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सिर्फ पढ़ने के लिये
वही नीति में निपुण है वही परम बुद्धिमान है उसने ही वेदो के सिद्धांत को भली प्रकार से जान लिया है। वही कवि, वही विद्वान, वही रणधीर है।
वह देश धन्य है जहां श्री गंगा जी है। वह स्त्री धन्य है जो पतिव्रत धर्म का पालन करती है। वह राजा धन्य है जो न्याय करता है और वह ब्राह्मण धन्य है जो अपने धर्म से नहीं डिगता है।
वह धन धन्य है जो दान देने में व्यय होता है और जिसकी पहली गति होती है। धन की तीन गतियां होती है दान, भोग, नाश। दान उत्तम है, भोग मध्यम है और नाश नीच गति है।
जो पुरुष न देता है न भोगता है उसके धन की तीसरी गति होती है। वही बुद्धि धन्य और परिपक़्व है जो पुण्य में लगी हुई है। वह समय धन्य है जब सत्संग हो और वही जन्म धन्य है जिसमे ब्राह्मण की अखंड भक्ति हो।
दोहा का अर्थ-
हे उमा! सुनो, वह कुल धन्य है संसार के लिए पूज्य है और परम पवित्र है जिसमे श्री रघुवीर परायण अनन्य रामभक्त विनम्र पुरुष उत्पन्न हो।
चौपाई का अर्थ-
मैंने अपनी बुद्धि के अनुसार ही यह कथा कही यद्यपि पहले इसको छिपाकर रखा था। जब तुम्हारे मन में प्रेम की अधिकता देखी तब मैंने श्री रघुनाथ जी की यह कथा तुमको सुनाई। यह कथा धूर्त, शठ लोगो से नहीं कहनी चाहिए। हथि स्वभाव वाले तथा जो श्री हरि की कथा को मन लगाकर नहीं सुनते हो।
लोभी, क्रोधी और कामी को, जो चराचर के स्वामी श्री रघुनाथ जी को नहीं भजते उनसे भी यह कथा नही कहनी चाहिए। ब्राह्मणो से द्रोह करने वाले को, यदि वह देवराज इंद्र के समान ऐश्वर्यवान राजा भी क्यों न हो तब भी यह कथा कभी नहीं सुनानी चाहिए श्री राम जी कथा के अधिकारी वही है जिनको सत्संगति अतिप्रिय है।
जिनकी गुरु के चरणों में प्रीति है, जो नीति परायण है और ब्राह्मणो के सेवक है वह ही इसके अधिकारी है और उसको तो कथा बहुत सुख देने वाली है जिसको श्री रघुनाथ जी प्राण प्रिय है।
दोहा का अर्थ-
जो श्री राम जी के चरणों में प्रेम चाहता हो अथवा मोक्ष पद चाहता हो वह इस कथा रूपी अमृत को प्रेम पूर्वक पान करे।
चौपाई का अर्थ-
हे गिरिजे! मैंने कलियुग के पापो का नाश करने वाली और मन के मैल को दूर करने वाली राम कथा का वर्णन किया। यह राम कथा जन्म-मरण रूपी रोग के नाश के लिए संजीवनी जड़ी है। वेद और विद्वान पुरुष ऐसा कहते है। इसमें सात सुंदर सीढ़ियां है जो श्री रघुनाथ जी की भक्ति को प्राप्त करने के मार्ग है।
जिस पर श्री हरि की अत्यंत कृपा होती है वही इस मार्ग पर पैर रखता है। जो लोग कपट का त्याग करके यह कथा गाते है वह मनुष्य अपनी मनः कामना की सिद्धि प्राप्त कर लेते है। जो इसे कहते सुनते और अनुमोदन करते है वह संसार रूपी समुद्र को गऊ के खुर से बने हर गड्ढे की भांति पार कर जाते है।
याज्ञवल्क्य जी कहते है – सब कथा सुनकर पार्वती जी को हृदय में बहुत ही प्रिय लगी और वह सुंदर वाणी बोली – स्वामी की कृपा से मेरा संदेह जाता रहा और श्री राम जी के चरणों में नवीन प्रेम उत्पन्न हो गया।
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