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Bhagawat Gita In Hindi Pdf Free Download
पुस्तक का नाम | भगवत गीता |
भाषा | हिंदी |
श्रेणी | धार्मिक |
फॉर्मेट | |
साइज | 7.75 Mb |
पृष्ठ | 1299 |
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भगवत गीता इन हिंदी Pdf Download
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गीता सार इन हिंदी
हम अपने जीवन में कई प्रकार के उद्येश्य से घिरे रहते है लेकिन गीता में हमे इन सब प्रश्नो का उत्तर बहुत सरल तरीके से प्राप्त होता है और गीता में जीवन की उलझनों का उत्तर भगवान योगेश्वर श्री कृष्ण द्वारा सरल शब्दों में समझाया गया है।
गीता में योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण कहते है कि मनुष्य को व्यर्थ ही चिंता नहीं करनी चाहिए क्योंकि चिंता से स्वयं अपना ही विनाश होता है और वही कार्य होता है जिसे परमात्मा चाहते है। गीता के अनुसार मानव को व्यर्थ ही चिंता नहीं करनी चाहिए।
अगर मनुष्य का जीवन प्राप्त हुआ है तो कर्म करना आवश्यक है और आवश्यक होगा। अगर कर्म का परिणाम अपने मन के माफिक नहीं प्राप्त हुआ तो मनुष्य को झल्लाहट उत्पन्न होती है और झल्लाहट का परिणाम क्रोध में परिवर्तित होता है और क्रोध में तो सिर्फ विनाश ही रहता है।
वस्तुतः इसीलिए ही गीता में कहा गया है कि कर्म करो और फल की चिंता मत करो। जब फल अपने हाथ में नहीं है तो उसके लिए चिंता क्यों करना? दूसरा पहलू है कि कोई भी कर्म मनुष्य अगर करता है तो प्रत्येक कर्म का फल अवश्य होता है लेकिन कर्म के फल को अगर हम परमात्मा को समर्पित कर दे तो हम चिंता मुक्त हो जायेंगे और चिंता मुक्त होने से हमारे कर्म स्वाभाविक रूप से अच्छे होने लगेंगे।
जिसका परिणाम कर्म करने वाले को अच्छा प्राप्त होगा और अच्छा परिणाम आने से आप सदैव चिंता मुक्त रहेंगे। अब प्रश्न उठता है कि अपने कर्म को और उसके फल को परमात्मा को समर्पित कैसे किया जाय? उदाहरण के लिए अगर कोई कामगार या कार्य करने वाला किसी कम्पनी में कार्य करता है और सायंकाल वह कम्पनी से अपने घर आ जाता है।
तब वह कम्पनी के कार्य से मुक्त हो जाता है और उसके किए हुए कार्य की जिम्मेदारी मालिक की हो जाती है। समय आने पर कम्पनी के अन्य उच्च पदस्थ लोगो के द्वारा उसके कार्य का मूल्यांकन करके ही मालिक द्वारा उसे पगार दिया जाता है।
अगर कार्य की गुणवत्ता अच्छी है तो पगार भी अच्छी ही मिलेगी अन्यथा पगार में कटौती सम्भव है। ठीक यही प्रक्रिया अपने जीवन पर भी लागू होती है। इसीलिए योगेश्वर ने कहा है कि कर्म करो? इसी तरह से अपने दैनिक कर्म को अच्छे तरीके से करके उसका फल भगवान के ऊपर छोड़ना चाहिए।
उसे जैसा उचित लगेगा वैसा परिणाम प्राप्त होगा। कर्म में आसक्ति रखो और फल को ईश्वर के ऊपर छोड़ना चाहिए अगर अपने कर्म करते हुए उसके परिणाम के बारे में सोच लिया तब हो सकता है कि आशानुरूप परिणाम न आवे तो स्वाभाविक रूप से आप चिंता में पड़ जायेंगे। फल की इच्छा को ईश्वर के ऊपर छोड़ना ही समर्पण है।
गीता हमे वर्तमान में जीने की प्रेरणा देती है। इसका कारण है कि जो बीत गया वह तो वापस नहीं आ सकता है लेकिन उस बीते हुए से सीख लेकर हम अपना वर्तमान अवश्य ही अच्छे ढंग से सुधार करने का प्रयास कर सकते है और भविष्य कोई जानता ही नहीं। लेकिन वर्तमान से ही भविष्य की रचना हो सकती है इसलिए वर्तमान को ही अच्छा बनाने का प्रयास करना चाहिए।
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