मित्रों इस पोस्ट में Hanuman Ashtak Lyrics दी गयी है। आप नीचे Hanuman Ashtak Lyrics in Hindi With Meaning पढ़ सकते हैं।
Hanuman Ashtak Lyrics हनुमान अष्टक हिंदी में
बाल समय रवि भक्षी लियो तब,
तीनहुं लोक भयो अंधियारों।
ताहि सों त्रास भयो जग को,
यह संकट काहु सों जात न टारो।
देवन आनि करी बिनती तब,
छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो।
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो। को नहीं जानत – १
बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि,
जात महाप्रभु पंथ निहारो।
चौंकि महामुनि साप दियो तब ,
चाहिए कौन बिचार बिचारो।
कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु,
सो तुम दास के सोक निवारो। को नहीं जानत – २
अंगद के संग लेन गए सिय,
खोज कपीस यह बैन उचारो।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु ,
बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो।
हेरी थके तट सिन्धु सबे तब ,
लाए सिया-सुधि प्राण उबारो। को नहीं जानत – ३
रावण त्रास दई सिय को सब ,
राक्षसी सों कही सोक निवारो।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु ,
जाए महा रजनीचर मरो।
चाहत सीय असोक सों आगि सु ,
दै प्रभुमुद्रिका सोक निवारो। को नहीं जानत – ४
बान लाग्यो उर लछिमन के तब ,
प्राण तजे सूत रावन मारो।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत ,
तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो।
आनि सजीवन हाथ दिए तब ,
लछिमन के तुम प्रान उबारो। को नहीं जानत – ५
रावन जुध अजान कियो तब ,
नाग कि फाँस सबै सिर डारो।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल ,
मोह भयो यह संकट भारो।
आनि खगेस तबै हनुमान जु ,
बंधन काटि सुत्रास निवारो। को नहीं जानत – ६
बंधू समेत जबै अहिरावन,
लै रघुनाथ पताल सिधारो।
देवहिं पूजि भलि विधि सों बलि ,
देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो।
जाये सहाए भयो तब ही ,
अहिरावन सैन्य समेत संहारो। को नहीं जानत – ७
काज किये बड़ देवन के तुम ,
बीर महाप्रभु देखि बिचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को ,
जो तुमसे नहिं जात है टारो।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु ,
जो कछु संकट होए हमारो। को नहीं जानत – ८
लाल देह लाली लसे , अरु धरि लाल लंगूर।
वज्र देह दानव दलन , जय जय जय कपि सूर।।
हनुमान अष्टक अर्थ के साथ
हनुमानाष्टक का अर्थ है आठ पद्य में हनुमान जी को प्रसन्न करने का प्रयास करना। हनुमान जी महाबली है अर्थात उनके समान या उनका सामना करने में कोई सक्षम नहीं है।
दुष्टो के संहारक है और ज्ञानियों के सर्वोच्च स्तर को छूने वाले यानी कि ज्ञानियों में सर्वोत्तम श्रेष्ठ बानर समूह में अग्रणी यानी कि वानर समूह के मुखिया है। ऐसे जानकी बल्लभ श्री राम जी के प्रिय भक्त को बारंबार नमन करता हूँ।
Hanuman Ashtak In Hindi With Meaning
ऊपर आपने हनुमान अष्टक पढ़ा होगा। आप यहां पर Hanuman Ashtak in Hindi With Meaning पढ़ सकते हैं।
1. बाल समय रवि भक्ष लियो, तब तिनहु लोक भयो अंधियारो।
ताहि सो त्रास भई जग को, यह संकट काहु सो जात न टारो।।
देवन आनि करी विनती, तब छाड़ि दियो रवि कष्ट निवारो।
को नहि जानत है जग में, कपि संकट मोचन नाम तिहारो।। Hanuman Ashtak Lyrics
अर्थ – बात त्रेता युग की है माता अंजनी के लाल, कपीश्वर केशरी के सुपुत्र ‘श्री हनुमान जी’ जब अपनी बाल्य अवस्था में थे तब उन्हें भूख लगी थी। ‘बाल हनुमान’ माता अंजनी के समीप गए और भोजन की मांग करने लगे। उस समय माता अंजनी अपने आराध्य की पूजा करने जा रही थी। उन्होंने बाल हनुमान से कहा, “बेटा, जाओ जो कोई ‘लाल’ रंग का फल होगा उसे खाकर तुम अपनी क्षुधा को शांत करो तब तक मैं अपने आराध्य की पूजा करके आती हूँ।”
माता का आदेश था ‘बाल हनुमान’ के लिए माँ का आदेश सर्वोपरि था। उस समय प्रातः काल का समय था। भगवान ‘रवि’ जगत को प्रकाशित करने के लिए धीरे-धीरे नीलांबर की तरफ बढ़ ही रहे थे कि ‘बालक हनुमान’ ने सोचा शायद यही वह लाल फल है जिसे ‘माता’ ने कहा है खाने के लिए और ‘बाल हनुमान’ देवो के तेज से जिनका प्रादुर्भाव हुआ था।
तेजोमयी ‘माता’ अंजनी के दुलारे और ओजमय पिता केशरी के नंदन ‘भगवान रवि’ को ‘लाल फल’ समझकर आकाश की तरफ गतिमान हो गए और देखते ही देखते ‘भगवान रवि’ को अपने मुख के भीतर समाहित कर लिया तो अब क्या था तीनो लोक, चौदह भुवन में अंधेरा छा गया और सब तरफ हाहाकार मच गया था और किसी को भी (नर, मुनि, नाग, किन्नर, यक्ष गंधर्व, देव दानव इत्यादि) समझ नहीं आया अर्थात सबकी समझ से परे की बात थी कि यह कैसी त्रासद घड़ी आ गई जगत के लिए और यह संकट जो उपस्थित हुआ था (अंधकार छा गया था) किसी में इतनी भी सामर्थ्य नहीं थी कि इस संकट को किसी भी प्रकार टाल सके।
फिर तो सभी देवताओ ने मंत्रणा करके ‘शंकर सुवन, अंजनी नंदन’ की विनती करना ही श्रेष्ठ उपाय समझा और ‘बाल हनुमान’ की आर्द स्वर में विनती करने लगे। माता अंजनी भी अपनी आराधना छोड़कर देव समूह के समक्ष उपस्थित होकर अपने लाल ‘बाल हनुमान’ को समझाने लगी कि ‘भगवान रवि’ को मुक्त करो।
‘बाल हनुमान’ के लिए ‘माता अंजनी’ का आदेश सर्वोपरि था। तब ‘माता अंजनी’ के आदेश पर और देव गणो के द्वारा स्तुति करने पर ही ‘केशरी नंदन, पवन पुत्र’ ने ‘भगवान रवि’ को अपने मुख के अंदर से बाहर निकाल दिया।
‘भगवान रवि’ के प्रकाशित होते ही ‘अखिल ब्रह्माण्ड’ में ज्योति व्याप्त हो गई और ‘तम’ का पलायन हो गया था। हे महावीर ‘हनुमान’ ऐसा ‘अखिल ब्रह्माण्ड’ में कौन है जो आपके इस ‘संकट मोचन’ नाम के स्वरूप को नहीं जानता है।
2. बालि की त्रास कपीश बसै, गिरिजात महाप्रभु पंथ निहारो।
चौकि महामुनि श्राप दियो, तब चाहिए कौन उपाय बिचारो।।
कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु, सो तुम तासु के संकट टारो।।
को नहि जानत है जग में, कपि संकट मोचन नाम तिहारो।।
अर्थ – वानर राज बालि और सुग्रीव दोनों भाई थे। मायावी नामक दैत्य ने एक बार वानर राज बालि को अर्ध रात्रि के समय युद्ध के लिए ललकार दिया था। तब वानर राज ने उस मायावी नामक दैत्य की ललकार को सहन नहीं कर सका और अर्ध रात्रि के समय ही उस मायावी दैत्य को दण्डित करने के लिए चल पड़ा।
सुग्रीव वानर राज बालि का लघु अनुज था। वह भी अपने ज्येष्ठ भ्राता की सहायता के लिए पीछे-पीछे चल पड़ा। यद्यपि ‘वानर राज’ बालि खुद ही इतना समर्थ था कि ‘मायावी’ जैसे दसियों दैत्य को एक साथ दण्डित कर सकता था क्योंकि उसे वरदान प्राप्त था कि वह अपने दुश्मन का ‘चाहे वह कोई भी हो’ उसका आधा बल अपनी तरफ खींच लेता था।
(एक समय लंकाधिपति दशानन रावण ने वानर राज को जीतने की इच्छा से युद्ध किया और वानर राज ने अपने स्वभावानुसार ‘रावण’ का आधा बल खींच लिया और उसे एक माह तक अपने हाथ के नीचे कांख में दबाकर रखा हुआ था।) ‘वानर राज बालि’ को अपनी तरफ दौड़कर आते देख ‘मय दानव का पुत्र मायावी’ भागते हुए एक गिरि कंदरा में छुप गया था।
वानर राज दौड़ते हुए उस गिरि कंदरा के समीप पहुंच चुके थे पीछे से अनुज सुग्रीव भी आ गए थे। तब वानर राज ने अपने अनुज सुग्रीव से कहा, “मैं गिरि कंदरा में जाकर उस मयसुत मायावी को मारकर आऊंगा तब तक तुम हमारा यहां कंदरा के बाहर हमारी प्रतीक्षा करना।”
धीरे-धीरे एक माह का समय व्यतीत होने पर उस गिरि कंदरा से ‘रुधिर’ की धारा बाहर आने लगी। यह देखकर ‘वानर राज बालि’ का अनुज अपना धैर्य खो बैठा। उसे समझ में आया कि ‘मय दानव के पुत्र मायावी’ ने ‘वानर राज बालि’ का वध कर दिया है, अतः वह अब हमे आकर अवश्य मार डालेगा।
यह सोचकर ‘वानर राज बालि’ के अनुज ने एक बड़ा सा शिला खंड उठाकर उस गिरि कंदरा के मुख पर रखकर अपने राज्य की तरफ पलायन कर गया था। इसलिए ही ‘वानर राज बालि’ अपने अनुज सुग्रीव से बैर रखने लगा था। अपने ज्येष्ठ भ्राता से डरने के कारण ही सुग्रीव आकर एक पर्वत “ऋष्यमूक” पर रहने लगा था क्योंकि बालि की ‘उड्डंदता’ के कारण ‘ऋष्यमूक’ पर्वत पर रहने वाले तपस्वियों ने ‘वानर राज’ को ‘श्राप’ दिया था कि तुम जब भी यहां आओगे तब ही तुम्हे ‘मृत्यु’ अपना आहार बना लेगी। इसीलिए सुग्रीव “ऋष्यमूक” पर्वत पर रहकर ‘महाप्रभु श्री राम’ के आने की ‘प्रतीक्षा’ करने लगा था।
कालांतर में समय व्यतीत हुआ और ‘प्रभु श्री राम जी’ का आगमन ‘ऋष्यमूक’ पर्वत की तरफ हुआ। सुग्रीव तो खुद ही डरा हुआ था। उसने अपने विशिष्ट दूत ‘श्री पवन पुत्र हनुमान’ को यह पता लगाने के लिए ही पठाया कि जाकर देखो कही ‘वानर राज बालि’ ने इन दोनों ‘मनुष्यो’ को हमे मारने के लिए तो नहीं भेजा है। ऐसी कोई संभावना होने पर हमे ‘संकेत’ देकर समझा देना और मैं अपनी सुरक्षा के लिए यह पर्वत तुरंत ही छोड़ दूंगा।
तब महावीर ‘हनुमान’ ने सुग्रीव की आज्ञा मानकर ब्राह्मण का वेष बनाया और ‘श्री राम लक्ष्मण’ के समक्ष पहुंच गए और सारी बातो को संक्षेप में बताकर उन्हें अपने साथ लेकर आए और सुग्रीव के संकट का यथोचित समाधान कर दिया। हे महावीर, आंजनेय, हनुमान जी ऐसा कौन है इस जगत में जो आपके ‘संकट मोचन’ नाम को नहीं जानता है।
3. अंगद के संग लेन गए सिय, खोज कपीश यह बैन उचारो।
जीवित न बचिहौ हम सो जु, बिना सुधि लाए इहा पगु धारो।।
हारि थके तट सिंधु सबै तब, लाए सिया सुधि प्रान उबारो।
को नहि जानत है जग में, कपि संकट मोचन नाम तिहारो।। Hanuman Ashtak Lyrics
अर्थ – अंगद जो कि सुग्रीव के भाई ‘वानर राज’ का लड़का था। उसके साथ सभी बंदरो का समूह था। उन सबके साथ ‘हनुमान जी’ भी थे। सभी को सुग्रीव ने ‘माता सीता’ का पता लगाने के लिए भेज दिया था और साथ में यह चेतावनी भी दे रखी थी कि जो कोई भी बिना ‘माता सीता’ का पता लगाए हमारे समक्ष उपस्थित होगा तो हम उसे प्राणदंड देंगे, अर्थात वह जीवित यहां हमारे समक्ष उपस्थित नहीं हो पाएगा उसकी मृत्यु संभव है।
सुग्रीव ने ‘माता सीता’ की खोज के लिए वानर समूह की चार टोलिया बनाई हुई थी और प्रत्येक टोली के एक मुखिया (नायक) के साथ चारो दिशाओ में प्रस्थान करने के लिए कह दिया था। दक्षिण दिशा की तरफ जो वानर समूह गया था, उसके नायक ऋक्षराज वयोबृद्ध बुद्धिमान जांबवंत (जो सुग्रीव के मंत्री भी थे) थे और उस समूह में महावीर हनुमान का भी समावेश था। सुग्रीव के राज्य में एक ‘मधुवन’ नाम का सुंदर उद्यान था। उसमे अनेक प्रकार के सुंदर फल थे।
सुग्रीव ने कह रखा था कि जो समूह सबसे पहले ‘माता सीता’ का पता लगाकर आएगा उस समूह को ही इस मधुवन के फल खाने की आज्ञा है, अन्यथा बिना पता लगाए इस ‘उद्यान’ में किसी भी समूह का प्रवेश वर्जित है। दक्षिण दिशा में ढूढ़ते हुए वानर समूह समुद्र के तट पर पहुंच गया था। सभी वानरों के साथ ऋक्षराज जांबवंत भी ‘किंकर्तव्य विमूढ़’ हो गए थे। समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाय ?
तब अंगद ने कहा कि हम लोगो की तो दोनों तरफ से ही मृत्यु होगी। कारण कि बिना ‘सीता माता’ का पता लगाए हम लोग लौटेंगे तब महाराज सुग्रीव हम लोगो को अवश्य ही मार डालेंगे। हमे तो वह पहले ही मार डालते लेकिन ‘श्री राम जी’ की अनुकम्पा (निहोरा) से मे बच गया हूँ। तब सभी एक स्वर में कहने लगे, “ठीक ही तो है ‘राम के काज में मृत्यु भी अच्छी है’ जिस तरह गीधराज ‘जटायु’ ने राम काज में अपने प्राणो का ‘उत्सर्ग’ कर दिया था। वैसे ही हम लोग भी अपने प्राणो को त्याग देंगे। हम लोगो से अच्छा तो वह गीधराज ‘जटायु’ था जो राम काज में अपने प्राणो को न्यौछावर कर दिया था।”
गीधराज ‘जटायु’ और संपाती नामक दो भ्राता थे। एक बार दोनों भाइयो ने आपस में भगवान ‘सूर्य’ तक पहुँचने की होड़ लगा रखी थी। संपाती को अपने बल का गर्व था। वह ‘भगवान दिनकर’ को लक्ष्य करके उनके समीप पहुंचने की कोशिश में लग गया जबकि उसका भाई ‘जटायु’ भगवान दिनकर के तेज को सहन नहीं कर सकने के कारण वापस धरा पर आ गया था। लेकिन ‘भगवान दिनकर’ के प्रचंड तेज को संपाती भी नहीं सहन कर सका उसके दोनों पंख जल गए और चिल्लाते हुए धरा पर एक गिरि कंदरा के समीप गिर गया और तड़पने लगा। तब एक मुनि ‘जिनका नाम चन्द्रमा था’ उनसे संपाती की दयनीय हालत देखी नहीं गई।
‘चन्द्रमा मुनि’ ने संपाति से कहा, “जब सीता की खोज में वानर समूह यहां समुद्र तट पर आएगे तब उनकी सहायता तुम्हे करनी होगी, उसके बाद तुम अपनी पहले वाली अवस्था में आ जाओगे।”
वानर समूह से अपने भ्राता ‘जटायु’ की बात सुनकर संपाती ‘गिरि कंदरा’ से बाहर आया। इतने विशाल गीध राज को देखकर वानर समूह को अपनी ‘मृत्यु संभव’ प्रतीत होने लगी थी। लेकिन जटायु का भाई संपाती’ अपने बंधु के द्वारा की गई कहानी को सुनना चाहता था इसलिए उसने ‘संपाती’ ने सभी वानरो को ‘अभय’ प्रदान करते हुए पूछा, “जटायु ने क्या किया जो तुम लोग उसके नाम का स्मरण कर रहे थे।”
तब जांबवंत ने ‘जटायु’ के पराक्रम की गाथा कह सुनाई कि उसने ‘श्री राम की भार्या’ जानकी को ‘लंकाधिपति रावण’ के चंगुल से छुड़ाने में अपने प्राणो को ‘उत्सर्ग’ कर दिया। जिसकी ‘सद्गति’ श्री राम ने खुद अपने कर कमलो से की थी।”
तब संपाती ने अपने भाई की ‘तिलांजली’ समुद्र के तट पर किया और फिर सबके सम्मुख उपस्थित होकर कहने लगा, “मैं अब वृद्ध हो चुका हूँ नहीं तो मैं तुम्हारी अवश्य ही ‘सहायता’ करता। मैं यहां से बैठे-बैठे ही देख रहा हूँ (क्योंकि गीध की दृष्टि बहुत तीव्रगामी होती है) लंकाधिपति रावण ने ‘माता सीता’ को अपने राज्य के ‘उपवन’ (अशोक वाटिका) में रखा हुआ है अब तुम लोगो में जो इस विशाल (महासागर) को लांघ सकता है वही सीता माता का पता लगा सकेगा।”
अब बहुत विकट समस्या यह थी कि इतना विशाल महासागर कोई लांघने की कल्पना भी नहीं कर सकता था। तब युवराज अंगद ने जांबवंत से कहा, “मैं समुद्र को पार कर सकता हूँ लेकिन वहां से वापस नहीं आ पाऊंगा क्योंकि मुझे एक ऋषि का श्राप मिला हुआ है। वहां हमारी मृत्यु संभव है।”
तब जांबवंत ने कहा, “हे युवराज मैं जानता हूँ। इसलिए तुम्हे सागर के पार भेजकर मैं वानर समूह का “नेतृत्व” विहीन नहीं करूँगा। यह शुभ कार्य तो महावीर पवन पुत्र ही संपन्न करेगे और इस शुभ कार्य को ‘हनुमान जी’ ने ही संपन्न किया और सभी वानर समूह के प्राणो की रक्षा किया। हे महावीर कपीश आपके इस (संकट मोचन) के नाम को जगत का कौन सा प्राणी नहीं जानता है अर्थात आपको सभी ‘संकट मोचन’ के रूप में जानते है।
4. रावण त्रास दई सिय को सब, राक्षसि सो कहि सोक निवारो।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु, जाय महा रजनीचर मारो।।
चाहत सिय अशोक सो आगि, सु दै प्रभु मुद्रिका शोक निवारो।
को नहि जानत है जग में, कपि संकट मोचन नाम तिहारो।।
अर्थ – बुद्धिमान जांबवंत ने जब अंजनी सुत महावीर के पराक्रम को जागृत किया तब महावीर ‘हनुमान’ ने अपने बहुत विशालकाय रूप को धारण किया। उस समय हनुमान जी का रूप स्वर्ण के वर्ण के समान था और तन से अतिसय तेज का प्रवाह हो रहा था।
ऐसा प्रतीत होता था गोस्वामी तुलसी दास के शब्दों में कि मानो जीवित अवस्था में सचल मुद्रा धारण किए हुए पर्वत राज स्वयं आ खड़ा हुआ है और हनुमान जी उस समय बार-बार सिंघनाद कर रहे थे और ऐसा प्रतीत हो रहा था कि खेल-खेल में ही इस विशाल सागर को लांघ जाएगे और हनुमान जी ने जांबवंत से कहा, “हे विवेकशील ऋक्ष पति मैं आपसे पूछता हूँ आप हमे उचित मार्ग दर्शन दीजिए कि हमे क्या करना है ?”
तब बुद्धिमान जांबवंत ने कहा, “हे पौरुषेय महावीर आंजनेय आपको सिर्फ ‘माता सीता’ की सुधि लेकर वापस आना है। बाकी का सारा कार्य तो ‘श्री समर्थ रघुनाथ जी’ के हाथो संपन्न होना है।”
उसके बाद बुद्धि निपुण जांबवंत की आज्ञा शिरोधार्य करके ‘हनुमान’ जी ने सभी साथियो को मस्तक झुकाकर प्रणाम किया और अपने हृदय में भगवान ‘रघुनाथ’ का स्मरण किया फिर समुद्र के किनारे एक सुंदर पर्वत के ऊपर कौतुक करते हुए चढ़ गए और भगवान ‘राम’ का स्मरण करते हुए जोर की दहाड़ लगाई और जिस पर्वत के ऊपर हनुमान ने आरोहण किया था। वह पर्वत उनके विशाल रूप का भार सहन नहीं कर सका और तुरंत ही पाताल में प्रविष्ठ कर गया और जिस तरह ‘श्री राम’ का बाण अमोघ रूप से चलता है और कभी निष्फल होकर नहीं लौटता है। उसी तरह से ‘हनुमान’ जी चल पड़े।
जब देवताओ ने ‘पवन सुत’ को जाते हुए देखा तब उनके मन में ‘हनुमान’ की शक्ति को जानने के लिए और उनकी बुद्धि की विशेष परीक्षा लेने का विचार आया। तब सभी देवताओ ने सर्पो की माता को जिसका नाम ‘सुरसा’ था उसे परीक्षा लेने के लिए ‘हनुमान’ के सम्मुख भेज दिया। तब ‘सुरसा’ ने ‘हनुमान जी’ का रास्ता रोकते हुए कहा, “आज देवताओ ने हमे बहुत सुंदर आहार दिया है। अतः मैं तुम्हे खा जाऊंगी।”
तब रामदूत बजरंग बली ने ‘सुरसा’ से अपने रास्ते का अवरोध समाप्त करने के लिए कहा। लेकिन जब सुरसा ने किसी भी प्रकार से पवन पुत्र को आगे बढ़ने से रोक दिया तब महावीर हनुमान जी बोले, “ठीक है। अब तुम हमे खाकर ही अपनी क्षुधा शांत करो।”
तब ‘सुरसा’ ने एक जोजन (एक जोजन – एक सौ की दूरी) तक अपने मुख का विस्तार कर लिया था। तब महावीर हनुमान ने अपने स्वरूप को ‘दो जोजन’ तक विस्तारित कर दिया। उसके बाद फिर ‘सुरसा’ ने सोरह जोजन तक अपने स्वरूप का विस्तार किया फिर तो महावीर का स्वरूप बत्तीस जोजन तक विस्तारित हो गया था। इसी तरह सुरसा अपने स्वरूप का जितना ही विस्तार करती थी। पवन पुत्र ठीक उससे दूना अपने स्वरूप का विस्तार करते थे।
अंत में सुरसा के पास सिर्फ एक ही विकल्प बचा था। वह हारकर ‘एक सौ जोजन’ में अपने स्वरूप का विस्तार किया तब बुद्धि के धनी पवन पुत्र ने ‘राम काज को विलंब’ करना उचित नहीं समझा और ‘अति लघु’ रूप को धारण करते हुए सुरसा के बदन में (मुख) में बैठकर बाहर आ गए और फिर सुरसा को शीश झुकाकर जाने की आज्ञा मांगी। तब ‘सुरसा’ ने पवन पुत्र को आशीर्वाद दिया (राम का सब कार्य) तुम्हारे द्वारा अवश्य ही संपन्न होगा। इतना कहकर सुरसा चली गई।
इसी तरह ‘राम के आशीर्वाद’ से ‘महावीर’ हर रुकावटों को पार करते हुए उस जगह पहुंच गए जहां रावण ने सीता माता को अपने अशोक उद्यान में रखा हुआ था। ‘लंकाधिपति रावण’ ने ‘सीता माता’ को अशोक वृक्ष के नीचे रख छोड़ा था। जहां भयानक मुख वाली राक्षसी सीता जी को त्रास दे रही थी और रावण के पक्ष में अपना मत व्यक्त करने के लिए कह रही थी। तब महावीर ने उस समय जाकर उन भयानक राक्षस और राक्षसियो को मार भगाया और जिस समय सीता जी व्यथित होकर अशोक वृक्ष से अंगार (आग) की कामना कर रही थी। उसी समय श्री हनुमान जी ने श्री राम जी द्वारा प्रदत्त मुद्रिका नीचे गिरा दिया और सीता जी के शोक का निवारण किया। हे महावीर कपीश आपके इस ‘संकट मोचन’ स्वरूप को इस संसार में कौन नहीं जानता है।
5. बान लाग्यो उर लक्ष्मण के तब, प्राण तजे सुत रावण मारो।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत, तबै गृह द्रोन सुवीर उपारो।।
आनि संजीवन हाथ दई तब, लक्षिमन के तुम प्रान उबारो।
को नहि जानत है जग में, कपि संकट मोचन नाम तिहारो।। Hanuman Ashtak Lyrics
अर्थ – राम और रावण के समर में मेघनाद जो रावण का हर तरह से सुयोग पुत्र था। बहुत ही घनघोर बदलो के सदृष्य जिसकी आवाज थी। जिसने युद्ध में देवताओ के राजा इंद्र को भी जीत लिया था इसलिए उसका नाम इंद्रजीत भी था। मेघनाद से लक्ष्मण का भयंकर युद्ध चल रहा था। शेषावतार ने अपने युद्ध कौशल से निशाचर पति के पुत्र मेघनाद को तीक्ष्ण बाणो से विकट परिस्थिति में पहुंचा दिए थे जहां उसका बचना संभव प्रतीत नहीं होता था।
उसी समय मेघनाद ने ब्रह्मा जी से प्रदत्त शक्ति “वीर घातिनी” का प्रहार लक्ष्मण जी के ऊपर कर दिया। ब्रह्मा जी के द्वारा प्रदान की हुई शक्ति का निष्फल होने का तो सवाल ही नहीं था। वह शेषावतार के हृदय में आकर प्रहार करती हुई ब्रह्मलोक गमन कर गई। शक्ति के प्रहार से जब श्री राम जी के अनुज मूर्छित होकर धरती पर गिर गए तब रामादल में हाहाकार मच गया। उसी समय मेघनाद ने श्री लक्ष्मण को उठाकर लंका ले जाने की असफल कोशिश करने लगा।
लेकिन सारे ब्रह्माण्ड को अपने ऊपर धारण करने वाले फणीश्वर को उठाना तो दूर एक इंच वह इंद्रजीत हिला भी नहीं सका और खुद ही लज्जित होकर चला गया। तब महावीर हनुमान जी ने लक्ष्मण को अपने बाहो में उठाकर रणक्षेत्र से बाहर लाए और मेघनाद के ऊपर पलटवार किया जिससे वह मरते-मरते बच गया।
विभीषण जो रावण के अनुज थे उनके कहने पर महावीर हनुमान जी ने सुषेन बैद्य को लंका में जाकर घर के समेत ही उठा लाए क्योंकि वही ‘वीर घातिनी’ नामक शक्ति का उपचार जानता था। सुषेन बैद्य ने कहा, “कोई अगर द्रोणागीर पर्वत से जाकर संजीवनी नामक औषधि को लेकर आए तब ही लक्ष्मण को बचाना संभव होगा अन्यथा नहीं।”
अब तो सभी की नजरे महावीर हनुमान पर टिकी हुई थी और महावीर ने निराश नहीं किया। महावीर ‘हनुमान’ जी ने समूचे द्रोणागीर पर्वत को उठाकर ले आए। जिसमे से सुषेन बैद्य ने संजीवनी औषधि निकालकर लक्ष्मण को पिलाई और इस तरह से ‘हनुमान’ जी के प्रयास से लक्ष्मण को पुनर्जीवन प्राप्त हो सका। हे महावीर कपीश आपके इस ‘संकट मोचन’ नाम को संसार में ऐसा कौन है जो नहीं जानता है।
6. रावन युद्ध अजान कियो तब, नाग की फास सबै सिर डारो।
श्री रघुनाथ समेत सबै दल, मोह भयो यह संकट भरो।।
आनि खगेश तबै हनुमान जु, बंधन काटि सुत्रास निवारो।
को नहि जानत है जग में, कपि संकट मोचन नाम तिहारो।।
अर्थ – जब लंकाधिपति रावण के बड़े-बड़े शूर वीर मारे जा चुके थे तब रावण अपनी बची हुई सेना के साथ समर में अपने कौशल का अद्वितीय प्रदर्शन करते हुए मानव तन धारी श्री राम और लक्ष्मण को नागपाश में जकड़ दिया और श्री राम और लक्ष्मण मोह निशा में मग्न हो गए। श्री राम और लक्ष्मण को मोह निशा में गया देख कर रामदल में शोक व्याप्त हो गया था। तब देवर्षि नारद ने श्री गरुड़ को हनुमान जी के साथ पठाया और गरुड़ ने आते ही मोह रूपी ब्याल के बंधन से श्री राम जी को और लक्ष्मण जी को उस त्रास से मुक्ति प्रदान किया। हे महावीर कपि श्रेष्ठ ऐसा कौन है जो आपके इस ‘संकट मोचन’ स्वरूप को नहीं जानता।
7. बंधु समेत जबै अहिरावण, लै रघुनाथ पाताल सिधारो।
देवहि पूजी भली विधि सो बलि, देउ सबै मिली मंत्र विचारो।।
जाय सहाय भयो तबही, अहिरावण सैन्य समेत संहारो।
को नहि जानत है जग में, कपि संकट मोचन नाम तिहारो।। Hanuman Ashtak Lyrics
अर्थ – लंकाधिपति रावण का एक पराक्रमी बेटा और था जो पाताल लोक में अपने ननिहाल में शाशन करता था। वह हर प्रकार का स्वरूप बनाने में सक्षम था। रावण ने अपने पुत्र अहिरावण को पाताल लोक से बुलाया और कहा, “तुम श्री राम और लक्ष्मण का हरण करके ले जाओ और दोनों को हमारे रास्ते से हटाकर हमारा कार्य सफल बनाओ।”
तब अहिरावण ने सोचा श्री राम और लक्ष्मण को ले जाना संभव नहीं होगा क्योंकि राम और लक्ष्मण की रखवाली स्वयं महावीर ‘हनुमान’ करते थे। इसलिए उसने अपने चाचा विभीषण का स्वरूप बनाकर श्री राम और लक्ष्मण को पाताल में उठा ले गया। सुबह होते ही रामदल में बेचैनी बढ़ गई तब पवन सुत हनुमान ने विभीषण से कहा, “रात्रि के समय तो आप ही हमारी सुरक्षा में श्री राम और लक्ष्मण से मिलने के लिए आए थे।”
अब तो विभीषण के समझते देर नहीं लगी विभीषण ने पवन सुत से कहा, “हमारे जैसा स्वरूप तो केवल एक व्यक्ति बना सकता है। वह है पाताल लोक का राजा अहिरावण। वह रावण का बेटा है। उसने ही ऐसा किया है। अतः हे महावीर बिना बिलंब किए ही आप पाताल लोक में जाकर श्री राम और लक्ष्मण को अहिरावण से मुक्त कराकर लाओ।”
इतना सुनते ही महावीर पाताल लोक के लिए तुरंत ही प्रस्थान कर गए। पाताल लोक में अहिरावण ने अपने मंत्रियों से मंत्रणा करने के उपरांत अपने कुलदेवी को खुश करने के लिए पूजा का आयोजन किया था और श्री राम और लक्ष्मण से कहने लगा, “कि जो तुम्हे सबसे ज्यादा प्रिय हो उसे याद कर लो क्योंकि यहां से तुम दोनों का बचकर निकलना बहुत ही असंभव है।”
श्री राम जी को आभास हो गया था कि महावीर ‘हनुमान’ हमारी सहायता के लिए आ गए है। उधर हनुमान जी अहिरावण की कुलदेवी के समक्ष उपस्थित थे। तब अहिरावण की कुलदेवी महावीर को आर्शीवाद देकर अदृश्य हो गई थी। अब तो अहिरावण जितना भी भोग अर्पण करता महावीर सब ग्रहण कर जाते थे। यह दृश्य देखकर अहिरावण बहुत खुश था।
तब श्री राम ने कहा, “हमे तो सबसे प्रिय हमारे अनुज भरत प्रिय है लेकिन इस समय तो हमारे सबसे प्रिय महावीर हनुमान की याद आ रही है।”
इतना सुनते ही महावीर साक्षात् ‘कारल काल’ बनकर कूद पड़े और अहिरावण का विनाश करके श्री राम और लक्ष्मण को पाताल से वापस ले कर आए। हे महावीर कपीश आपके इस ‘संकट मोचन’ स्वरूप को संसार में कौन नहीं जानता है।
8. काज किए बड़ देवन के, तुम वीर महाप्रभु देखि विचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को, जो तुमसो नहीं जात है टारो।।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु, जो कुछ संकट होय हमारो।
को नहि जानत है जग में, कपि संकट मोचन नाम तिहारो।।
अर्थ – हे महावीर आपके द्वारा देवताओ के अनेको कार्य सिद्ध हो चुके है और आप अपने भक्तो को भी शुभ फल प्रदान करते है। आप थोड़ा विचार करके देखिए आपके लिए तो कोई भी कार्य असंभव नहीं हो सकता है जो आप इस गरीब के दुःख संकट का निवारण नहीं कर सकते ऐसा कौन सा कठिन दुखर कार्य है जो आप नहीं कर सकते है। हे महावीर प्रभु हमारे ऊपर आए हुए संकट को जल्द ही दूर कीजिए। हे कपीश महावीर ऐसा कौन है जो इस जगत में आपके ‘संकट मोचन’ स्वरूप को नहीं जानता है।
लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर।
बज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर।।
हे पवन पुत्र आपकी देह लाल है, आपका यह शरीर लाल वर्ण से कांतिमय होकर सुशोभित हो रहा है। आपके समस्त अंगो की आभा रक्ताभ वर्ण की है जिसमे आपकी पूंछ भी लाल होकर अप्रतिम सुंदर प्रतीत हो रही है। आप अपने बज्र के रूप के समान देह से असुर दानव को परास्त करते है। अर्थात, आसुरी स्वभाव वालो को प्रताड़ित करते है। उनके अहंकार का दलन (मर्दन) करते है। हे सूरवीर कपीश्वर आपकी जय हो जय हो जय हो
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