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Chauth Mata Ki Katha Pdf Download


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सिर्फ पढ़ने के लिये
हरे! तुम ज्ञान विज्ञान से सम्पन्न तथा सम्पूर्ण लोको के हितैषी हो। अतः अब मेरी आज्ञा पाकर जगत के सब लोगो के लिए मुक्तिदाता बनो। मेरा दर्शन होने पर जो फल प्राप्त होता है वही तुम्हारा दर्शन होने पर भी होगा। मेरी यह बात सत्य है, सत्य है इसमें संशय के लिए स्थान नहीं है।
मेरे हृदय में विष्णु है और विष्णु के हृदय में मैं हूँ। जो इन दोनों में अंतर नहीं समझता वही मुझे विशेष प्रिय है। श्रीहरि! मेरे बाए अंग से प्रकट हुए है। ब्रह्मा का दाहिने अंग से प्राकट्य हुआ है और महा प्रलयकारी विश्वात्मा रूद्र मेरे हृदय से प्रादुर्भाव होंगे।
विष्णो! मैं ही सृष्टि, पालन और संहार करने वाले रज आदि त्रिविधि गुणों द्वारा ब्रह्मा, विष्णु और रूद्र नाम से प्रसिद्ध हो तीन रूप में पृथक-पृथक प्रकट होता हूँ। साक्षात् शिव गुणों से भिन्न है। वे प्रकृति और पुरुष से भी परे है। अद्वितीय, अनंत, पूर्ण, नित्य और निरंजन परब्रह्म परमात्मा है।
तीनो लोको का पालन करने वाले श्रीहरि भीतर तमोगुण और बाहर सत्त्वगुण धारण करते है। त्रिलोकी का संहार करने वाले रुद्रदेव भीतर सत्त्वगुण और बाहर तमोगुण धारण करते है तथा त्रिभुवन की सृष्टि करने वाले ब्रह्मा जी अंदर और बाहर से भी रजोगुणी ही है।
इस प्रकार ब्रह्मा, रूद्र तथा विष्णु इन तीन देवताओ में गुण है परन्तु शिव गुणातीत माने गए है। विष्णो! तुम मेरी आज्ञा से इन सृष्टिकर्ता पितामह का प्रसन्नता पूर्वक पालन करो ऐसा करने से तीनो लोको में पूजनीय होओगे। परमेश्वर शिव बोले – उत्तम व्रत का पालन करने वाले हरे! विष्णो! अब तुम मेरी दूसरी आज्ञा सुनो।
उसका पालन करने से तुम हमेशा समस्त लोको में माननीय और पूजनीय बने रहोगे। ब्रह्मा जी के द्वारा रचे गए लोक में जब कोई दुःख या संकट उत्पन्न हो तब तुम उन सम्पूर्ण दुखो का नाश करने के लिए हमेशा तत्पर रहना। तुम्हारे सम्पूर्ण दुस्सह कार्यो में मैं तुम्हारी सहायता करूँगा।
तुम्हारे जो दुर्जेय और अत्यंत उत्कट शत्रु होंगे उन सबको मैं हराऊंगा। हरे! तुम नाना प्रकार के अवतार धारण करके लोक में अपनी उत्तम कीर्ति का विस्तार करो और सबके उद्धार के लिए तैयार रहो। तुम रूद्र के ध्येय हो और रूद्र तुम्हारे ध्येय है। तुममे और रूद्र में कुछ भी अंतर नहीं है।
जो मनुष्य रूद्र का भक्त होकर तुम्हारी निंदा करेगा उसका सारा पुण्य तुरंत ही भस्म हो जायेगा। पुरुषोत्तम विष्णो! तुमसे द्वेष करने के कारण मेरी आज्ञा से उसे नरक में गिरना पड़ेगा। यह बात सत्य है, सत्य है। इसमें संशय नहीं है।
तुम इस लोक में मनुष्यो के लिए विशेषतः मोक्ष और भोग प्रदान करने वाले और भक्तो के ध्येय तथा पूज्य होकर प्राणियों का निग्रह और अनुग्रह करो। ऐसा कहकर भगवान शंकर ने मेरा हाथ पकड़ लिया और श्री विष्णु को सौपकर उनसे कहा – तुम संकट के समय हमेशा इनकी सहायता करते रहना।
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