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Funny Drama Script Pdf











10- बेग़म का तकिया
11- बच्चों की कचहरी
सिर्फ पढ़ने के लिए
राग द्वेष से मुक्त इन्द्रिय संयम से (भगवान की पूर्ण कृपा) – श्री कहते है – जो व्यक्ति समस्त राग तथा द्वेष से मुक्त होकर एवं अपनी इन्द्रियों को संयम द्वारा वश में करने में समर्थ है ऐसा व्यक्ति भगवान की पूर्ण कृपा प्राप्त कर सकता है।
उपरोक्त शब्दों का तात्पर्य – यह पहले ही बताया जा चुका है कि कृत्रिम विधि से इन्द्रियों पर वाह्य रूप से तो नियंत्रण किया जा सकता है किन्तु जब तक इन्द्रियों को भगवान की दिव्य सेवा में नहीं लगाया जाता है तब तक पतन होने की या नीचे गिरने की संभावना अधिक बनी रहती है।
कृष्ण की इच्छा होने पर ही भक्त सामान्यतया अवांछित कार्य कर सकता है किन्तु कृष्ण की यदि इच्छा नहीं है तो वह (भक्त) उस कार्य को भी नहीं करेगा जिसे वह सामान्य रूप से अपने लिए करता है। यद्यपि पूर्णतया कृष्ण भावनाभावित व्यक्ति ऊपर से विषयी स्तर पर भले ही प्रतीत होता है किन्तु कृष्ण भावनाभावित होने से वह विषय कर्मो में आसक्त नहीं होता है।
अतः कर्म करना या न करना उसके वश में रहता है क्योंकि वह केवल कृष्ण के निर्देश के अनुसार ही कार्य करता है। उसका एकमात्र उद्देश्य तो एकमात्र कृष्ण को प्रसन्न करना रहता है। अन्य कुछ नहीं, उसका हर कार्य ऐसा होता है जिससे कृष्ण प्रसन्न होते है। यही चेतना भगवान की अहैतुकी कृपा है जिसकी प्राप्ति भक्त को इन्द्रियों में आसक्त होते हुए भी हो सकती है।
इस तरह से अंजली एक वर्ष में दस से बारह लाख रुपये कमा लेती थी। डा. निशा भारती अब सरिता के हाथ पीले करने के लिए सोच रही थी लेकिन उन्हें कोई योग्य लड़का नहीं दिख रहा था। सोचते हुए उनकी निगाह सुधीर के ऊपर जाकर ठहर गयी थी।
प्रताप भारती ने तुरंत ही अपनी लड़की निशा भारती को फोन किया और बिना किसी भूमिका के उन्होंने निशा भारती से कह दिया कि सरिता के लिए मेरी नजर में एक लड़का है और उसका नाम सुधीर है। सुधीर के नाम से निशा भारती चौंक गयी और पूछ बैठी कौन सुधीर?
प्रताप भारती ने कहा हमारे मित्र रघुराज सोनकर का छोटा लड़का उसका ही नाम सुधीर है और वह रजनी के साथ इस समय अपनी खुद की खिलौना और घरेलू सामान बनाने की कम्पनी चला रहा है और वह भी विंदकी में ही और उसकी कम्पनी को मैं अपनी आँखों से देखकर आया हूँ।
तुम्हे खुद देखना है तो समय निकालकर चली जाना रघुराज सोनकर के पास वह तुम्हे सुधीर से मिला देंगे और साथ में सरिता और रोशन को भी लेती जाना वह लोग भी सुधीर की कम्पनी देख लेंगे। सभी लोगो का कुशल क्षेम पूछने के बाद प्रताप भारती ने फोन रख दिया।
सरिता ने अपनी सहेली अंजली को फोन मिलाया। दूसरी तरफ से अंजली ने फोन उठाकर ‘हैलो’ किया तो सरिता बोली क्या चल रहा है उसी समय दूसरी तरफ से अंजली बोली वही चित्र बनाने का कार्य चल रहा है। सरिता बोली कोई सहायक क्यों नहीं रख लेती।
अंजली बोली इसमें सहायक के लिए कही कोई जगह नहीं है। इसमें अपनी सोच को ही आकार देना पड़ता है हमारी सोच को दूसरा कोई कैसे आकार दे सकता है? सरिता बोली तुम हमसे कभी मिल नहीं सकती हो क्या? अंजली ने उत्तर दिया क्या करूँ समय ही नहीं मिलता है क्योंकि यह कार्य तो ऐसा है कि जब ही कोई विचार मन में उत्पन्न हो जाता है उसे तुरंत ही मूर्त रूप देना पड़ता है।
ठीक है कलाकार महोदय अब हम खुद ही तुम्हारे घर आकर तुम्हे अपने साथ ले जायेंगे तो हमारे साथ चलोगी ना यह बात सरिता ने अंजली से कहा था। ठीक है हम जल्दी तुम्हारे पास आयेंगे। इतना कहते हुए सरिता ने फोन रख दिया। अंजली सरिता की बातो का अर्थ नहीं समझ सकी।
उसके भीतर का संवेदन शील कलाकार अपनी भावनाओ को मूर्त रूप देने में व्यस्त हो गया। कोमल अब घर का सारा कार्य करने में असमर्थ हो गयी थी क्योंकि उसकी उम्र व्यवधान पैदा कर रही थी। यह बात डा. निशा भारती समझ चुकी थी।
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