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Dattatreya Samhita pdf Hindi
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इस योजना के तहत आर्थिक रूप से कमजोर लोग अपनी स्थिति को मजबूत बनाने के लिए भेड़ बकरी पालने की यूनिट का निर्माण कर सकते हैं और इसके निवेश की रकम सरकार देगी। हर साल 31 मई को अहिल्याबाई जयंती मनाई जाती है।
अहिल्याबाई भगवान शिव के प्रति समर्पण भाव रखती थी। वह भगवान शिव की अपार भक्त थी यही कारण है कि वह अपने राज्य में जारी रुपयों पर शिवलिंग और बेलपत्र का चित्र अंकित करवाती थी और पैसों पर नंदी का चित्र अंकित होता था। यहां तक कि जब वह राजाज्ञा पर हस्ताक्षर करती थी तो अपना नाम लिखने के बजाय पत्र के नीचे केवल श्री संकर लिखती थी।
इसका इतना प्रभाव पड़ा कि उनके बाद इंदौर के सिंहासन पर जितने भी नरेश आए उनकी राजाज्ञा तब तक जारी नहीं होती थी जब तक श्री शंकर का नाम उस पर न लिखा जाए। अहिल्याबाई के शासन से पहले जो भी राज्य शासन पर आया, वह प्रजा पर काफी अत्याचार किया करते थे। यहां तक कि गरीबों को अन्न के लिए तरसाते थे।
उन्हें भूखे रखकर काम करवाते थे और इन सब अत्याचारों को खत्म करने के लिए अहिल्याबाई ने गरीबों को अन्न देने की योजना बनाई लेकिन कुछ क्रूर राजाओं ने इसका विरोध किया लेकिन निडर अहिल्याबाई उनसे नहीं डरी और अपने निर्णय पर डटी रही। यही कारण है कि अहिल्याबाई को लोग देवी के रूप में पूजने लगे थे।
मात्र 12 वर्ष की उम्र में ही अहिल्या बाई का विवाह सूबेदार मल्हार राव होलकर के पुत्र खंडेराव से हो गया था। लेकिन 19 वर्ष की उम्र में अहिल्याबाई विधवा हो गई। अहिल्या बाई ने एक पुत्र को जन्म दिया था, जिसका नाम मालीराम था और उसके 3 वर्ष के बाद उन्होंने एक बेटी को भी जन्म जन्म दिया जिसका नाम मुक्ताबाई रखा गया।
अहिल्याबाई के मराठा प्रांत पर शासन करने के पहले ऐसा नियम था कि जो औरत विधवा है और उसका कोई संतान नहीं है तो उसकी सारी संपत्ति राज्यकोष या सरकारी खजाने में जमा हो जाएगा। लेकिन अहिल्याबाई ने इस नियम का विरोध किया और पति की मृत्यु के बाद विधवाओं को अपने पति की संपत्ति लेने का हकदार बनाया।
अहिल्याबाई ने अपने जीवन में कई सारी परेशानियों को झेला। लेकिन उन्होंने जिस तरीके से अदम्य नारी शक्ति का परिचय दिया वह प्रशंसनीय है और आज की महिलाओं के लिए वह प्रेरणा स्त्रोत है और आगे भी बनी रहेंगी। अहिल्याबाई का कोई उत्तराधिकारी ना होने की स्थिति में प्रजा को दत्तक लेने का अधिकार दिया था।
अहिल्याबाई होलकर अपने पति से अत्यधिक प्रेम करती थी और जब उनके पति की मौत हो गई तब इन्होंने सती होने का फैसला किया था। परंतु इनके ससुर मल्हार राव होलकर ने इन्हें सती होने से रोक लिया और इन्हें प्रजा की भलाई के लिए राज्य के सिंहासन पर इनको बैठा दिया।
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