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Gayatri Tantra Pdf / गायत्री तंत्र पीडीएफ


सिर्फ पढ़ने के लिए
2- हे प्रभो! अब आप मुझे वही मंत्र दीजिए जिस प्रकार से मैं मुनियो के द्रोही राक्षसों को भगा दूँ। प्रभु की वाणी सुनकर मुनि मुस्कराते हुए बोले – हे नाथ! आपने क्या समझकर मुझसे यह प्रश्न किया है।
3- हे पापो का नाश करने वाले! मैं तो आपके भजन के प्रभाव से ही थोड़ी सी महिमा जनता हूँ। आपकी माया तो गूलर के वृक्ष के समान है और अनेको ब्राह्मण के समूह ही जिसके फल है।
4- चर और अचर जीव गूलर के भीतर रहने वाले छोटे-छोटे जन्तुओ के समान उन ब्रह्माण्ड रूपी फलो के भीतर बसते है और वह अपने उस छोटे से जगत के सिवा दूसरा कुछ नहीं जानते। उन फलो का भक्षण करने वाला कठिन और कराल काल है। वह काल भी सदा आपसे भयभीत रहता है।
5- वही आपने समस्त लोकपालों के स्वामी होकर भी मुझसे मनुष्य की तरह प्रश्न किया। हे कृपा के धाम! मैं तो यह वर मांगता हूँ कि आप श्री सीता जी और छोटे लक्ष्मण जी सहित मेरे हृदय में सदा निवास कीजिए।
6- मुझे प्रगाढ़ भक्ति, वैराग्य, सत्संग और आपके चरण कमल में अटूट प्रेम प्राप्त हो। यद्यपि आप अखंड और अनंत ब्रह्म है जो अनुभव से ही जानने में आते है और जिनका संत जन भजन करते है।
7- यद्यपि मैं आपके ऐसे रूप को जानता हूँ और उसका वर्णन भी करता हूँ तो भी मैं लौटकर आपके इस सगुण ब्रह्म तथा आपके इस सुंदर स्वरुप में ही प्रेम मानता हूँ। आप सेवको को सदा ही बड़ाई करते है इसीलिए हे रघुनाथ जी! आपने मुझसे पूछा है।
8- हे प्रभो! एक परम मनोहर और पवित्र स्थान है उसका नाम पंचवटी है। हे प्रभो! आप दंडक वन को जहां पंचवटी है उसको पवित्र कीजिए और श्रेष्ठ मुनि गौतम जी के कठोर शाप को हर लीजिए।
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