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Brihaspati Stotram Pdf in Hindi / बृहस्पति स्तोत्र पीडीऍफ़
बृहस्पति स्तोत्र पीडीएफ डाउनलोड

Brihaspati Stotram in Hindi
श्री गणेशाय नमः ।
अस्य श्रीबृहस्पतिस्तोत्रस्य गृत्समद ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः,
बृहस्पतिर्देवता, बृहस्पतिप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः ।
गुरुर्बृहस्पतिर्जीवः सुराचार्यो विदांवरः ।
वागीशो धिषणो दीर्घश्मश्रुः पीताम्बरो युवा ॥ १॥
सुधादृष्टिर्ग्रहाधीशो ग्रहपीडापहारकः ।
दयाकरः सौम्यमूर्तिः सुरार्च्यः कुङ्मलद्युतिः ॥ २॥
लोकपूज्यो लोकगुरुर्नीतिज्ञो नीतिकारकः ।
तारापतिश्चाङ्गिरसो वेदवैद्यपितामहः ॥ ३॥
भक्त्या बृहस्पतिं स्मृत्वा नामान्येतानि यः पठेत् ।
अरोगी बलवान् श्रीमान् पुत्रवान् स भवेन्नरः ॥ ४॥
जीवेद्वर्षशतं मर्त्यो पापं नश्यति नश्यति ।
यः पूजयेद्गुरुदिने पीतगन्धाक्षताम्बरैः ॥ ५॥
पुष्पदीपोपहारैश्च पूजयित्वा बृहस्पतिम् ।
ब्राह्मणान्भोजयित्वा च पीडाशान्तिर्भवेद्गुरोः ॥ ६॥
॥ इति श्रीस्कन्दपुराणे बृहस्पतिस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
सिर्फ पढ़ने के लिये
श्री राम जी का मन नए पकड़े हुए हाथी के समान और राजतिलक उस हाथी के बाँधने की कांटेदार लोहे की बेड़ी के समान है “वन जाना है” यह सुनकर अपने को बंधन से छूटा हुआ जानकर उनके हृदय में आनंद बढ़ गया है।
चौपाई का अर्थ-
1- रघुकुल तिलक श्री राम जी ने दोनों हाथ जोड़कर आनंद के साथ ही माता के चरणों में सिर नवाया। माता ने आशीर्वाद देकर उन्हें अपने गले से लगा लिया और उनके ऊपर गहने और कपड़े निछावर किए।
2- माता ने बार-बार श्री राम जी का मुख चूमा। उनके नेत्रों में प्रेम का जल भर आया और सब अंग पुलकित हो गए। वह श्री राम जी को अपनी गोद में बैठाकर हृदय से लगा लिया फिर सुंदर प्रेम रस बहने लगा।
3- उनका महान प्रेम और आनंद इतना है कि कहा नहीं जाता है। मानो कंगाल ने कुबेर का पद पा लिया हो। बड़े आदर के साथ श्री राम जी का सुंदर मुख देखकर माता मधुर वचन बोली।
4- हे तात! माता बलिहारी जाती है, कहो, वह आनंद प्रदाता मंगलकारी लग्न कब है जो मेरे पुण्य, शील और सुख की सुंदर सीमा है और जन्म लेने के लाभ की पूर्णतम अवधि है।
तथा जिस लग्न को सभी स्त्री-पुरुष अत्यंत व्याकुलता से इस प्रकार चाहते है जिस प्रकार से प्यासे चातक और चातकी, शरद ऋतु में स्वाति नक्षत्र में वर्षा की कामना करते है।
चौपाई का अर्थ-
1- हे तात! मैं बलैया लेती हूँ, तुम जल्दी नहा लो और जो मन भावे वह महुर वस्तु खा लो। भैया, तब पिता जी के पास जाना। बहुत देर हो गई है माता बलिहारी जाती है।
2- माता के अत्यंत अनुकूल वचन सुनकर – जो कल्पवृक्ष के फूल थे, जो सुख रूपी मकरंद (पुष्परस) से भरे थे और राजलक्ष्मी (श्री) के मूल थे। ऐसे वचन रूपी फूलो को देखकर श्री राम जी का मन रूपी भंवरा उनपर नहीं भुला।
3- धर्म धुरीन श्री राम जी ने धर्म की गति को जानकर माता से अत्यंत कोमल वाणी से कहा – हे माता! पिता जी ने मुझे वन का राज्य दिया है। जहां मेरा सब प्रकार से बड़ा काम है।
4- हे माता! तू प्रसन्न मन से मुझे आज्ञा दे जिससे मेरी वन यात्रा में आनंद मंगल हो। मेरे स्नेह वश भूलकर भी नहीं डरना। हे माता! तेरी कृपा से सब भांति आनंद ही रहेगा।
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