिसके सिर में एक नहीं दो सींग है जोखन नाइ समझ रहा था कि यहां उसकी बात सुनने वाला कोई भी नहीं है इसलिए वह बिना किसी दबाव के अपनी बात खुद से ही कह सुन रहा था।

 

 

 

लेकिन जिस चंदन के वृक्ष के नीचे जोखन नाई खुद से बात कर रहा था वह चंदन का वृक्ष जोखन की बातो को अपने अंदर आत्मसात कर रहा था। दैवयोग से एक दिन राज दरबार में वाद्य यंत्र बनाने वाला व्यापारी आया। उसने राजा से वाद्य यंत्र बनाने के लिए चंदन की लकड़ी देने की याचना किया।

 

 

 

राजा भानू अपने अपने मंत्री से बोले कि इस व्यापारी को इसका मनचाहा चंदन का वृक्ष दे दो। राजा का व्यापारी को लेकर जंगल में गया तो उस व्यापारी को वही चंदन का वृक्ष पसंद आया जिसके नीचे बैठकर जोखन खुद से राजा और उसके सिर के सींग के विषय में बात किया था।

 

 

 

लकड़ी का व्यापारी उस चंदन के वृक्ष को खरीद लिया तथा उसकी लकड़ी से तीन वाद्य यंत्रो का निर्माण किया। वह तीन वाद्य यंत्र ‘सारंगी, तबला और सितार’ थे। गोपालपुर रियासत में वार्षिक उत्सव का आयोजन था। उसके उपलक्ष्य में राज दरबार में संगीत का आयोजन किया गया था।

 

 

 

गायन शुरू होने वाला था। राजा के आज्ञा की प्रतीक्षा थी। राजा भानू ने संगीत शुरू करने की आज्ञा प्रदान कर दिया। सभी साजिंदे अपने वाद्य यंत्रो को जागृत कर दिए। पहला नंबर सारंगी वाले का था। उसने जैसे ही सारंगी से सुर निकाला तो सारंगी बोली – राजा के सिर पर दो सींग।

 

 

 

अगला नंबर सितार वाले का था उसने जैसे ही सितार के तार पर अपनी ऊँगली को फेरा तब उसमे से ऐसा सुर निकला – किसने कहा किसने कहा। अब तबला वादक का नंबर आया उसने जैसे ही तबले पर थाप लगाई तब उसमे से सुर निकला – जोखन नाई कहा जोखन नाई कहा।

 

 

 

एक दो बार तो किसी ने ध्यान नहीं दिया लेकिन साजिंदे कितनी बार भी राग बदलने की कोशिस करते पर यही आवाज वाद्य यंत्रो से निकल रही थी। सारंगी बोलती राजा के सिर पर दो सींग सितार बोलता किसने कहा किसने कहा तबला बोलता जोखन नाई ने कहा जोखन नाई ने कहा।

 

 

 

अब तो उत्सव के रंग को बदरंग होना ही था। राजा भानू ने कड़कती आवाज में कहा – इन सभी वाद्य यंत्रो को बंद करो तथा इन सभी साजिंदों को पकड़कर जेल में डाल दो। राजा की आज्ञा से सभा में सन्नाटा छा गया। राजा के मंत्री ने जोखन नाई को बुलाकर शहानुभूति पूर्वक पूछा तो उसने सारी बात सच्चाई पूर्वक बता दिया कि उसने जंगल में चंदन के वृक्ष के नीचे खुद से ही यह सारी बात कही थी।

 

 

 

अब मंत्री ने बिगड़ती हुई स्थिति को संभालते हुए कहा – हमारे महाराज बहुत प्रजावत्सल है तथा सदैव अपनी प्रजा का ख्याल रखते है तथा गुणवानो की कद्र करते है इसलिए सींगो वाला अवगुण कोई महत्व नहीं रखता है। मंत्री की युक्ति पूर्ण बातो से राजा भानू प्रसन्न हो गए तथा सारी सभा राजा और मंत्री की जयकार करने लगी तथा जोखन नाई को भी अभय दान मिल गया।

 

 

 

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