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Geet Govind Pdf in Hindi Download


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सिर्फ पढ़ने के लिये
यदि मूंग से पूजा की जाय तो शिव भगवान सुख प्रदान करते है। प्रियंगु द्वारा सर्वाध्यक्ष परमात्मा शिव का पूजन करने मात्र से उपासक के धर्म, अर्थ और काम भोग की वृद्धि होती है तथा वह पूजा समस्त सुखो को देने वाली होती है। अरहर के पत्तो से श्रृंगार करके भगवान शिव की पूजा करे।
यह पूजा नाना प्रकार के सुखो और सम्पूर्ण फलो को देने वाली है। मुनिश्रेष्ठ! अब फूलो की लक्ष संख्या का तौल बताया जा रहा है प्रसन्नता पूर्वक सुनो। सूक्ष्म मान का प्रदर्शन करने वाले व्यास जी ने एक प्रस्थ शंखपुष्प को एक लाख बताया है। ग्यारह प्रस्थ चमेली के फूल हो तो वही एक लाख फूलो का मान कहा गया है।
जूही के एक लाख फूलो का भी वही मान है। राई के एक लाख फूलो का मान साढ़े पांच प्रस्थ है। उपासक को चाहिए कि वह निष्काम होकर मोक्ष के लिए भगवान शिव की पूजा करे। भक्ति भाव से विधि पूर्वक शिव की पूजा करके भक्तो को पीछे जलधारा समर्पित करनी चाहिए।
ज्वर में जो मनुष्य प्रलाप करने लगता है उसकी शांति के लिए जलधारा शुभ कारक बताई गयी है। शत रूद्रिय मंत्र से, रुद्री के ग्यारह पाठों से, रूद्र मंत्रो के जप से, पुरुषसूक्त से, छः ऋचा वाले रूद्र सूक्त से, महामृत्युंजय मंत्र से, गायत्री मंत्र से अथवा शिव के शास्त्रोक्त नामो के आदि में प्रणव और अंत मर नमः पद जोड़कर बने हुए मंत्रो द्वारा जलधारा आदि अर्पित करनी चाहिए।
सुख और संतान की वृद्धि के लिए जलधारा द्वारा पूजन उत्तम बताया गया है। उत्तम भस्म धारण करके उपासक को प्रेम पूर्वक नाना प्रकार के शुभ एवं दिव्य द्रव्यों द्वारा शिव की पूजा करनी चाहिए और शिव पर उनके सहस्र नाम मंत्रो से घी की धारा चढ़ानी चाहिए।
ऐसा करने से वंश का विस्तार होता है इसमें संशय नहीं है। इसी प्रकार यदि दस हजार मंत्रो द्वारा शिव की पूजा की जाय तो प्रमेह रोग की शांति होती है और उपासक को मनोवांछित फल की प्राप्ति हो जाती है। यदि कोई नपुंसकता को प्राप्त हो तो वह घी से शिव जी की भली-भांति पूजा करे तथा ब्राह्मणो को भोजन कराये।
साथ ही उसके लिए मुनीश्वरो ने प्राजापत्य व्रत का भी विधान किया है। यदि बुद्धि जड़ हो जाय तो उस अवस्था में पूजक को केवल शर्करा मिश्रित दुग्ध की धारा चढ़ानी चाहिए। ऐसा करने पर उसे वृहस्पति के समान उत्तम बुद्धि प्राप्त हो जाती है।
जब तक दस हजार मंत्रो का जप पूरा न हो जाय तब तक पूर्वोक्त दुग्ध धारा द्वारा भगवान शिव का उत्कृष्ट पूजन चालू रखना चाहिए। जब तन-मन में अकारण ही उच्चाटन होने लगे जो उचट जाय, कही भी प्रेम न रहे, दुःख बढ़ जाय और अपने घर में हमेशा कलह रहने लगे तब पूर्वोक्त से दूध की धारा चढाने से सारा दुःख खत्म हो जाता है।
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