Gunahon Ka Devta PDF मित्रों इस पोस्ट में डाक्टर धर्मवीर भारती के बारे में बताया गया है। आप उनके द्वारा रचित बुक यहां से Gunahon Ka Devta PDF Free Download कर सकते हैं और आप यहां से Dharamvir Bharati Books Hindi PDF भी बुक्स डाउनलोड कर सकते हैं।
Gunahon Ka Devta PDF Free Download
1- Andha Yug PDF Free Download
2- Nadi Pyasi Thee PDF Free Download
8- Kanupriya PDF Free Download
9- Suraj Ka Satvan Ghoda PDF Free सूरज का सातवां घोड़ा
10- Nikash निकष
11- मुर्दों का गाँव
गुनाहो का देवता के बारे में
अगर हिंदी साहित्य की लोकप्रिय किताबो की बात करे तो उसमे गुनाहो का देवता का बेहद खास स्थान है। पूरे देशभर में विभिन्न भाषाओ में यह धर्मवीर भारती का लोकप्रिय उपन्यास प्रकाशित हो चुका है। इस कहानी में मूल जगह जहां से यह शुरू होती है वह अंग्रेजो के जमाने का इलाहबाद अब (प्रयागराज) है।
कहानी के तीन मुख्य पात्र है – चन्दर, सुधा और पम्मी। पूरा उपन्यास इन्ही तीनो के इर्द-गिर्द घूमता है। चन्दर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर यानी कि सुधा के पिता का प्रिय शिष्य है और वे भी चन्दर को बहुत मानते है। यह प्रेम के निश्छल रूप पर आधारित बहुत ही खूबसूरत उपन्यास है। आप इसे अवश्य ही पढ़े।
Dharamvir Bharati Short Biography in Hindi
( 25 दिसम्बर 1926 से 4 सितम्बर 1997 ) धर्मवीर भारती को 1972 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वह एक प्रख्यात पत्रिका धर्म युग के संपादक भी रह चुके थे।
सूरज का सातवां घोड़ा उनकी कहानी सृजन की क्षमता का अनुपम उदाहरण है। वह हिंदी साहित्य के प्रमुख लेखकों और विचारकों में अपना अलग स्थान रखते है।
धर्मवीर भारती की एक कहानी पर आधारित एक प्रमुख फिल्म कार ने फिल्म का निर्माण किया था। डॉक्टर भारती का जन्म उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जनपद में एक छोटे से गांव अतरसुइया में हुआ था।
डॉक्टर भारती को धर्म युग के संपादन से अधिकाधिक पहचान मिली। सूरज का सातवां घोड़ा, कनुप्रिया इत्यादि रचनायें हिंदी साहित्य में अपनी विशिष्ट पहचान रखती है।
प्रयाग विश्वविद्यालय में अध्यापन के दौरान “हिंदी साहित्य कोश” के संपादन में अपना योगदान दिया। 1948 में संगम संपादक श्री इलाचंद्र जोशी में सहकारी संपादक नियुक्त हुए। डॉक्टर भारती ने आलोचना का संपादन भी किया उसके बाद धर्म युग के प्रधान संपादक के पद पर मुम्बई आ गए थे।
नाटक “अंधा युग” चार दशक बीतने के बाद भी कुशलता का परिचय देते हुए मंचित हो रहा है। 1987 में डॉक्टर भारती ने अवकाश ग्रहण कर लिया था। डॉक्टर भारती के ऊपर एक युवा कहानीकार के निर्देशन में एक वृत्त चित्र का निर्माण भी हुआ है।
डॉक्टर भारती की प्रमुख कृतियों में कहानी और काव्य रचनाओं का अनमोल संग्रह है। डॉक्टर भारती का ललित रचनाओं का संग्रह “ठेले पर हिमालय” के रूप में मूर्त रूप ले चुका था और शोध प्रबंध “सिद्ध साहित्य” भी अस्तित्व में आ चुका था। शोध कार्य पूरा करने के पश्चात डॉक्टर भारती की प्रयाग विश्ववद्यालय में प्राध्यापक के पद पर नियुक्ति हो गई थी।
गुनाहों का देवता के बारे में
अगर हिंदी साहित्य की लोकप्रिय किताबो की बात करे तो उसमे गुनाहो का देवता का बेहद खास स्थान है। पूरे देश भर में विभिन्न भाषाओ में यह धर्मवीर भारती का लोकप्रिय उपन्यास प्रकाशित हो चुका है।
इस कहानी में मूल जगह जहां से यह शुरू होती है वह अंग्रेजो के जमाने का इलाहबाद (अब प्रयागराज) है। कहानी के तीन मुख्य पात्र है – चन्दर, सुधा और पम्मी। पूरा उपन्यास इन्ही तीनो के इर्द-गिर्द घूमता है।
चन्दर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर यानी कि सुधा के पिता का प्रिय शिष्य है और वे भी चन्दर को बहुत मानते है। यह प्रेम के निष्छल रूप पर आधारित बहुत ही खूबसूरत उपन्यास है। आप इसे अवश्य ही पढ़े।
Suraj Ka Satwan Ghoda PDF Free Download सूरज का सातवां घोड़ा PDF Free
मित्रों यहां सूरज का सातवां घोड़ा के बुक के बारे में बताया गया है। यह श्री धर्मवीर भारती द्वारा लिखा गया है। आप यहां से सूरज का सातवां घोड़ा फ्री डाउनलोड Suraj Ka Satvan Ghoda PDF Free कर सकते हैं।
हिंदी कहानी
किसी शहर में एक विद्वान मास्टर रहते थे और अपने दायित्व से मुक्त होकर भगवान की आराधना में अपना बचा हुआ जीवन समर्पित कर दिया था। लेकिन यहां भी सांसारिक मनुष्यों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। हर कोई उनके पास अपनी कठिनाइयों का समाधान पूछने आ जाता था।
मास्टर कोई ज्योतिषी या बैद्य तो नहीं थे जो सबको एक साथ ही समाधान बता देते। रविवार का दिन था एक-एक करके उनके पास 20 आदमी आ गए थे और सभी की अपनी कुछ न कुछ कठिनाइयां थी और सभी लोगों को सबसे पहले ही अपनी कठिनाई का समाधान चाहिए था।
मास्टर जी ने एक युक्ति निकाली और सभी लोगों से एक-एक मिट्टी का घड़ा मंगाकर उस पर अपना नाम लिखने के लिए कह दिया। सभी लोग अपने साथ लाये मिट्टी के घड़े नाम लिख दिया। मास्टर जी ने सभी आदमियों का नाम लिखा हुआ घड़ा एक-एक करके कमरे में रखवा दिया।
सभी लोगों का कौतुहल बढ़ता जा रहा था। तभी मास्टर ने सभी लोगों को आज्ञा दी, “आप लोग अपने-अपने नाम का घड़ा लेकर आइये।”
सभी लोग एक साथ ही कमरे में घुस गए और अपने नाम का घड़ा तलासने लगे। लेकिन किसी को भी सफलता नहीं मिली हां इस अफरा तफरी के माहौल में सारे के सारे घड़े अवश्य टूट गए थे।
सभी खाली हाथ मास्टर के सामने आये, लेकिन मास्टर ने दुबारा फिर उन सभी को वैसा करने के लिए कहा। लेकिन इस बार कह दिया था कि सावधानी पूर्वक घड़ा लाना है घड़ा टूटना नहीं चाहिए। सभी ने कमरे में जाकर एक दूसरे की मदद की और जल्द ही सभी लोग अपना घड़ा सुरक्षित लेकर आ गए थे।
मास्टर ने उन सभी लोगों से कहा, ” आप लोग किसी भी समस्या का समाधान चाहते है लेकिन जल्दी से। किसी भी कार्य को करने के लिए धैर्य और समय की जरूरत होती है। समाधान अवश्य होता है।” सभी लोगों को अपने प्रश्नों ( कठिनाइयों ) का उत्तर मिल गया था।
एक कुम्हार था। वह बहुत ही बढ़िया कारीगर था। उसे बहुत सुंदर मूर्तियां भी बनाने में महारथ हासिल थी और वह पानी पीने का पात्र भी बनाता था।
एक दिन वह जिस मिट्टी से पानी पीने का पात्र बनाता था। उसी मिट्टी से एक सुंदर देवी प्रतिमा बनाने का विचार किया और उसने उस मिट्टी को और गुथने का कार्य चालू किया तो मिट्टी से और भी आवाज आने लगी।
“अरे कुम्हार भाई तुम तो हमें पहले ही बहुत तकलीफ दे चुके हो अब और कितना परेशान करोगे।” कुम्हार ने उस मिट्टी से पानी पीने वाला पात्र ही बना दिया। उसके बाद उसने दूसरी मिट्टी को खूब अच्छे से गुथना चालू किया कई बार उस मिट्टी को रौंदा पटका फिर कंकड़ पत्थर निकालकर उस मिट्टी को मूर्ति बनाने के योग्य किया।
अब बहुत ही सुंदर मूर्ति तैयार हो गई थी। किसी दूसरे गांव में कुम्हार की बनायी हुई मूर्ति की स्थापना मंदिर में की गई और बहुत सारे लोग आमंत्रित हुए थे। जलपान की और प्रसाद की सुंदर व्यवस्था थी। मिट्टी के बने पात्र में सबको प्रसाद और पीने के लिए पानी दिया जा रहा था।
सभी लोग प्रसाद खाकर और पानी पीकर उस मिट्टी के पात्र को फेक देते थे, जो सभी के पैरों तले कुचले जा रहे थे। रात के सन्नाटे में टूटे हुए पात्र उस मूर्ति से कह रहे थे, “तुम्हारा भाग्य प्रबल है लोग तुम्हारी पूजा कर रहे है, लेकिन हमें पैरों तले रौंदा जा रहा है। जबकि हम दोनों एक ही कुम्हार द्वारा बनाये गए है।”
मूर्ति बोली, “तुम ठीक कहते हो, अगर तुम उस दिन थोड़ा तकलीफ सहन कर लेते तब कुम्हार तुम्हे ही मूर्ति बनता और आज तुम्हारी पूजा होती। लेकिन तुमने थोड़ा सा भी तकलीफ सहन नहीं किया, इसलिए तुम्हारी यह दसा हुई है।” पानी पीने वाले पात्र को अपनी गलती का एहसास हो गया था।
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