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Griha Pravesh puja Samagri list Pdf Download
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सिर्फ पढ़ने के लिये
उसके बाहरी भाग में नंदा और अलकनंदा ये दोनों अत्यंत पावन दिव्य सरिताए बहती है जो दर्शनमात्र से प्राणियों के पाप हर लेती है। यक्षराज कुबेर की अलकापुरी और सौगंधिक वन को पीछे छोड़कर आगे बढ़ते हुए देवताओ ने थोड़ी ही दूर पर शंकर जी के वटवृक्ष को देखा।
उसने चारो ओर अपनी अविचल छाया फैला रखी थी। वह वृक्ष सौ योजन ऊँचा था और उसकी शाखाये पचहत्तर योजन तक फैली हुई थी। उसपर कोई घोसला नहीं था और ग्रीष्म का ताप तो उससे सदा दूर ही रहता था। बड़े पुण्यात्मा पुरुषो को ही उसका दर्शन हो सकता है।
वह परम रमणीय और अत्यंत पावन है। वह दिव्य वृक्ष भगवान शंभु का योगस्थल है। योगियों के द्वारा सेव्य और परम उत्तम है। मुमुक्षुओं के आश्रयभूत उस महयोगमय वट वृक्ष के नीचे विष्णु आदि सब देवताओ ने भगवान शंकर को विराजमान देखा।
मेरा पुत्र महासिद्ध सनकादि, जो सदा शिव भक्त में तत्पर रहने वाले और शांत है बड़ी प्रसन्नता के साथ उनकी सेवा में बैठे थे। भगवान शिव का श्रीविग्रह परम शांत दिखाई देता था। उनके सखा कुबेर जो गुह्यको और राक्षसों के स्वामी है अपने सेवकगणो तथा कुटुंबीजनों के साथ सदा विशेष रूप से उनकी सेवा किया करते है।
वे परमेश्वर शिव उस समय तपस्वीजनों को परम प्रिय लगने वाला सुंदर रूप धारण किए बैठे थे। भस्म आदि से उनके अंगो की बड़ी शोभा हो रही थी। भगवान शिव अपने वत्सल स्वभाव के कारण सारे संसार के सुहृद है। नारद! उस समय वे एक कुशासन पर बैठे थे और सब संतो के सुनते हुए तुम्हारे प्रश्न करने पर तुम्हे उत्तम ज्ञान का उपदेश दे रहे थे।
वे बायां चरण अपनी दायी जांघ पर और बायां हाथ बाए घुटने पर रखे कलाई में रुद्राक्ष की माला डाले सुंदर तर्कमुद्रा से विराजमान थे। इस रूप में भगवान शिव का दर्शन करके उस समय विष्णु आदि सब देवताओ ने हाथ जोड़ मस्तक झुकाकर तुरंत उनके चरणों में प्रणाम किया।
मेरे साथ भगवान विष्णु को आया देख सत्पुरुषों के आश्रयदाता भगवान रूद्र उठ खड़े हो गए और उन्होंने सिर झुकाकर उन्हें प्रणाम भी किया। फिर विष्णु आदि सब देवताओ ने जब भगवान शिव को प्रणाम कर लिया तब उन्होंने मुझे नमस्कार किया।
ठीक उसी तरह जैसे लोको को उत्तम गति प्रदान करने वाले भगवान विष्णु प्रजापति कश्यप को प्रणाम करते है। तत्पश्चात देवताओ, सिद्धो, गणाधीशो और महर्षियो से नमस्कृत तथा स्वयं भी नमसकरा करने वाले भगवान शिव से श्रीहरि ने आदरपूर्वक वार्तालाप आरंभ किया।
देवताओ ने भगवान शिव जी की अत्यंत विनय के साथ स्तुति करते हुए अंत में कहा – आप पर, परमेश्वर, परात्पर तथा परात्परतर है। आप सर्वव्यापी विश्वमूर्ति महेश्वर को नमस्कार है। आप विष्णु कलत्र, विष्णु क्षेत्र, भानु, भैरव, शरणागतवत्सल, त्र्यंबक तथा विहरणशील है।
आप मृत्युंजय है। शोक भी आपका ही रूप है आप त्रिगुण एवं गुणात्मा है। चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि आपके नेत्र है। आप सबके कारण तथा धर्म मर्यादा स्वरुप है। आपको नमस्कार है। आपने अपने ही तेज से सम्पूर्ण जगत को व्याप्त कर रखा है।
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