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Bihar Ek Parichay Pdf Download


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सिर्फ पढ़ने के लिए
मनुष्य द्वारा स्थापित शिवलिंग के लिए दस प्रस्थ, ऋषियों द्वारा स्थापित शिवलिंग के लिए सौ प्रस्थ और स्वयंभू शिवलिंग के लिए एक सहस्र प्रस्थ नैवेद्य निवेदन किया जाय तथा तैल, जल आदि एवं गंध द्रव्यों की भी यथायोग्य मात्रा रखी जाय तो यह उन शिवलिंगो की महापूजा बताई जाती है।
देवता का अभिषेक करने से आत्मशुद्धि होती है गंध से पुण्य की प्राप्ति होती है। नैवेद्य लगाने से आयु बढ़ती और तृप्ति होती है। धूप निवेदन करने से धन की प्राप्ति होती है और ताम्बूल समर्पण करने से भोग की उपलब्धि होती है। इसलिए स्नान आदि छः उपचारो को यत्नपूर्वक अर्पित करे।
जप और नमस्कार ये दोनों सम्पूर्ण अभीष्ट फल को देने वाले है। इसलिए मोक्ष और भोग की इच्छा रखने वाले लोगो को पूजा के अंत में हमेशा ही नमस्कार और जप करने चाहिए। मनुष्य को चाहिए कि वह हमेशा पहले मन से पूजा करके फिर उन-उन उपचारो से करे।
देवताओ की पूजा से उन-उन देवताओ के लोको की प्राप्ति होती है तथा उनके अवांतर लोक में भी यथेष्ट भोग की वस्तुए उपलब्ध होती है। अब मैं देव पूजा से प्राप्त होने वाले फलो का वर्णन करता हूँ। द्विजो! तुम लोग श्रद्धापूर्वक सुनो। विघ्नराज गणेश की पूजा से धरती लोक में उत्तम अभीष्ट वस्तु की प्राप्ति होती है।
शुक्रवार को, श्रावण और भाद्रपद मासो के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को और पौष मास में शतभिषा नक्षत्र के आने पर विधि पूर्वक गणेश जी की पूजा करनी चाहिए। सौ या सहस्र दिनों में सौ या सहस्र बार पूजा करे। देवता और अग्नि में श्रद्धा रखते हुए किया जाने वाला उनका नित्य पूजन मनुष्यो को पुत्र एवं अभीष्ट वस्तु प्रदान करता है।
वह समस्त पापो का शमन तथा विनाश करने वाला है। विभिन्न वारो में की हुई शिव आदि की पूजा को आत्मशुद्धि प्रदान करने वाली समझना चाहिए। दिन या वार, नक्षत्र, तिथि और योगो का आधार है। समस्त कामनाओ को देने वाला है। उसमे वृद्धि और क्षय नहीं होता।
इसलिए उसे पूर्ण ब्रह्मस्वरूप मानना चाहिए। सूर्योदय काल से लेकर सूर्योदय काल आने तक एक बार की स्थिति मानी गयी है। जो ब्राह्मणो आदि सभी वर्णो के कर्मो का आधार है। विहित तिथि के पूर्व भाग में की हुई देव पूजा मनुष्यो को पूर्ण भोग प्रदान करने वाली होती है।
यदि मध्याह्न के बाद तिथि का आरंभ होता है तो रात्रियुक्त तिथि का पूर्व भाग पितरो के श्रद्धादि कर्म के लिए उत्तम बताया जाता है। ऐसी तिथि का परभाग ही दिन से युक्त होता है अतः वही देवकर्म के लिए प्रशस्त माना जाता है। यदि मध्याह्न काल तक तिथि रहे तो उदयव्यापिनी तिथि को ही देव कार्य में ग्रहण करना चाहिए।
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