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Hanuman Sampurn Matra Pdf
पुस्तक का नाम | हनुमान सम्पूर्ण मंत्र |
पुस्तक की भाषा | हिंदी, संस्कृत |
श्रेणी | धार्मिक |
फॉर्मेट | |
कुल पृष्ठ | 1 |
साइज | 73 Kb |







सिर्फ पढ़ने के लिए
सभा को भयभीत होते देखकर रावण ने हंसकर युक्ति रचना करते हुए कहा – सिरों का गिरना भी जिसके लिए निरंतर शुभ होता रहा है। उसके लिए मुकुट का गिरना अपशकुन कैसा?
अपने घर जाकर सयन करो डरने की कोई बात नहीं है। तब सब लोग सिर नवाकर घर चले गए। जब से कर्णफूल पृथ्वी पर गिरा तब से मंदोदरी के हृदय में सोच बस गया।
नेत्रों में जल भरकर दोनों हाथ जोड़कर वह रावण से कहने लगी – हे प्राणनाथ! मेरी वीनती सुनिए, हे प्रियतम! श्री राम जी से विरोध छोड़ दीजिए उन्हें मनुष्य जानके मन ममी हठ मत करिये।
14- दोहा का अर्थ-
मेरे इन वचनो पर विश्वास कीजिए वह रघुकुल के शिरोमणि श्री राम जी विश्वरूप है, यह सारा विश्व उन्ही का ही रूप है। वेद जिनके अंग-अंग में लोको की कल्पना करते है।
चौपाई का अर्थ-
पाताल जिन विश्वरूप भगवान का चरण है, सिर ब्रह्मलोक है, अन्य लोक का विश्राम जिनके अन्य भिन्न-भिन्न अंगो पर है। जिनके भृकुटि का संचालन भयंकर काल है, सूर्य नेत्र है, बाल बादलो का समूह है।
अश्विनी कुमार जिनकी नासिका है, रात और दिन जिनकी अपार निमेष “पलक गिराना और खोलना” है, दिग्पाल भुजाये है। पावक मुख है, वरुण जीभ है। उत्पत्त्ति पालन और प्रलय जिनकी चेष्टा ‘क्रिया’ है।
अठारह प्रकार की असंख्य वनस्पतियां जिनकी रोमावली है, पर्वत अस्थिया है, नदियां नसों का जाल है, समुद्र पेट है और निम्न इंन्द्रियाँ ही नरक है। इस प्रकार प्रभु विश्वमय है अधिक कल्पना क्या किया जाय?
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