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Charak Samhita Pdf Hindi Free चरक संहिता हिंदी Pdf Download
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चरक संहिता के बारे में
चरक संहिता आयुर्वेद का मुख्य ग्रंथ है। इसके रचयिता आचार्य चरक है। चरक संहिता में तमाम रोगो की औषधियां दी गयी है और उपाय बताए गए है।
आचार्य चरक की शिक्षा-दीक्षा तक्षशिला में हुई थी। वे आयुर्वेद के प्रख्यात विद्वान थे। उन्होंने आयुर्वेद से जुडी तमाम किताबे पढ़ी और एक संकलन तैयार किया। जिसे चरक संहिता कहा गया।
चरक संहिता का अनुवाद फ़ारसी और अरबी भाषा में भी किया जा चुका है। इसकी मूल रचना संस्कृत भाषा में हुई है और इसके 8 भाग और 120 अध्याय है।
1- सूत्रस्थान – इस भाग में औषधि विज्ञान, शारीरिक और मानसिक रोग, आहार, विशेष रोग आदि के बारे में दिया गया है।
2- निदान स्थान – इस भाग में तमाम रोगो के उपचार के बारे में बताया गया है।
3- विमान स्थान – इस भाग में स्वास्थ वर्धक भोजन के बारे में बताया गया है।
4- शरीर स्थान – इस भाग में मानव शरीर की रचना के बारे में विस्तार से बताया गया है।
5- इन्द्रिय स्थान – यह भाग मूलरूप से रोगो की प्रकृति और उसके उपचार पर केंद्रित है।
6- चिकित्सा स्थान – इसमें गंभीर रोगो के बारे में और उसके उपचार के बारे में विस्तार से बताया गया है।
7 और 8 – इसमें साधारण बीमारियों और उसके इलाज के बारे में बताया गया है।
आचार्य चरक का एक वृतांत
आचार्य चरक ने चरक संहिता की रचना कर ली और वह लोगो के पास पहुँचने लगा तो उन्होंने एक दिन सोचा कि चलकर देखा जाय इस ग्रंथ का कितना सदुपयोग हो रहा है। वे एक वैद्यशाला में पहुंचे तो वहां भीड़ लगी हुई थी।
वैद्य जी रोगियों को देख रहे थे और सेवक रोगियों द्वारा लाये उपहारों को समेट रहे थे। पुराने जमाने में जो कोई जिस चीज का व्यापार करता था वही लेकर अपनी रोजमर्रा की चीजे खरीदने जाता था। जैसे लोहे की दुकान वाला लोहा लेकर, किराना (पंसारी) वाला किराने की सामान लेकर और किसान फसल लेकर और जो कुछ नहीं ले जाता था उसे भी अंत में वैद्य जी देख लेते थे सो चरक जी का अंत में नंबर आया।
आचार्य चरक ने वैद्य जी से पूछा, “निरोगी कौन ?”
वैद्य जी ने कहा, “जो त्रिफला खाए और उसके साथ ही यह बताना नहीं भूले कि त्रिफला उनके यहां बाकियो से कम दाम में मिल जाएगी।”
चरक जी चुपचाप वहां से निकल लिए और मन ही मन सोचा कि इतना बड़ा ग्रंथ नाहक ही लिखा। चिकित्सा पूरी तरह व्यापार बन चुकी है। उसके बाद वे और भी कई वैद्यशालाओ में गए परन्तु वहां भी वही हाल था।
अंत में वह थककर एक सरोवर किनारे विश्राम कर रहे थे। तभी वहां एक साधु आए। चरक जी ने वैसे ही साधु से पूछ लिया, “महाराज जी, निरोगी कौन ?”
साधु ने कहा, “जो शरीर को लगने वाला भोजन ग्रहण करे, जो भूख से कम खाए और मौसम के अनुसार भोजन ले वही निरोगी होता है।” आचार्य चरक बहुत खुश हुए और साधु को नमस्कार कर मन ही मन बोले, “ग्रंथ लिखना सफल हुआ।”
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