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सिर्फ पढ़ने के लिये
इनके सिवा सत्यलोक से लोक पितामह ब्रह्मा वेदो उपनिषदों और विविध आगमो के साथ यहां पधारे है। देवगणों के साथ स्वयं देवराज इंद्र का भी शुभागमन हुआ है तथा आप जैसे निष्पाप महर्षि भी यहां आ गए है। जो-जो महर्षि यज्ञ में सम्मिलित होने के योग्य शांत और सुपात्र है।
वेद और वेदार्थ के तत्व को जानने वाले है और दृढ़तापूर्वक व्रत का पालन करते है वे सब और स्वयं आप भी जब यहां पदार्पण कर चुके है तब हमे यहां रूद्र से क्या प्रयोजन है? विप्रवर! मैंने ब्रह्मा जी के कहने से ही अपनी कन्या रूद्र को व्याह दी थी। वैसे भी जानता हूँ हर कुलीन नहीं है।
उनके न माता है न पिता। वे भूतों, प्रेतों और पिशाचो के स्वामी है। अकेले रहते है। उनका अतिक्रमण करना दूसरों के लिए अत्यंत कठिन है। ये आत्मप्रशंसक, मूढ़, जड़ मौनी और ईर्ष्यालु है। इस यज्ञकर्म में बुलाये जाने योग्य नहीं है। इसलिए मैंने उनको यहां नहीं बुलाया है।
अतः दधीचि जी! आपको फिर कभी ऐसी बात नहीं कहनी चाहिए। मेरी प्रार्थना है कि आप सब लोग मिलकर मेरे इस महान यज्ञ को सफल बनावे। दक्ष की यह बात सुनकर दधीचि ने समस्त देवताओ और मुनियो के सुनते हुए यह सारगर्भित बात कही।
दक्ष! उन भगवान शिव के बिना यह महान यज्ञ अयज्ञ हो गया। अब यह यज्ञ कहलाने योग्य नहीं रह गया। विशेषतः इस यज्ञ में तुम्हारा विनाश हो जायेगा। ऐसा कहकर दधीचि दक्ष की यज्ञशाला से अकेले ही निकल पड़े और तुरंत अपने आश्रम को चल दिए।
तदनन्तर जो मुख्य-मुख्य शिवभक्त तथा शिव के मत का अनुसरण करने वाले थे वे भी दक्ष को वैसा ही शाप देकर तुरंत वहां से निकले और अपने आश्रमों को चले गए। मुनीश्वर दधीचि तथा दूसरे ऋषियों के उस यज्ञ मंडप से निकल जाने पर दुष्ट बुद्धि शिव द्रोही दक्ष ने उन मुनियो का उपहास करते हुए कहा।
जिन्हे शिव ही प्रिय है वे नाम मात्र के ब्राह्मण दधीचि चले गए। उन्ही के समान जो दूसरे थे वे भी मेरी यज्ञशाला से निकल गए। यह बड़ी शुभ बात हुई। मुझे सदा यही अभीष्ट है। देवेश! देवताओ और मुनियो! मैं सत्य कहता हूँ जिनके चित्त की विचार शक्ति नष्ट हो गयी है।
जो मंदबुद्धि है और मिथ्यावाद में लगे हुए है। ऐसे वेद बहिष्कृत दुराचारी लोगो को यज्ञकर्म में त्याग देना ही चाहिए। विष्णु आदि आप सब देवता और ब्राह्मण वेदवादी है अतः मेरे इस यज्ञ को शीघ्र ही सफल बनावे। ब्रह्मा जी कहते है – दक्ष की यह बात सुनकर शिव की माया से मोहित हुए समस्त देवर्षि उस यज्ञ में देवताओ का पूजन और हवन करने लगे।
अब यज्ञ के विध्वंस की घटना को बताया जाता है आदरपूर्वक सुनो। ब्रह्मा जी कहते है – नारद! जब देवर्षिगण बड़े उत्साह और हर्ष के साथ दक्ष के यज्ञ में जा रहे थे। उसी समय दक्षकन्या देवी सती गंधमादन पर्वत पर चँदवो से युक्त धारागृह में सखियों से घिरी हुई भांति-भांति की उत्तम कीड़ाये कर रही थी।
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