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Framed by Surendra Mohan Pathak free pdf
Pdf Book Name | Framed by Surendra Mohan Pathak free pdf |
Author Name | Surendra Mohan Pathak |
Language | English |
Category | Novel |
Format | Epub |

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पराग अपनी पत्नी के साथ लोचन खेड़ा गांव पहुँच गए। वहां गांव के बाहर ही केशरी मिल गए जो पराग और केतकी को अपने घर लेकर आ गए। कुशल मंगल के बीच ही बोले पराग भाई क्या आप कार्तिक के लिए तलाश पूरी कर चुके है?
पराग बोले शायद नब्बे प्रतिशत तलाश पूरी हो चुकी है लेकिन अभी दस प्रतिशत बाकी है। पराग ने जानबूझकर दस प्रतिशत बाकी कह दिया था और केशरी की प्रतिक्रिया देखने लगे और केशरी ने मौके का फायदा उठाते हुए अपनी बात रख दिया।
केशरी बोले यहां चार किलोमीटर उत्तर में मोहनपुर गांव है जगह जायदाद भी बहुत है उनके भाई की एक कन्या है वह हर कार्य में निपुण है तथा विदुषी भी है वह लोग कानपुर में रहते है व्यापारी है उनका गल्ले का व्यापार है जो मध्य प्रदेश के इंदौर तक फैला हुआ है।
पराग बोले इतना सम्पन्न होते हुए भी उन्होंने अपनी लड़की का अभी तक विवाह क्यों नहीं किया पराग की बात सुनकर केशरी हँसते हुए बोले उस लड़की की समस्या भी कार्तिक के जैसी है वह भी आज के जमाने की लड़की होते हुए भी किसी के ऊपर विश्वास नहीं करती है क्योंकि उसने कितनो को देखा है जो अपनी जिंदगी के सुनहरे सपने में मृग मरीचिका की तरह ही असफल हो चुकी है।
जब कभी उसके विवाह की बात चलती है तो वह अपने ढंग से जांच पड़ताल करने के बाद कई नवयुवको को फेल कर चुकी है क्योंकि कार्तिक भी किसी के ऊपर भरोसा नहीं करता है और यही हाल आभा की है अगर उसकी पड़ताल में कार्तिक सफल हुआ तो ठीक अन्यथा कार्तिक को भी फेल कर सकती है।
पराग बोले केशरी भाई आपने तो हमारे सामने एक चुनौती पैदा कर दिया है मैंने तो कर्मठता को अपनी आँखों से देखा है लेकिन आपने तो हमारे सामने दायित्व को लाकर खड़ा कर दिया है जबकि कर्मठता और दायित्व के रास्ते अलग होते हुए भी दोनों का लक्ष्य एक ही रहता है और उस लक्ष्य का नाम उन्नति है पराग बोले।
पराग बोले क्या मैं आभा का फोटो देख सकता हूँ? केशरी ने एक फोटो पराग को दे दिया पराग फोटो देखते ही चौंक पड़े और बोले रचना से बहुत आभा निकल रही है और आभा से ही रचना होती है। केशरी पराग की इन गूढ़ बातो का अर्थ नहीं समझ सके।
पराग को रचनादास और आभा में कोई अंतर नहीं दिख रहा था। दोनों के चेहरे में बहुत समानता थी। रचना की कर्मठता पराग को मालूम हो गयी थी जो एक बैंक मैनेजर होकर भी भिखारन बनकर दीन दुखियो की सेवा में तत्पर रहती थी लेकिन आभा को देखना अभी बाकी था।
केशरी बोले हम लोग आज ही पटवल खेड़ा गांव में चलते है वहां सूरज के भाई मोहन अपने परिवार के साथ कानपुर से आये हुए है आप लोग वहां आभा से बात करते हुए उसकी पसंद के बारे में जान सकते है तब ही कोई बात आगे बढ़ सकती है।
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