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हे नाथ! मैं चरण कमल को धोकर आप लोगो को नाव पर चढ़ा लूंगा, मैं आपसे कुछ उतराई नहीं चाहता। हे राम! मुझे आपकी दुहाई और दशरथ जी की सौगंध है।
मैं सब सच-सच कहता हूँ। लक्ष्मण मुझे भले ही सजा दे, पर जब तक मैं पैरो को पखार न लूँंगा। तब तक हे तुलसीदास के नाथ! हे कृपालु! मैं पार नहीं उतारूंगा।
100- दोहा का अर्थ-
केवट के प्रेम में लपेटे हुए अटपटे वचन सुनकर करुणाधाम श्री राम जी जानकी और लक्ष्मण जी की ओर देखकर हँसे।
चौपाई का अर्थ-
1- कृपा के समुद्र श्री राम जी केवट से हँसते हुए बोले – भाई! तू वही कर जिससे तेरी नाव न जाय जल्दी से पानी लाकर पैर धो ले। देर हो रही है, पार उतार दे।
2- एक बार जिनके नाम का स्मरण करते ही मनुष्य भवसागर के पार उतर जाते है और जिन्होंने (वामनावतार में) जगत को तीन पग से भी छोटा कर दिया था अर्थात दो पग में ही तीनो लोक को नाप लिया था। वही कृपालु श्री राम जी गंगा जी से पार उतारने के लिए केवट का निहोरा कर रहे है।
3- प्रभु श्री राम जी के इन वचनो को सुनकर देवनदी गंगा जी की बुद्धि भी विमोहित हो गई (कि यह साक्षात् भगवान होकर भी केवट का निहोरा कैसे कर रहे है।) परन्तु समीप आने पर अपनी उत्पत्ति के स्थान पदनखो को देखते ही उन्हें पहचानकर देवनदी गंगा जी को हर्ष व्याप्त हो गया (वह समझ गयी कि भगवान लीला कर रहे है) इससे उनका सारा मोह नष्ट हो गया और इन चरणों के स्पर्श से मैं धन्य हो जाउंगी इस विचार से उन्हें हर्ष व्याप्त हो गया। केवट श्री राम जी की आज्ञा मिलने पर कठौत में जल भरकर ले आया।
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