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Bhartiya Sanskriti Pdf in Hindi Download
पुस्तक का नाम | Bhartiya Sanskriti Pdf in Hindi |
पुस्तक के लेखक | प्रो. शिवदत्त ज्ञानी |
फॉर्मेट | |
साइज | 11.73 Mb |
पृष्ठ | 625 |
भाषा | हिंदी |
श्रेणी | भारत |



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सिर्फ पढ़ने के लिये
अथवा जो सबके एकमात्र मूल है उन भगवान शिव की ही पूजा सबसे बढ़कर है क्योंकि मूल के सीचे जाने पर शाखा स्थानीय सम्पूर्ण देवता स्वतः तृप्त हो जाते है। अतः जो सम्पूर्ण मनोवांछित फलो को पाना चाहता है वह अपने अभीष्ट की सिद्धि के लिए समस्त प्राणियों के हित में तत्पर रहकर लोक कल्याणकारी भगवान शंकर का पूजन करे।
ब्रह्मा जी कहते है – अब मैं पूजा की सर्वोत्तम विधि बता रहा हूँ जो समस्त अभीष्ट तथा सुखो को सुलभ करने वाली है। देवताओ तथा ऋषियों! तुम ध्यान देकर सुनो। उपासक को चाहिए कि वह ब्रह्म मुहूर्त में शयन से उठकर जगदंबा पार्वती सहित भगवान शंकर का स्मरण करे तथा हाथ जोड़ मस्तक झुकाकर भक्ति पूर्वक उनसे प्रार्थना करे।
देवेश्वर! उठिये, उठिये। मेरे हृदय मंदिर में शयन करने वाले देवता! उठिये! उमाकांत! उठिये और ब्रह्माण्ड में सबका मंगल कीजिए। मैं धर्म को जानता हूँ किन्तु उसमे मेरी प्रवृत्ति नहीं होती। मैं अधर्म को जानता हूँ परन्तु मैं उससे दूर नहीं हो पाता। महादेव! आप मेरे हृदय में स्थित होकर मुझे जैसी प्रेरणा देते है वैसा ही मैं करता हूँ।
इस प्रकार भक्ति पूर्वक कहकर और गुरुदेव की चरण पादुकाओं का स्मरण करके गांव से बाहर दक्षिण दिशा में मल-मूत्र का त्याग करने के लिए जाए। मलत्याग करने के बाद आप मिट्टी और जल से धोने के द्वारा शरीर की शुद्धि करके दोनों हाथो और पैरो को धोकर दतुअन करे।
सूर्योदय होने से पहले ही दतुअन करके मुंह को सोलह बार जल की अंजलियो से धोये। देवताओ तथा ऋषियों! षष्ठी, अमावस्या, प्रतिपदा और नवमी तिथियों तथा रविवार के दिन शिव भक्त को यत्न पूर्वक दतुअन को त्याग देना चाहिए। अवकाश के अनुसार नदी आदि में जाकर अथवा घर में ही भली भांति स्नान करे।
मनुष्य को देश और काल के विरुद्ध स्नान नहीं करना चाहिए। रविवार, श्राद्ध संक्रांति, ग्रहण, महादान, उपवास दिवस, तीर्थ होने पर मनुष्य गरम जल से स्नान न करे। शिव भक्त मनुष्य तीर्थ आदि में प्रवाह के सम्मुख होकर स्नान करे। जो नहाने के पहले तेल लगाना चाहे उसे विहित एवं निषिद्ध दिनों का विचार करके ही तैलाभ्यंग करना चाहिए।
जो हर रोज नियम पूर्वक तेल लगाता हो उसके लिए किसी दिन भी तैलाभ्यंग दूषित नहीं है अथवा जो तेल इत्र आदि से वासित हो उसका लगाना किसी दिन भी दूषित नहीं है। सरसो का तेल ग्रहण को छोड़कर दूसरे किसी दिन भी दूषित नहीं होता। इस तरह देश काल का विचार करके ही विधि पूर्वक स्नान करे।
स्नान के समय अपने मुख को उत्तर अथवा पूर्व की ओर रखना चाहिए। उच्छिष्ट वस्त्र का उपयोग कभी न करे। शुद्ध वस्त्र से इष्ट देव के स्मरण पूर्वक स्नान करे। जिस वस्त्र को दूसरे ने धारण किया हो अथवा जो दूसरों के पहनने की वस्तु हो तथा जिसे स्वयं रात में धारण किया गया हो वह वस्त्र उच्छिष्ट कहलाता है।
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