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Ajatshatru Pdf Hindi / अजातशत्रु Pdf
पुस्तक का नाम | Ajatshatru Pdf Hindi |
पुस्तक के रचनाकार | जयशंकर प्रसाद |
भाषा | हिंदी |
श्रेणी | नाटक |
फॉर्मेट | |
साइज | 6 Mb |
पृष्ठ | 183 |


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कम्पनी में माल का उत्पादन बहुत ही अच्छे ढंग से हो रहा था। सभी कर्मचारी बहुत लगन के साथ काम कर रहे थे लेकिन माल की अच्छी गुणवत्ता और कम कीमत होने से मांग बहुत ज्यादा हो गयी थी और उत्पादन कम पड़ गया था। कार्तिक ने औरत कर्मचारियों की संख्या बढ़ाने का निर्णंय कर लिया।
उसने अनुभवी कर्मचारियों को मशीन की जिम्मेदारी सौप दिया और बाकी कर्मचारियों को माल की सफाई, छटाई तथा पैकिंग करने के लिए रख दिया। कम्पनी के बाहर एक बोर्ड लगवा दिया जिसमे 60 औरत कर्मचारियों की आवश्यकता थी और रात्रि पाली में सिर्फ आदमियों को रखा गया था।
कार्तिक जब दुकान से होकर कम्पनी के ऑफिस में बैठता था तो उसी समय काम की तलाश में औरतो का आना शुरू हो जाता था क्योंकि शहर में रहने वाले मध्यम वर्ग के लिए आदमी तथा औरत के लिए नौकरी एक जरूरत बन गयी थी।
औरत कर्मचारियों की संख्या लगभग पूरी हो गयी थी सिर्फ के चार के लिए और जगह बची हुई थी वह भी ऐसे जरूरत की जगह खाली थी जो 12 दुकान और उसके कर्मचारियों का पूरा हिसाब कार्तिक को बता सके। कम्पनी और उसके कर्मचारियों का पूरा वेतन, वगैरह माल उत्पादन का पूरा हिसाब सही ढंग से कार्तिक को समझाये और दुकान तथा कम्पनी के फायदे के लिए कार्य कर सके।
अब कार्तिक ने दुकान और कम्पनी में जाने के लिए अपने समय में परिवर्तन कर लिया था। एक दिन कार्तिक कम्पनी में जाने के लिए निकला था तो देखा नीली कोठी के सामने भीड़ लगी हुई थी कार्तिक थोड़ा नजदीक जाकर देखा तो वह भिखारन लड़की किसी के साथ बहस में उलझी हुई थी कार्तिक ने मुंह बनाया और आगे बढ़ गया।
शेखर से कार्तिक की मुलाकात हुए बहुत दिन हो गया था। आज वह कम्पनी से निकलकर शेखर की दुकान पर आ गया था। कार्तिक को देखते ही शेखर बोला – इस समय कम्पनी में उत्पादन कम हो रहा है क्या? हमे माल क्यों नहीं मिल रहा है?
कार्तिक बोला – आपका जितना ऑर्डर है उससे डबल दोगुना ज्यादा माल आज शाम तक आ जायेगा क्योंकि हमने कम्पनी में माल का उतपदं बढ़ाने के लिए कर्मचारियों की संख्या बढ़ा दिया है। शेखर और कार्तिक दोनों बाते कर रहे थे तभी वह भिखारन आ गयी और शेखर से बीस रुपये मांगने लगी।
शेखर ने इस बार उससे बहस नहीं किया और बीस रुपये उसे दे दिया। भिखारन को देखते ही कार्तिक वहां से चला गया तो उसे एक झटका जैसा लगा। वह भिखारन शेखर से पूछने लगी – भाई साहब! आपके दोस्त आज इतनी जल्दी में क्यों चले गए?
शेखर ने आज गौर से उस भिखारन लड़की की तरफ देखा तो उसे कार्तिक की कही हुई बात याद हो गयी। उसका बात करने का ढंग अन्य भिखारियों से अलग था। उस भिखारन के चेहरे पर भी दूसरा चेहरा लगा हुआ प्रतीत होता था। शेखर बोला – मैं उसके बारे में ज्यादा नहीं जानता हूँ तुम्हे अगर आवश्यकता हो तो खुद ही पता लगा लो।
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