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Dasbodh Pdf Hindi Download
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सिर्फ पढ़ने के लिये
उन्होंने हाथ में रत्नमय दर्पण ले रखा था और उनके दोनों नेत्र कंजल से सुशोभित थे। उन्होंने अपनी प्रभा से सबको आच्छादित कर लिया था तथा वे अत्यंत मनोहर जान पड़ते थे। अत्यंत तरुण परम सुंदर और आभरण भूषित अंगो से सुशोभित थे। कामिनियों को अत्यंत कमनीय प्रतीत होते थे।
उनमे व्यग्रता का अभाव था। उनका मुखारबिंद कोटि चन्द्रमाओ से भी अधिक आह्लाद दायक था। उनके श्री अंगो की छवि कोटि कामदेवों से भी अधिक मनोहारिणी थी। वे अपने सभी अंगो से परम सुंदर थे। ऐसे सुंदर रूप वाले उत्कृष्ट देवता भगवान शिव को जामाता के रूप में अपने सामने खड़ा देख मेना की सारी शोक चिंता दूर हो गयी।
वे परमानंदसिंधु में निमग्न हो गयी और अपने भाग्य की, गिरिजा की गिरिराज हिमवान की और उनके समस्त कुल की भूरि भूरि प्रशंसा करने लगी। उन्होंने अपने आप को कृतार्थ माना और वे बारंबार हर्ष का अनुभव करने लगी। सती मेना का मुख प्रसन्नता से खिल उठा था।
वे अपने दामाद की शोभा का सानंद अवलोकन करती हुई उनकी आरती उतारने लगी। गिरिजा की कही हुई बात को बारंबार याद करके मेना को बड़ा विस्मय हो रहा था। वे हर्षोत्फुल्ल मुखारबिंद से युक्त हो मन ही मन यों कहने लगी – पार्वती ने मुझसे पहले जैसा बताया था उससे भी अधिक सौंदर्य मैं इन परमेश्वर शिव के अंगो में देख रही हूँ।
महेश्वर का मनोहर लावण्य इस समय अवर्णनीय है। ऐसा सोचकर आश्चर्यचकित हुई मेना अपने घर के भीतर आयी। वहां आयी हुई युवतियों ने भी वर के मनोहर रूप की भूरि भूरि प्रशंसा की। वे बोली – गिरिराजनंदिनी शिवा धन्य है, धन्य है। कुछ कन्याये कहने लगी – दुर्गा तो साक्षात् भगवती है।
कुछ दूसरी कन्याये महारानी मेना से बोली – हमने तो कभी ऐसा वर नहीं देखा है और न कभी ध्यान में ही ऐसे वर का अवलोकन किया है। इन्हे पाकर गिरिजा धन्य हो गयी। भगवान शंकर का वह रूप देखकर समस्त देवता हर्ष से खिल उठे। समस्त गंधर्व उनका यश गाने लगे और अप्सराये नाचने लगी।
बाजा बजाने वाले लोग मधुर ध्वनि में अनेक प्रकार की कला दिखाते हुए आदर पूर्वक भांति-भांति के बाजे बजा रहे थे। हिमाचल ने भी आनंदित होकर द्वारोचित मंगलाचार किया। समस्त नारियो के साथ मेना ने भी महान उत्सव मनाते हुए वर का परिछन किया।
फिर वे प्रसन्नता पूर्वक घर में चली गयी। इसके बाद भगवान शिव अपने गणों और देवताओ के साथ अपने को दिए गए स्थान में चले गए। इसी बीच में गिरिजा के अंतःपुर की स्त्रियां दुर्गा को साथ ले कुलदेवी की पूजा के लिए बाहर निकली। वहां देवताओ ने जिनकी पलके कभी नहीं गिरती थी प्रसन्नता पूर्वक पार्वती को देखा।
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