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Champak Stories in Hindi PDF Video in Hindi
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गरीब घर की बेटी Hindi Stories
देवी प्रसाद और नीरजा की एक बेटी थी। उसका नाम अनामिका था। देवी प्रसाद मध्यम वर्ग के इंसान थे। न ही अति धनी थे और न ही अति गरीब, उनका जीवन सुखपूर्वक चल रहा था। उन्होंने अनामिका की परवरिश में कोई कमी नहीं होने दिया।
सिर्फ एक बात का मलाल रह गया था कि वह अपनी बेटी को वकालत नहीं करा सके थे क्योंकि मध्यम वर्गीय किसी तरह अपना घर चला पाते है। ऊंची उड़ान भरने के लिए उनके पास समय नहीं होता है। सारा समय रोजी-रोटी की भेंट चढ़ जाता है। ऊपर से जिसके पास लड़की होती है उसे तो दिन रात चिंता खाए जाती है।
क्योंकि शायद ही कोई लड़का वाला होगा जो ख़ुशी पूर्वक अपनी बहू ले आवे अन्य तो सुरसा की तरह मुंह खोले खड़े रहते है कि कब दहेज के रूप में उन्हें ग्रास मिले और वह उसे इस तरह निगल जाए कि डकार भी न आने पावे ? और यही चिंता उन्हें खाए जा रही थी। किस तरह से बेटी के हाथ पीले कर पाएगे ? लड़की वाला अपना सब कुछ दे देता है तब भी लड़के वालो की नाक टेढ़ी ही रहती है कुत्ते की दुम की तरह ?
देवी प्रसाद के अथक प्रयास के बाद ही एक जगह दूर के रिश्ते में शादी की बात तय हो गई थी। आज के माहौल में घर में भी दूसरे के कंधे पर बंदूक रखकर चलाने की प्रथा ने जोर पकड़ लिया है। यानी कि दूल्हा और उसका बाप तो कुछ नहीं कहेंगे लेकिन दूल्हे की माँ अपनी बहू का दहेज के लिए जीना दूभर कर देती है।
अगर अपनी जाई कन्या हो तब उन्हें भी आटे दाल का भाव मालूम पड़ जाए। यही हाल अनामिका का भी था। उसकी शादी प्रताप नाम के लड़के के साथ हो गई थी। ससुराल में अनामिका साथ तो कुछ दिन सब ठीक था लेकिन दिन के बाद उसकी सासु के शब्दबाण चलने लगे।
अब तो प्रताप भी कोर्ट की खीझ अनामिका के ऊपर ही निकालने लगा। अनामिका सारा दिन सास के नखरे सहन करने के बाद खाली समय में प्रताप की क़ानूनी किताब का अध्ययन करती थी। एक दिन अनामिका की सास ने उसे अपने पीहर से पचास हजार रुपये लाने के लिए कहा।
तब अनामिका ने कहा, “अभी पंद्रह दिन भी नहीं बीते है। तीस हजार रुपये लाकर दिया गया है। आज फिर पचास हजार मांग रही हो इतने पैसे कहां से दिए जाएगे ?”
तभी प्रताप जो कोर्ट से आ गया था। उसने भी अपनी मां का पक्ष लेते हुए अनामिका से कहा, “जाकर पैसे लेकर आओ अन्यथा यहां से निकल जाओ। जब तक पैसे नहीं लाओगी तब तक यहां आने की कोशिश नहीं करना।”
अनामिका का स्वाभिमान जागृत हो गया था। ऐसी कौन सी औरत होगी जो इतना जलील होते हुए भी उस घर में रहना चाहेगी जहां उसे एक पैसे की भी इज्जत नहीं मिलती हो ? अनामिका अपने पिता के घर आ गई थी।
देवी प्रसाद को जब सारी बात मालूम हुई तो वह अपनी जमा पूंजी देने को तैयार हो गए थे। लेकिन अनामिका ने उन्हें रोक दिया। अनामिका अपने पिता से बोली, “पिताजी अगर आप पैसा दे भी देंगे तो इसकी क्या गारंटी है कि वह दहेज़ लोलुप भविष्य में आपकी बेटी को पैसे के लिए परेशान नहीं करेंगे ? अतः जो पैसा आप दहेज़ पिपासु को देने वाले है। उसे आप हमारी वकालत की पढ़ाई में खर्च करिए। इस तरह मैं अपने पेरो पर खड़ी होकर उन लोगो से कोर्ट में ही फैसला करुँगी ?”
देवी प्रसाद को अनामिका का यह सुझाव बहुत पसंद आया था। पिता का सहयोग अनामिका का मेहनत, अब अनामिका कोर्ट में प्रेक्टिस करने लगी। प्रताप अब अनामिका को वकील के रूप में देखकर हैरान रह गया था।
उसे डर था कि अनामिका अब उसके परिवार वालो से कोर्ट द्वारा बदला अवश्य ही लेगी। एक दिन अनामिका ने कोर्ट में तलाक के लिए अर्जी लगा ही दिया। प्रताप के घर नोटिस आ गई तो उसकी सास की जान अटक गई।
प्रताप ने वह अर्जी वापस करते हुए दूसरी अर्जी लगा दिया कि उसे तलाक मंजूर नहीं है। लेकिन अनामिका अपनी जिद पर अड़ गई थी। देवी प्रसाद ने उसे समझाया तो अनामिका ने इस शर्त पर वापस लेने को तैयार हुई कि प्रताप के साथ उसके माता-पिता कोर्ट के पेपर पर साइन करे कि अब कभी दहेज के लिए उसे प्रताड़ित नहीं करेंगे।
प्रताप के साथ ही उसके माता-पिता ने अनामिका को कभी दहेज के लिए प्रताड़ित नहीं करने के लिए पेपर पर लिखकर कोर्ट में दाखिल किया जिसे कोर्ट ने अपने पास सुरक्षित रख लिया। देवी प्रसाद के प्रयास से एक परिवार बिखरने से बच गया।
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