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सिर्फ पढ़ने के लिये
अतः इसे आप अवश्य कहे। अज! आपके पुत्र दक्ष के यज्ञ मेंभगवान शंकर का अनादर कैसे हुआ? और वहां पिता के यज्ञ में जाकर सती ने अपने देह का त्याग किस प्रकार किया? ये सब बातें मुझसे कहिए। इन्हे सुनने के लिए मेरे मन में बड़ी श्रद्धा है।
ब्रह्मा जी बोले – मेरे पुत्रो में श्रेष्ठ! महाप्राज्ञ! तात नारद! तुम महर्षियो के साथ बड़े प्रेम से भगवान चंद्रमौलि का यह चरित्र सुनो। श्रीविष्णु आदि देवताओ से सेवित परब्रह्म को नमस्कार करके मैं उनके महान अद्भुत चरित्र का वर्णन आरंभ करता हूँ। मुने! यह सब भगवान शिव की ही लीला है।
वे प्रभु अनेक प्रकार की लीला करने वाले स्वतंत्र और निर्विकार है। देवी सती भी वैसी ही है। अन्यथा वैसा कर्म करने में कौन समर्थ हो सकता है। परमेश्वर शिव ही परब्रह्म परमात्मा है। एक समय की बात है तीनो लोको में विचरने वाले लिलाविशारद भगवान रूद्र सती के साथ बैल पर आरूढ़ हो इस धरती पर भ्रमण कर रहे थे।
घूमते-घूमते वे दंडकारण्य में आये थे। वहां उन्होंने लक्ष्मण सहित भगवान श्री राम को देखा जो रावण द्वारा छल पूर्वक हरी गयी अपनी प्यारी पत्नी सीता की खोज कर रहे थे। वे हा सीते ऐसा उच्च स्वर से पुकारते जहां-तहां देखते और बारंबार रोते थे। उनके मन में विरह का आवेश छा गया था।
सूर्यवंश में उत्पन्न वीर भूपाल दशरथनंदन भरताग्रज श्री राम आनंद रहित हो लक्ष्मण के संग वन में विहार कर रहे थे और उनकी कांति फीकी पड़ गयी थी। उस समय उदारचेता पूर्णकाम भगवान शंकर ने बड़ी प्रसन्नता के साथ उन्हें प्रणाम किया और जय-जयकार करके वे दूसरी ओर चल दिए।
भक्त वत्सल शंकर ने उस वन में श्री राम के सामने अपने को प्रकट नहीं किया। भगवान शिव की मोह में डालने वाली ऐसी लीला देख सती को बड़ा विस्मय हुआ। वे उनकी माया से मोहित हो उनसे इस प्रकार बोली – देवदेव सर्वेश! परब्रह्म परमेश्वर! ब्रह्मा विष्णु आदि सब देवता आपकी हमेशा सेवा करते है।
आप सबके द्वारा प्रणाम करने योग्य है। सबको आपका ही सर्वदा सेवन और ध्यान करना चाहिए। वेदांत शास्त्र के द्वारा यत्नपूर्वक जानने योग्य निर्विकार परम प्रभु आप ही है। नाथ! ये दोनों पुरुष कौन है इनकी आकृति विरह व्यथा से व्याकुल दिखाई देती है। ये दोनों धनुर्धर वीर वन में विचरते हुए क्लेश के भागी और दीन हो रहे है।
इनमे जो ज्येष्ठ है उसकी अंगकान्ति नीलकमल के समान श्याम है। उसे देखकर किस कारण से आप आनंदविभोर हो उठे थे? आपका चित्त क्यों अत्यंत प्रसन्न हो गया था? आप इस समय भक्त के समान विनम्र क्यों हो गए थे? स्वामिन! कल्याणकारी शिव! आप मेरे संशय को सुने।
प्रभो! सेव्य स्वामी अपने सेवक को प्रणाम करे यह उचित नहीं जान पड़ता। ब्रह्मा जी कहते है – नारद! कल्याणमयी परमेश्वरी आदिशक्ति सती देवी ने शिव की माया के वशीभूत होकर जब भगवान शंकर से इस प्रकार प्रश्न किया तब सती की यह बात सुनकर लिलाविशारद परमेश्वर शिव हंसकर उनसे इस प्रकार बोले।
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