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Aarti Sangrah Pdf Hindi / आरती संग्रह Pdf Download

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जल के समान विमल चेतना तथा स्थूल शरीर – भगवान कह रहे है कि इस प्रकार दूसरा स्थूल शरीर धारण करके जीव विशेष प्रकार का कान, आँख, जीभ, नाक तथा स्पर्श इन्द्रिय (त्वचा) प्राप्त करता है जो मन के चारो ओर संपुजित है। इस प्रकार वह इन्द्रिय विषयो के एक विशिष्ट समुच्चय का भोग करता है।
उपरोक्त शब्दों का तात्पर्य – वास्तविक चेतना तो कृष्ण भावनामृत है। अगर कोई भी कृष्ण भावनामृत में स्थित है तो उसका जीवन शुद्ध हो जाता है और शुद्धतर जीवन बिताता है।
यदि उसकी चेतना किसी भौतिक प्रवृत्ति के साथ मिल जाती है तो अगले जन्म में उसे वैसा ही शरीर प्राप्त होता है। दूसरे शब्दों में यदि जीव अपनी चेतना को बिल्ली या कुत्ते जैसी बना देता है तो उसे अगले जन्म में कुत्ते या बिल्ली का शरीर प्राप्त होता है जिसका वह भोग करता है।
चेतना तो मूल रूप से जल के समान एकदम विमल होती है। लेकिन यदि कोई जल में रंग मिला देता है तो उस जल का रंग बदल जाता है।
इसी प्रकार से चेतना भी शुद्ध होती है क्योंकि आत्मा शुद्ध है लेकिन भौतिक गुणों की संगति के अनुसार ही चेतना में परिवर्तन होता रहता है। यहां छोटे बालक का उदाहरण दिया गया है।
छोटा बच्चा जन्म के समय तो कितना निर्मल शुद्ध होता है। लेकिन वह क्रमवार जब बढ़ता है तो उसे भौतिक गुण अपने पास में बांधना शुरू कर देते है।
अतः वयस्क होते ही उसमे तमाम परिवर्तन हो जाते है। लेकिन यहां आवश्यक नहीं है कि मृत्यु के उपरांत जीव को पुनः मनुष्य शरीर ही प्राप्त होगा – वह बिल्ली, कुत्ता, सूकर, देवता या में से कोई भी रूप प्राप्त कर सकता है।
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