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सिर्फ पढ़ने के लिये
जहां भगवान श्री राम जी स्वयं ही राजा होकर विराजमान है उस अवधपुरी के निवासियों की सुख-सम्पदा का वर्णन हजारो शेष जी भी नहीं कर सकते है।
चौपाई का अर्थ-
नारद आदि और सनक आदि मुनीश्वर सब कौशालराज श्री राम जी के दर्शन के लिए प्रतिदिन अयोध्या आते है और उस दिव्य नगर को देखकर वैराग्य भूल जाते है।
दिव्य स्वर्ण और रत्नो से बनी हुई अटारियाँ है। उनमे अनेक रंग के रत्नो की सुंदर ढली हुई बहुत सी फर्श है। नगर के चारो ओर अत्यंत सुंदर परकोटा बना है जिसपर सुंदर रंग बिरंगे कंगूरे बने हुए है।
उसी चरित्र के कुछ गुण समूह को मंदमति तुलसीदास ने कहे है जैसे मक्खी भी अपने पुरुषार्थ के अनुसार आकाश में उड़ती है। रावण का शरीर बहुत बार क्षतिग्रस्त हुआ फिर भी उस वीर का अंत नहीं होता है। प्रभु तो खेल कर रहे है परन्तु मुनि, सिद्ध और देवता प्रभु को क्लेश में देखकर व्याकुल है।
चौपाई का अर्थ-
नष्ट होते ही सिरों का समूह बढ़ जाता है जैसे प्रत्येक लाभ पर लोभ बढ़ता है। शत्रु का अंत नहीं हुआ और परिश्रम अधिक हुआ। तब श्री राम जी ने विभीषण की ओर देखा।
शिव जी कहते है – हे उमा! जिनकी इच्छा मात्र से काल भी अंत को प्राप्त होता है वही प्रभु सेवक की प्रीति की परीक्षा ले रहे है। विभीषण जी ने कहा – हे सर्वज्ञ! हे चराचर के स्वामी! हे शरणागत के पालन करने वाले! हे देवता और मुनि को सुख देने वाले! सुनिए।
उसके नाभि कुंड में अमृत का निवास है। हे नाथ! रावण उसके बल पर ही जीवित है। विभीषण के वचन सुनते ही कृपालु श्री रघुनाथ जी ने हर्षित होकर हाथ में विकराल।
उस पर नाना प्रकार के अपशकुन होने लगे। बहुत से गदहे, स्यार, कुत्ते रोने लगे। जगत के अशुभ को सूचित करने के लिए पक्षी बोलने लगे। आकाश में जहां-तहां केतु प्रकट हो गए।
दशो-दिशाओ में अत्यंत दाह होने लगा। बिना योग के ही सूर्य ग्रहण होने लगा, मंदोदरी का हृदय बहुत कम्पन करने लगा। मूर्तियों के नेत्र से जल बहने लगे।
छंद का अर्थ-
मूर्तियां रोने लगी, अत्यंत प्रचंड वायु बहने लगी, पृथ्वी हिलने लगी, बादल, बाल और धूल की वर्षा करने लगे। इस प्रकार इतने अधिक अमंगल होने लगे कि उन्हें कौन कह सकता है? देवताओ को भयभीत जानकर कृपालु श्री रघुनाथ जी धनु का संधान करने लगे।
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