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Dandshastra Pdf in Hindi Download
पुस्तक का नाम | Dandshastra Pdf in Hindi |
पुस्तक के लेखक | प्रकाशनारायण सक्सेना |
फॉर्मेट | |
साइज | 25.52 Mb |
पृष्ठ | 290 |
भाषा | हिंदी |
श्रेणी | साहित्य |
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सिर्फ पढ़ने के लिये
इसके अतिरिक्त उपदेवो नागो, सदस्यों तथा ब्राह्मणो ने पृथक-पृथक प्रणाम पूर्वक बड़े भक्तिभाव से उनकी स्तुति की। ब्रह्मा जी कहते है – नारद! इस प्रकार श्री विष्णु के मेरे देवताओ और ऋषियों के तथा अन्य लोगो के स्तुति करने पर महादेव जी बड़े प्रसन्न हुए।
फिर उन शंभु ने समस्त ऋषियों देवता आदि को कृपा दृष्टि से देखकर तथा मुझ ब्रह्मा और विष्णु का समाधान करके दक्ष से इस प्रकार कहा – प्रजापति दक्ष! मैं जो कुछ कहता हूँ सुनो। मैं तुम पर प्रसन्न हूँ। यद्यपि मैं सबका ईश्वर और स्वतंत्र हूँ तो भी सदा ही अपने भक्तो के अधीन रहता हूँ।
चार प्रकार के पुण्यात्मा पुरुष मेरा भजन करते है। दक्ष प्रजापते! उन चार भक्तो में पूर्व-पूर्व की अपेक्षा उत्तरोत्तर श्रेष्ठ है। उनमे पहला आर्त, दूसरा जिज्ञासु, तीसरा अर्थार्थी और चौथा ज्ञानी है। पहले के तीन तो सामान्य श्रेणी के भक्त है। किन्तु चौथा का अपना विशेष महत्व है।
उन सब भक्तो में चौथा ज्ञानी ही मुझे अधिक प्रिय है। वह मेरा रूप माना गया है। उससे बढ़कर दूसरा कोई मुझे प्रिय नहीं है यह मैं सत्य-सत्य कहता हूँ। मैं आत्मज्ञ हूँ। वेद-वेदांत के पारगामी विद्वान ज्ञान के द्वारा मुझे जान सकते है। जिनकी बुद्धि मंद है वे ही ज्ञान के बिना मुझे पाने का प्रयत्न करते है।
कर्म के अधीन हुए मूढ़ मानव मुझे वेद, यज्ञ दान और तपस्या द्वारा भी कभी नहीं पा सकते। अतः दक्ष! आज से तुम बुद्धि के द्वारा मुझ परमेश्वर को जानकर ज्ञान का आश्रय ले समाहित चित्त होकर कर्म करो। प्रजापते! तुम उत्तम बुद्धि के द्वारा मेरी दूसरी बात भी सुनो।
मैं सगुण स्वरुप के विषय में भी इस गोपनीय रहस्य को धर्म की दृष्टि से तुम्हारे सामने प्रकट करता हूँ। जगत का परम कारण रूप मैं ही ब्रह्मा और विष्णु हूँ। मैं सबका आत्मा ईश्वर और साक्षी हूँ। स्वयंप्रकाश तथा निर्विशेष हूँ। मुने! अपनी त्रिगुणात्मिका माया को स्वीकार करके मैं ही जगत की सृष्टि पालन और संहार करता हुआ उन क्रियाओ के अनुरूप ब्रह्मा विष्णु और रूद्र नाम धारण करता हूँ।
उस अद्वितीय केवल मुझ परब्रह्म परमात्मा में ही अज्ञानी पुरुष ब्रह्म ईश्वर तथा अन्य समस्त जीवो को भिन्न रूप से देखता है। जैसे मनुष्य अपने सिर और हाथ आदि अंगो में ये मुझसे भिन्न नहीं है ऐसी परकीय बुद्धि कभी नहीं करता। उसी तरह मेरा भक्त प्राणिमात्र में मुझसे भिन्नता नहीं देखता।
दक्ष! मैं ब्रह्मा और विष्णु तीनो स्वरूपतः एक ही है तथा हम ही सम्पूर्ण जीव रूप है ऐसा समझकर जो हम तीनो देवताओ में भेद नहीं देखता वही शांति प्राप्त करता है। जो नराधम हम तीनो देवताओ में भेदबुद्धि रखता है वह निश्चय ही जब चंदमा और तारे रहते है तब तक नरक में निवास करता है।
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