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Ayurved Siddhant Rahasya Pdf / आयुर्वेद सिद्धान्त रहस्य पीडीएफ



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सिर्फ पढ़ने के लिए
9- श्री राम जी ने मुनि को बहुत प्रकार से जगाया पर मुनि नहीं जागे क्योंकि उन्हें प्रभु के ध्यान का सुख प्राप्त हो रहा था। तब श्री राम जी ने अपने राज रूप छुपा लिया और उनके हृदय में अपना चतुर्भुज रूप प्रकट किया।
10- तब अपने इष्ट स्वरुप के अंतर्धान होते ही मुनि व्याकुल होकर उठे जैसे श्रेष्ठ मणिधर सर्प मणि के बिना व्याकुल हो जाता है। मुनि ने अपने सामने सीता जी और लक्ष्मण जी सहित श्याम सुंदर विग्रह सुखधाम श्री राम जी को देखा।
11- प्रेम मग्न हुए वह बड़भागी श्रेष्ठ मुनि दंड के समान गिरते हुए श्री राम जी के चरणों में पड़ गए। श्री राम जी ने उन्हें अपनी विशाल भुजाओ से पकड़कर उठा लिया और बड़े प्रेम से हृदय से लगाया।
12- कृपालु श्री राम जी मुनि से मिलते हुए ऐसे शोभित हो रहे है मानो सोने के वृक्ष से तमाल का वृक्ष गले लग रहा हो। मुनि निस्तब्ध खड़े हुए एकटक श्री राम जी मुख देख रहे है मानो उन्हें चित्र में लिखकर बनाया गया हो।
10- दोहा का अर्थ-
तब मुनि हृदय में धीरज रखकर बार-बार चरणों का स्पर्श किया। फिर प्रभु को अपने आश्रम में लाकर अनेक प्रकार से उनका पूजन किया।
चौपाई का अर्थ-
1- मुनि कहने लगे हे प्रभो! मेरी विनती सुनिए, मैं किस प्रकार से आपकी स्तुति करू? आपकी महिमा अपार है और मेरी बुद्धि अल्प है जैसे सूर्य के सामने जुगनू का उजाला।
2- हे नील कमल की माला के समान श्याम शरीर वाले! हे जटाओ का मुकुट और मुनियो के वल्कल वस्त्र पहने हुए श्री रम जी! मैं आपको निरंतर नमस्कार करता हूँ।
हे भरत! अब तो तुमने बहुत ही अच्छा किया, यही मत तुम्हारे लिए उचित था। श्री राम जी के चरण में प्रेम होना तो इस संसार में सब मंगल का मूल है।
चौपाई का अर्थ-
1- सो वह (श्री राम जी के चरण में प्रेम) तुम्हारा धन, जीवन और प्राण है, तुम्हारे समान बड़भागी कौन है। हे तात! तुम्हारे लिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि तुम दशरथ जी के पुत्र और श्री राम जी के प्रिय भाई हो।
2- हे भरत! सुनो, श्री राम जी के मन में तुम्हारे समान कोई दूसरा प्रेम का पात्र नहीं है लक्ष्मण जी, सीता जी श्री राम जी उस दिन सारी रात अत्यंत प्रेम से तुम्हारी सराहना करते ही बीती थी।
3- मैंने उनका यह मर्म उस समय जाना जब वह प्रयाग राज में स्नान कर रहे थे। वह तुम्हारे प्रेम में मग्न हो रहे थे। तुम्हारे ऊपर तो श्री राम जी का इतना स्नेह है, जितना इस संसार में मनुष्य (विषयासक्त) सुखमय जीवन पर करता है।
4- यह श्री राम जी की बहुत बड़ाई नहीं है, वह अपने शरणागत हुए मनुष्य के कुटुंबियो पर भी कृपा करते है। हे भरत! मेरा तो यह मत है कि तुम शरीरधारी श्री राम जी के प्रेम ही हो।
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