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Atharva Veda In Hindi Pdf
अथर्व वेद इन हिंदी पीडीऍफ़
अथर्व वेदा हिन्दू धर्म के बहुत ही पवित्र वेदो में चौथे स्थान पर है। यह मंत्र भाग है और इसे ब्रह्मवेद भी कहा जाता है। अथर्व वेद में देवताओ की स्तुति के साथ ही चिकित्सा, ज्ञान, विज्ञान के बारे में भी बताया गया है। इस वेद में जड़ी बूटियों, रहस्यमयी विद्याओ और आयुर्वेद का भी जिक्र है। अथर्व वेद में 20 अध्याय है और इसमें लगभग 5987 मंत्र है।
इसके भाषा और स्वरुप के माध्यम से यह पता चलता है कि इसकी रचना सबसे बाद में हुई। अथर्व वेद को अन्य नामो से भी जाना जाता है। जैसे गोपथ ब्राह्मण में इसे “अथर्वांगिरस” कहा जाता है तो इसमें ब्रह्म विषय होने के कारण इसे “ब्रह्मवेद” भी कहा जाता है तो वही आयुर्वेद चिकित्सा तथा औषधियों का वर्णन होने के कारण इसे “भैषज्य वेद” भी कहा जाता है तो इसमें ‘पृथ्वी सूक्त” के वर्णन होने के कारण इसे ‘महीवेद” भी कहा जाता है।
अथर्व वेद में कुल 20 कांड, 730 सूक्त और 5987 मंत्र है। इसमें पहले से लेकर सातवे कांड तक विशिष्ट उद्देश्यों की पूर्ति हेतु तंत्र-मंत्र संबंधी मंत्र और प्रार्थनाए दी गई है। इसमें पाप का प्रायश्चित राजा बनने अर्थात अमीर बनने के मंत्र, श्राप, प्रेम मंत्र, उपचार आदि के बारे में बताया गया है।
आठवे से बारहवे कांड में भी इसी तरह के पाठ है लेकिन इसमें ब्रह्मांडीय सूक्त भी शामिल है और वे उपनिषदों से अधिक जटिल चिंतन की तरफ ले जाते है। 13 से 20 कांड तक ब्रह्मांडीय सिद्धांत, विवाह प्रार्थना, अंतिम संस्कार के मंत्र तथा अन्य अनुष्ठान के बारे में बताया गया है।
मनुष्य के जीवन को सुखमय बनाने के लिए जिन साधनो की आवश्यकता होती है उनकी प्राप्ति के लिए अनुष्ठानो का विधान अथर्व वेद में प्राप्त होता है। अथर्व वेद में कई बार अथर्वा का उल्लेख हुआ है इसे पावक का अविष्कारक और यज्ञ विधान का प्रवर्तक माना गया है।
पद्य बंध को ऋक कहा जाता है। इसमें पद्य की संख्या अधिकाधिक होने से इसे ऋग्वेद कहा जाता है। गीति को साम कहा जाता है। इसकी ऋचाओं को गायन की तरह प्रस्तुत करने से ही इसे सामवेद कहा जाता है। गद्य को देव भाषा में यजुः कहा जाता है।
इसमें वर्णित श्लोक और मंत्रो का प्रयोग गद्य की भांति किया जाता है अतः इसे यजुर्वेद के नाम से ख्याति प्राप्त है। अथर्व वेद में अथर्वा ऋषि के ही मंत्र सबसे अधिक है और इनकी संख्या 1768 है अतः अथर्वा ऋषि के नाम से ही इसका नाम अथर्व वेद विदित है।
अथर्व वेद के प्रथम और द्वितीय कांड में विविध रोग शत्रु व दीर्घायु से संबंधित मंत्र प्राप्त होते है। तृतीय में शत्रु सेना का वशीकरण, चतुर्थ में ब्रह्म विद्या और पाप मोचन, पंचम में ब्राह्मण जाति के महत्व और शत्रु नाश का वर्णन प्राप्त होता है। अथर्व वेद में भूमि सूक्त (12|1|20) राष्ट्रीय भावना से ओत प्रोत है।
इसमें प्रथम वार भूमि को माता और स्वयं को उसका पुत्र बतलाया गया है। अथर्व वेद में भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। सामाजिक और राजनैतिक अवस्थाओं का इतना सुंदर चित्रण और कही नहीं प्राप्त होता है।
यह समाज के सभी वर्गो के लिए उपयोगी है। यह जन साधारण का वेद है। इससे शिक्षित, अशिक्षित सभी लोग लाभ प्राप्त करते है। देवता संबंधी विचार भी ऋग्वेद की अपेक्षा अथर्व वेद में उच्चतर रूप से प्राप्त होता है। वर्तमान युग में भारत ही नहीं अपितु समस्त विश्व में अथर्व वेद में वर्णित क्रियाओ के समानांतर प्रयोग किए जाते है अतः ऋग्वेद की अपेक्षा अथर्व वेद अधिक प्रचलित और सुलभ है।
Atharva Veda In Hindi Pdf Download
Pdf Book Name | Atharva Veda In Hindi Pdf |
भाषा | हिंदी |
पृष्ठ | 633 |
Pdf साइज़ | 39.1 MB |
लेखक | हरिशरण सिद्धान्तालंकार |
Category | धार्मिक |
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