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Amit Khan Novels Hindi Pdf Download






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सिर्फ पढ़ने के लिए
थोड़ा व्यवधान उत्पन्न होने के बाद सुधीर फिर से अपनी पढ़ाई में जुट गया क्योंकि वह इन उदंड बालको की भांति लक्ष्यहीन न था। समय अपने गति से बढ़ता जा रहा था। परीक्षा का समय भी आ चुका था। एक सप्ताह बाद ही बोर्ड की परीक्षा होने वाली थी।
शाम को रजनी सुधीर के पास आयी तो देखा कि सुधीर कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नो को हल कर रहा था। रजनी कंचन के पास चली गयी और उनसे ही बाते करने लगी थी। उसे मालूम था कि नरेश और स्वयं उसके पढ़ाई का खर्च सरोज सेवा केंद्र द्वारा उठाया जा रहा है जिसके विंदकी और गंगापुर के व्यवस्थापक स्वयं रघुराज सोनकर है।
सुधीर नोट तैयार कर चुका था तभी उसकी नजर रजनी पर गयी जो उसकी माँ कंचन से बात कर रही थी। सुधीर बोला दीदी आप कब आयी। रजनी ने कहा तुम पढ़ाई कर रहे थे उसी समय मैं आ गयी थी। सुधीर बोला लेकिन हमे तो पता ही नहीं लगा कि आप यहां आयी है।
रजनी बोली यही तो होना चाहिए कि अपने लक्ष्य में इतना डूब जाओ कि तुम्हे कुछ भी पता नहीं लगे और लक्ष्य प्राप्ति के लिए दूसरा कोई मार्ग नहीं है। दसवीं और बारहवीं की परीक्षा शुरू हो गयी थी। जो उदंड छात्र थे उनके लिए तो यह परीक्षा माँ-बाप की मेहनत गाढ़ी कमाई मौज करने का साधन मात्र थी।
लेकिन जो छात्र अपने लक्ष्य पर अडिग थे उन्होंने इस परीक्षा में स्वयं को होम कर दिया था क्योंकि उनके लिए एक साल फिर पीछे जाना गवारा नहीं था। परीक्षा एक महीने के बाद समाप्त हो गयी थी। सभी छात्र छात्राये अपने घर को लौट चुके थे।
उन्हें अब एक महीने के बाद परीक्षा फल का इंतजार था और वह समय भी आ गया था किताब की दुकानों पर और में सभी छात्र अपना नंबर ढूंढ रहे थे लेकिन सुधीर घर पर ही बैठा था। नरेश और विवेक दोनों ने अख़बार खरीद लिया था और उसमे बारहवीं और दसवीं के रोल नंबर देख रहे थे लेकिन उन्हें अपना रोल नंबर कही भी नहीं दिखा।
अख़बार के भीतरी पन्ने पर जिले भर में प्रथम स्थान वालो की सूची थी और उसमे सिर्फ चार रोल नंबर ही थे जो नरेश विवेक तथा दसवीं में सुधीर और एक अन्य था लेकिन इन सबसे प्रतिशत में सुधीर का रोल नंबर बहुत आगे था। विवेक और नरेश दोनों खुश थे क्योंकि इस बार भी उनका परीक्षाफल उम्मीद पर खरा ही आया था।
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