नमस्कार मित्रों, इस पोस्ट में हम आपको Maa Durga Sahasranamam Pdf in Hindi देने जा रहे हैं, आप नीचे की लिंक से दुर्गा सहस्रनाम Pdf Download कर सकते हैं और आप यहां से महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र हिंदी Pdf भी पढ़ सकते हैं।
Durga Sahasranamam Pdf in Hindi / दुर्गा सहस्त्रनाम Pdf in Hindi



सिर्फ पढ़ने के लिये
अगला गुण है ज्ञान के अनुशीलन में संलग्न रहना। लेकिन यदि किसी ने पर्याप्त ज्ञान के बिना ही सन्यास आश्रम स्वीकार कर लिया है तो उसे ज्ञान के अनुशीलन के लिए प्रामाणिक गुरु से श्रवण रत होना चाहिए।
सन्यासी को निर्भीक होना चाहिए। उसे सत्व संशुद्धि तथा ज्ञानयोग में स्थित होना चाहिए। सन्यासी का जीवन गृहस्थों तथा उन सबो को जो आध्यात्मिक उन्नति के वास्तविक जीवन को भूल चुके है उनमे ज्ञान वितरित करने के लिए होता है।
सन्यासी यदि वास्तव में उन्नत है और उसे गुरु का आदेश प्राप्त है तो उसे तर्क तथा ज्ञान द्वारा कृष्ण भावनामृत का उपदेश करना चाहिए यदि वह इतना उन्नत नहीं है तो उसे सन्यास आश्रम ग्रहण नहीं करना चाहिए।
सन्यासी से आशा की जाती है कि वह अपनी जीविका के लिए द्वार-द्वार भिक्षाटन न करे, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि वह भिक्षुक है। विनयशीलता भी आध्यात्मिकता में स्थित मनुष्य की एक योग्यता है।
सन्यासी मात्र विनयशीलता वश ही द्वार-द्वार जाता है। वह भिक्षाटन के उद्देश्य से नहीं जाता है। अपितु गृहस्थों को दर्शन प्रदान करने हेतु और उनमे कृष्ण भावनामृत सुप्त पड़े ज्ञान को जागृत करने के लिए जाता है। यही एक सन्यासी का कर्तव्य है।
दान– दान गृहस्थों के लिए है। दान भी कई तरह का होता है। यथा – सतोगुण, रजोगुण तथा तमोगुण में दिया गया दान, यहां सतोगुण में दिए गए दान की संस्तुति शस्त्रों द्वारा की गई है।
किन्तु रजोगुण तथा तमोगुण में दिए गए दान की संस्तुति नहीं की गई है ,क्योंकि वह धन का अपव्यय मात्र है। गृहस्थों को चाहिए कि वह निष्कपटता से जीवन यापन करना सीखे और अपनी कमाई का पचास प्रतिशत विश्वभर में कृष्ण भावनामृत के प्रचार-प्रसार में खर्च करे, इस प्रकार से गृहस्थ को चाहिए कि ऐसे कार्य में लगे समितियो को या संस्थान को दान दे जो कृष्ण भावनामृत के लगी हुई हो।
दान योग्य पत्रों को ही देना जैसा आगे वर्णन किया जायेगा। संसार भर में कृष्ण भावनामृत के प्रचार हेतु ही दान दिया जाना चाहिए। ऐसा दान सतोगुणी होता है।
दम(आत्मसंयम)– आधुनिक समाज मैथुन जीवन का भोग करने के लिए अनेक घृणित विधियों का उपयोग करता है जिससे संतान के उत्तरदायित्व से मुक्त हो सके लेकिन यह दिव्य गुण नहीं है यह आसुरी गुण है।
जहां तक आत्मसंयम का प्रश्न है यह धार्मिक समाज के अन्य आश्रमों के लिए नहीं है। अपितु यह विशेष रूप से गृहस्थ के लिए है। यदि वह ऐसी संतान उत्पन्न करता है जो कृष्ण भावनाभावित हो सके, तो वह सैकड़ो संताने उत्पन्न कर सकता है।
यज्ञ करने का दायित्व गृहस्थों का होना चाहिए और उन्हें यज्ञ करना चाहिए क्योंकि यज्ञ के लिए धन की आवश्यकता होती है। जो ब्रह्मचर्य, वानप्रस्थ तथा सन्यासियों के पास नहीं होता है।
वह तो भिक्षाटन करके ही अपना जीवन निर्वाह करते है अतएव विभिन्न प्रकार के यज्ञ गृहस्थों के दायित्व है। उन्हें चाहिए कि वैदिक साहित्य द्वारा आदिष्ट अग्निहोत्र यज्ञ करे, लेकिन आज के इस युग में ऐसे यज्ञ कर पाना संभव नहीं है क्योंकि यह अधिक खर्चीला है और यह किसी गृहस्थ के लिए इन्हे संपन्न करना कठिन कार्य है।
इस युग के लिए सर्वश्रेष्ठ संकीर्तन यज्ञ की संस्तुति की गई है। यह संकीर्तन यज्ञ – हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। का जप सर्वोत्तम और सबसे कम खर्चीला यज्ञ है और प्रत्येक व्यक्ति इसे लाभ उठा सकता है अतएव दान, इन्द्रिय संयम तथा यज्ञ करना यह तीनो बातें गृहस्थ के लिए है।
सत्यम– सत्यम का अर्थ है कि मनुष्य को अपने स्वार्थ के लिए सत्य को तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत नहीं करना चाहिए। वैदिक साहित्य में कुछ अंश अत्यंत कठिन है, लेकिन उनका अर्थ किसी प्रामाणिक गुरु से ही जानना चाहिए, वेदो को समझने की यही विधि है।
श्रुति का अर्थ है- किसी अधिकारी से सुनना। मनुष्य को चाहिए कि अपने स्वार्थ के लिए कोई भी विवेचना न गढ़े। भगवद्गीता की अनेक टीकाए है जिससे मूल पाठ की गलत व्याख्या की गई है। शब्द को वास्तविक भावार्थ प्रस्तुत किया जाना चाहिए और इसे प्रामाणिक गुरु से ही सीखना चाहिए।
तेजस– यहां पर यह शब्द क्षत्रियों के निमित्त प्रयुक्त हुआ है निर्बलों की रक्षा करना क्षत्रियों का कर्तव्य है और उन्हें निर्बलों की रक्षा करने हेतु अत्यंत बलशाली होना चाहिए, उन्हें अहिंसक होने का दिखावा नहीं करना चाहिए, यदि हिंसा की आवश्यकता पड़े तो हिंसा दिखानी चाहिए।
लेकिन जो व्यक्ति अपने शत्रु का दमन कर सकता है, उसे चाहिए कि कुछ विशेष परिस्थितियो में क्षमा कर दे। वह छोटे अपराधों के लिए क्षमा दान कर सकता है।
यदि कोई पशु किसी शरीर मे बहुत दिनों से या वर्षो में रह रहा हो और उसे असमय ही मार दिया जाय तो उसे पुनः उसी जीवन में आकर शेष दिन पूरे करने पड़ते है। अतः अपने स्वाद की तुष्टि के लिए किसी की प्रगति को नहीं रोकना चाहिए। यही अहिंसा है।
अक्रोध– क्रोध को रोकना ही अक्रोध का अर्थ है। यदि कोई क्षुब्ध बनाने का प्रयास करे तो भी सहिष्णु बने रहना चाहिए, क्योंकि एक बार क्रोध करने पर सारा शरीर दूषित हो जाता है।
अचापलम या संकल्प का अर्थ है कि मनुष्य किसी प्रयास से विचलित और उदास न हो किसी प्रयास में भले ही असफलता क्यों न मिले किन्तु मनुष्य को उसके लिए खिन्न नहीं होना चाहिए उसे धैर्य तथा संकल्प के साथ प्रगति करनी चाहिए।
क्रोध रजोगुण तथा काम से उत्पन्न होता है अतः जो योगी है उसे क्रोध पर नियंत्रण रखना चाहिए। अपैशुनम का अर्थ है कि दूसरे के दोष न निकाले और व्यर्थ ही उन्हें सही न करे।
निःसंदेह चोर को चोर कहना छिद्रान्वेषण नहीं है लेकिन निष्कपट व्यक्ति को चोर कहना उस व्यक्ति के लिए परम अपराध होगा जो आध्यात्मिक जीवन में प्रगति करना चाहता है। ह्री का अर्थ है कि मनुष्य को लज्जाशील होना चाहिए और उसे कोई भी गर्हित कार्य नहीं करना चाहिए।
शौचम- पवित्रता ही शौचम का अर्थ है। मन, शरीर तथा व्यवहार में भी पवित्रता होनी चाहिए, यह विशेष रूप से वणिक वर्ग के लिए है। उन्हें चाहिए कि वह काला बाजारी न करे।
नाति-मानिताअर्थात सम्मान की आशा न करना, शूद्रों अर्थात श्रमिक वर्ग के लिए है जिन्हे वैदिक आदेशों के अनुसार चारो वर्णो में सबसे निम्न माना जाता है।
यहां पर वर्णित छब्बीसों गुण दिव्य है। वर्णाश्रम धर्म के अनुसार इनका आचरण होना चाहिए कि सारांश यह है कि भले ही भौतिक परिस्थितियां शोचनीय हो यदि सभी वर्णो के लोग इन गुणों का अभ्यास करे तो वह क्रमशः आध्यात्मिक अनुभूति के सर्वोच्च पद तक उठ सकते है।
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